Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 400
________________ सप्तदश उद्देशक - निषिद्ध कार्य कुतूहलवश करने का प्रायश्चित्त ३६७ भावार्थ - १. जो भिक्षु कुतूहलवश (कुतूहल के संकल्प से) किसी त्रस प्राणी को तृणपाश, मुंजपाश, काष्ठपाश, चर्मपाश, बेंतपाश, रज्जुपाश या सूत्र - डोरी के पाश से बांधता है अथवा बांधने वाले का अनुमोदन करता है। ___२. जो भिक्षु कुतूहल प्रतिज्ञा से - कुतूहलवश तृणपाश से यावत् सूत्रपाश से बंधे .हुए किसी त्रस प्राणी को बंधन मुक्त करता है - खोलता है या खोलते हुए का अनुमोदन करता है। ३. जो भिक्षु कुतूहल के संकल्प से - तृण की माला, मुंज की माला, बेंत की माला, काष्ठ की माला, मोम की माला, भींड की माला, पिच्छी की माला, हड्डी की माला, दंत की माला, शंख की माला, सींग की माला, पत्र की माला, पुष्प की माला, फल की माला, बीज की माला, हरित (वनस्पति) की माला बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता ४. जो भिक्षु कुतूहलवश तृणनिर्मित माला यावत् हरित वनस्पति की माला रखता है अथवा रखने वाले का अनुमोदन करता है। - ५. जो भिक्षु कुतूहलवश तृणनिर्मित माला यावत् हरित वनस्पति की माला पहनता है (परिभोग, उपयोग करता है) या पहनने वाले का (परिभोग, उपयोग करने वाले का) अनुमोदन करता है। :: ६. जो भिक्षु कुतूहलवश लोहे, तांबे, रांगे, सीसे, चाँदी या स्वर्ण के कड़े बनाता है अथवा बनाते हुए का अनुमोदन करता है। ७. जो भिक्षु कुतूहलवश लोहे के कड़े यावत् स्वर्ण के कड़े रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है। ८. जो भिक्षु कुतूहलवश लोहे के कड़े यावत् स्वर्ण के कड़े का परिभोग-उपभोग करता है (पहनता है) या परिभोग-उपभोग करते हुए (पहनते हुए) का अनुमोदन करता है। ९. जो भिक्षु कुतूहलवश हार, अर्द्धहार, एकावलि, मुक्तावलि, कनकावलि, रत्नावलि, कड़े, भुंज बंध बाजूबंद, कुंडल, कटिबंध (कटिसूत्र), मुकुट, प्रलम्बसूत्र या स्वर्ण कंठ (स्वर्ण सूत्र) आदि बनाता है अथवा बनाने वाले का अनुमोदन करता है। १०. जो भिक्षु कुतूहलवश हार यावत् स्वर्णसूत्र रखता है या रखने वाले का अनुमोदन . करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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