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निशीथ सूत्र
से अनेक प्रकार के ढक्कन या लेप आदि से बन्द किये आहार का निषेध और प्रायश्चित्त : समझ लेना चाहिए।
साधु को देने के बाद कई ढक्कनों को पुनः लगाने में भी आरम्भ होता है, जिससे पश्चात् कर्म दोष लगता है। अतः ऐसा आहार आदि ग्रहण नहीं करना चाहिए। ___यदि सामान्य ढक्कनों को खोलने बन्द करने में कोई विराधना न हो तथा जो सहज ही खोले या बंद किये जा सकते हों, उनको खोल कर दिया जाने वाला आहार ग्रहण करने पर . प्रायश्चित्त नहीं आता है। .. सचित्त निक्षिप्त आहार ग्रहण विषयक प्रायश्चित्त ..
जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुढविपइट्ठियं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइजइ॥ २४४॥
जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आउपइट्ठियं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ॥ २४५॥
जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा तेउपइट्टियं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ॥ २४६॥
जे भिक्खू असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वणस्सइकायपइट्ठियं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ॥ २४७॥ .
भावार्थ - २४४. जो भिक्षु (सचित्त) पृथ्वी पर स्थित अशन, पान... आदि चतुर्विध आहार ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
. २४५. जो भिक्षु (सचित्त) जल पर स्थित अशन, पान आदि चतुर्विध आहार ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
२४६. जो भिक्षु (सचित्त) अग्निकाय पर स्थित अशन, पान आदि चतुर्विध आहार ग्रहण . करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। .
.. २४७. जो भिक्षु (सचित्त) वनस्पतिकाय पर स्थित अशन, पान आदि चतुर्विध आहार ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
इस प्रकार उपर्युक्त रूप में आचरण करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
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