Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 394
________________ षोडश उद्देशक - मर्यादातिरिक्त उपधि विषयक प्रायश्चित्त विवेचन - भिक्षु के पाँच महाव्रतों में अंतिम अपरिग्रह महाव्रत है । उसका संबध साधु जीवन में अपेक्षित, सर्वथा प्रयोजनभूत वस्त्रादि के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार का परिग्रह - साधन, सामग्री आदि न रखना है। ये भी आवश्यकता पूरक के रूप में रखे जाते हैं । इनके प्रति भी आसक्ति (मूर्च्छा परिग्रह) न रखना अपेक्षित है । उसी के परिप्रेक्ष्य में यहाँ भिक्षु के लिए साधुचर्या में सहायक उपधि, वस्त्र इत्यादि को गणना और परिमाण से अधिक रखना प्रायश्चित्त योग्य बतलाया गया है। गणना या परिमाण भी उस दृष्टि से निर्धारित हैं, जिससे अनिवार्य आवश्यकता की पूर्ति से वे अतिरिक्त न हो जाएँ । बृहत्कल्प सूत्र के तृतीय उद्देशक में विविध उपधि विषयक जो वर्णन हुआ है, वह यहाँ ग्राह्य है। गणना या प्रमाण का विषय विवेक पूर्ण चिंतन के आधार पर निर्धारित किया गया है। आगमों में साधुओं और साध्वियों के लिए विविध स्थानों पर जो उपधि विषयक वर्णन हुआ है, निष्कर्ष रूप में निम्नांकित है साधुओं के लिए बहत्तर हाथ तथा साध्वियों के लिए ९६ हाथ उपधि की सीमा निर्धारित की गई है। इसमें भी परंपरा भेद प्राप्त होता है क्योंकि आगमों में इस संदर्भ में स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता । साधु के लिए १. दो मुखवस्त्रिका (समचौरस) २. गोच्छग ३. रजोहरण ४. तीन चद्दर (कंबल, वस्त्र आदि) दो चोट्ट ५. ६. एक आसन ७. सात पात्र के वस्त्र ८. एक पादप्रोंछन - ९. एक निशीथिया ( निशीथया) तीन अखण्ड वस्त्र Jain Education International - २१ अंगुल लम्बी, १६ अंगुल चौड़ी अथवा १६ अंगुल प्रमाण - ३६१ १ हाथ प्रमाण १ हाथ प्रमाण ३५ हाथ १५ हाथ ७ हाथ १० हाथ १ हाथ १ हाथ ७२ हाथ (लगभग) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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