Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 464
________________ विंश उद्देशक - मासिक-द्वैमासिक प्रायश्चित्त : प्रस्थापन : आरोपण : वृद्धि ४३१ वहन काल के) प्रारम्भ, मध्य अथवा अन्त में प्रयोजन, हेतु या विशेष कारणपूर्वक द्विमासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन कर आलोचना करने पर न कम न अधिक बीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। (जैसा पूर्व सूत्र में वर्णित हुआ है), इसके पश्चात् पुनः दोष आसेवित करने पर (संयुक्त रूप से) चार मास और दस रात्रि की प्रस्थापना होती है। ५१. चार मास एवं दस रात्रि का प्रायश्चित्त सेवन करने वाले भिक्षु द्वारा (प्रायश्चित्त वहन काल के) प्रारम्भ, मध्य अथवा अन्त में प्रयोजन, हेतु या विशेष कारणपूर्वक एक मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन कर आलोचना करने पर न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। (जैसा पूर्व सूत्र में वर्णित हुआ है), इसके पश्चात् पुनः दोष आसेवित करने पर (संयुक्त रूप से) पाँच मास में पाँच रात्रि कम की प्रस्थापना होती है। . ५२. पाँच मास में पाँच रात्रि कम का प्रायश्चित्त सेवन करने वाले भिक्षु द्वारा (प्रायश्चित्त वहन काल के) प्रारम्भ, मध्य अथवा अन्त में प्रयोजन, हेतु या विशेष कारणपूर्वक द्विमासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन कर आलोचना करने पर न कम न अधिक बीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। (जैसा पूर्व सूत्र में वर्णित हुआ है), इसके पश्चात् पुनः दोष आसेवित करने पर (संयुक्त रूप से) साढे पाँच मास की प्रस्थापना होती है। . ५३. साढे पाँच मास का प्रायश्चित्त सेवन करने वाले भिक्षु द्वारा (प्रायश्चित्त वहन काल के) प्रारम्भ, मध्य अथवा अन्त में प्रयोजन, हेतु या विशेष कारणपूर्वक एक मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन कर आलोचना करने पर न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। (जैसा पूर्व सूत्र में वर्णित हुआ है), इसके पश्चात् पुनः दोष आसेवित करने पर (संयुक्त रूप से) छह मास की प्रस्थापना होती है। इस प्रकार निशीथ अध्ययन (निशीथ सूत्र) में विंश (उद्देशक परिसमाप्त हुआ। विवेचन - इन सूत्रों का विवेचन भी पूर्व सूत्रों के सदृश है। केवल इतना अन्तर है, यहाँ एक मासिक और द्विमासिक प्रायश्चित्त स्थानों का प्रस्थापन, आरोपण एवं वृद्धिक्रम संयुक्त रूप में कहा गया है। ... ____एक मासिक तथा द्वैमासिक के सदृश ही अन्य अनेक मास विषयक प्रायश्चित्त प्रस्थापन, आरोपण एवं वृद्धिक्रम योजनीय है। जिसको सर्वप्रथम छहमासी प्रायश्चित्त का आरोपण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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