Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 427
________________ ३९४ निशीथ सूत्र प्रयत्न रहे। अत एव आते हुए तेज जल प्रवाह की ओर जाती नौका का निषेध किया गया है, क्योंकि तीव्र वेग के कारण वहाँ अप्कायिक जीवों की अत्यधिक विराधना होती है, विघात . होता है। ___आचारांग, बृहत्कल्प तथा दशाश्रुतस्कंध इत्यादि सूत्रों में विशेष प्रयोजन, परिस्थिति आदि के कारण नौका विहार का आपवादिक रूप में विधान हुआ है, जो पठनीय है। नियम विरुद्ध वस्त्र ग्रहण विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू वत्थं किणइ किणावेइ कीयं आहटु देजमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ॥ ३५॥ ___(इओ आरब्भ चउद्दसमुद्देसस्स सयलाणिवि सुत्ताणि पडिग्गहठाणे' वत्थमुवजुंजिय वत्तव्वाणि जाव) जे भिक्खू वत्थणीसाए वासावासं वसइ वसंतं वा साइजइ, णवरं कोरणं णत्थि। तं सेवमाणे आवजइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ॥३६-८८॥ ॥णिसीहऽज्झयणे अट्ठारसमो उद्देसो समत्तो।। कठिन शब्दार्थ - इओ - इस प्रकार, आरब्भ - प्रारंभ से, सयलाणिवि - सकलानि अपि - सभी, ठाणे - स्थान में, वत्थुमुवजुंजिय - वस्त्र उपयोग में लेना चाहिए (वस्त्र शब्द प्रयुक्त करना चाहिए), णवरं - विशेष बात यह है, कोरणं - उत्कीर्णन विषयक, णत्थि - नास्ति - नहीं है। : भावार्थ - -३५. जो भिक्षु वस्त्र खरीदता है, खरीदवाता है अथवा खरीद कर दिए जाते हुए को ग्रहण करता है या ऐसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। ___३६-८८. (इस प्रकार चतुर्दश उद्देशक के आरंभ से ले कर सभी सूत्र (सूत्र क्रमांक ४९ को छोड कर) यहाँ जानने चाहिए परन्तु यहाँ पात्र के स्थान पर वस्त्र शब्द उपयोग में लेना चाहिए) यावत् जो भिक्षु वस्त्र की इच्छा से (प्रतिबद्ध हो कर) स्थान विशेष में वर्षावास करता है या करते हुए का अनुमोदन करता है। यहाँ इतना अन्तर है (पात्र पर) कोरनी (उत्कीर्तन) विषयक सूत्र (क्रमांक ४९) यहाँ नहीं मानना चाहिए। (योजित नहीं करना चाहिए क्योंकि वस्त्र पर उत्कीर्णन नहीं होता, वह तो पात्र पर ही संभव है)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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