Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 413
________________ ३८० निशीथ सूत्र ____वाद्यादि ध्वनि के आसक्तिपूर्ण श्रवण का प्रायश्चित्त जे भिक्खू भेरिसहाणि वा पडहसदाणि वा मुरवसहाणि वा मुइंगसहाणि वा णंदिसहाणि वा झल्लरिसदाणि वा वल्लरिसहाणि वा डमरु(य)गसहाणि वा मड्डयसहाणि वा सदुयसहाणि वा पएससहाणि वा गोलुइसहाणि वा . अण्णयराणि वा तहप्पगाराणि वितयाणि सदाणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेड़ अभिसंधारेंतं वा साइजइ॥ २५३॥ _ जे भिक्खू वीणासहाणि वा विवंचिसहाणि वा तुणसहाणि वा वव्वीसगसहाणि वा वीणाइयसहाणि वा तुंबवीणासहाणि वा झोडयसदाणि वा ढंकुणसहाणि वा अण्णयराणि वा तहप्पगाराणि सयाणि सहाणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइजइ॥ २५४॥ . जे भिक्खू तालसदाणि वा कंसतालसहाणि वा लित्तियसहाणि वा गोहियसहाणि वा मकरियसहाणि वा कच्छभिसहाणि वा महइसहाणि वा सणालियासदाणि वा वालियासदाणि वा अण्णयराणि वा.तहप्पगाराणि घणाणि सहाणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ॥ २५५॥ __जे भिक्खू संखसहाणि वा वंससदाणि वा वेणुसहाणि वा खरमुहिसहाणि वा परिलिसहाणि वा वेवासहाणि वा अण्णयराणि वा तहप्पगाराणि झुसिराणि सहाणि कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइजइ॥ २५६॥ ___ कठिन शब्दार्थ - भेरि - दुन्दुभि, पडह - ढोल, मुरव - मुरज, मुइंग - मृदंग, णंदि - समवेत रूप में द्वादश वाद्य ध्वनि, झल्लरि - झालर, मड्डय - मद्दल - छोटा ढोल, गोलुइ- गोलुकी, वितयाणि - वितत वाद्य - चर्मावृत वाद्य (बिना तार वाले), कण्णसोयपडियाए - कानों से सुनने की इच्छा से, अभिसंधारेइ - मनःसंकल्प करता है, विवंचि - विपंचि - विशेष प्रकार की वीणा, 'तयाणि - तन्तु वाद्य - तार वाले वाद्य, घणाणि - घन वाद्य - परस्पर टकरा कर (अभिघात पूर्वक) बजाए जाने वाले वाद्य, वंससहाणि - बांस - बांसुरी आदि के शब्द, झुसिराणि - छिद्र वाले खोखले वाद्य। भावार्थ - २५३. जो भिक्षु दुंदुभि, ढोल, मुरज, मृदंग, नन्दी, झालर, वल्लरि, डमरू, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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