Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 437
________________ ४०४ निशीथ सूत्र अविहित काल में स्वाध्याय का प्रायश्चित्त जे भिक्खू असज्झाइए सज्झायं करेइ करेंतं वा साइजइ॥१५॥ कठिन शब्दार्थ - असज्झाइए - अस्वाध्याय काल में। भावार्थ - १५. जो भिक्षु अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय करता है अथवा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - आगमों में कुछ ऐसे प्रसंगों का विशेष रूप से उल्लेख है। इससे स्वाध्याय के लिए दिन में और रात में जो विधान किया गया है, वह बाधित नहीं होता। क्योंकि वह सामान्य दृष्टि से विवेचन है, यह विशेष विवेचन है। अत: उसका अनुसरण करना आवश्यक है। सामान्य की अपेक्षा विशेष का अधिक महत्त्व माना गया है। स्थानांग सूत्र के चतुर्थ अध्ययन में चार प्रतिपदाओं और चार संध्याओं को अस्वाध्याय काल कहा गया है। इसी सूत्र में अध्ययन-१० में दस आकाशीय तथा दस औदारिक अस्वाध्यायों का वर्णन है। प्रस्तुत (निशीथ) सूत्र के इसी उद्देशक में चार महामहोत्सवों, चार प्रतिपदाओं एवं चार संध्याओं में करना प्रायश्चित्त योग्य बतलाया गया है। इन सबका संकलन करने से कुल बत्तीस अस्वाध्याय काल होते हैं। वे ऐसे काल हैं, जो वातावरण आदि की दृष्टि से अशान्त, अशुद्ध और अस्वस्थ माने गए हैं। स्वाध्याय के लिए विशुद्ध, मानसिकता, स्थिरता, श्रद्धा तो आवश्यक है ही, शुद्धि तथा शान्ति की दृष्टि से वातावरण की अनुकूलता की भी उपयोगिता है। इन ३२ अस्वाध्याय का विस्तार से वर्णन -व्यवहार भाष्य, निशीथ चूर्णि तथा स्थानांग टीका में किया गया है। जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भाग ६ के ३२वें बोल में तथा जैन सिद्धान्त भूषण (प्रथम भाग) में भी इनका वर्णन जिज्ञासुओं को वे स्थल द्रष्टव्य है। वैयक्तिक अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय का प्राचश्चित्त जे भिक्खू अप्पणो असज्झाइए सज्झायं करेइ करेंतं वा साइजइ॥ १६॥ कठिन शब्दार्थ - अप्पणो - आत्मनः - स्वयं के (शरीर विषयक)। भावार्थ - १६. जो भिक्षु अपने (शरीर संबंधी) अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय करता है, या करने वाले का अनुमोदन करता है, उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - वैयक्तिक अस्वाध्याय का तात्पर्य व्यक्ति के - भिक्षु या भिक्षुणी के अपने देह की रक्त, मवाद आदि जनित अशुद्धि के कारण स्वाध्याय वर्जना है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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