Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 460
________________ विंश उद्देशक - एक मासिक प्रायश्चित्त : प्रस्थापन : आरोपण : वृद्धि पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अहावरा पक्खिया आरोवणा आइमज्झावसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं, तेण परं दो मासा ॥ ३८ ॥ दोमासियं परिहारट्ठाणं (जहा हेट्ठा) णवरं अड्डाइज्जा मासा ॥ ३९॥ अड्डाइज्जमासियं परिहारट्ठाणं ( जहा हेट्ठा) णवरं तिण्णि मासा ॥ ४० ॥ तेमासियं परिहारट्ठाणं ( जहा हेट्ठा ) णवरं अद्धुट्ठा मासा ॥ ४१ ॥ अद्धुद्वमासियं परिहारट्ठाणं (जहा हेट्ठा) णवरं चत्तारि मासा ॥ ४२ ॥ चाउम्मासियं परिहारद्वाणं ( जहा हेट्ठा) णवरं अड्ढपंचमा मासा ॥ ४३॥ अड्डपंचमासियं परिहारट्ठाणं ( जहा हेट्ठा) णवरं पंच मासा ॥ ४४ ॥ पंचमासियं परिहारट्ठाणं ( जहा हेट्ठा) णवरं अद्धछट्ठामासा॥ ४५॥ अद्धछट्टमासियं परिहारट्ठाणं (जहा हेट्ठा) णवरं छम्मासा ॥ ४६ ॥ कठिन शब्दार्थ - अड्डाइज्जा मासा सार्ध तृतीय मास ढाई मास, अट्ठा साढे तीन मास । भावार्थ ३८. डेढ़ मास का प्रायश्चित्त वहन किए जाने वाले अनगार द्वारा ( प्रायश्चित्त 'वहन काल के) प्रारम्भ, मध्य का अन्त में प्रयोजन हेतु या (विशेष) कारण पूर्वक एक मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन कर आलोचना करने पर न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपण का प्रायश्चित्त आता है। इसके पश्चात् पुनः दोष आसेवित करने पर दो मास का प्रायश्चित्त आता हैं । ३९. दो मास का प्रायश्चित्त सेवन करने वाले अनगार द्वारा आलोचना करने पर ( इत्यादि वर्णन पूर्व सूत्र की भांति यहाँ जानना चाहिए) अर्थात् एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है । अन्तर इतना सा है, पुनः दोष आसेवित करने पर ढाई मास का प्रायश्चित्त आता है। - Jain Education International ४२७ 1 ४०. ढाई मास का प्रायश्चित्त वहन करने वाले अनगार द्वारा आलोचना करने पर (इत्यादि वर्णन पूर्व सूत्र की भाँति यहाँ जानना चाहिए ) अर्थात् एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है । अन्तर इतना सा है, पुनः दोष आसेवित करने पर तीन मास का प्रायश्चित्त आता है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 458 459 460 461 462 463 464 465 466