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त्रयोदश उद्देशक - धातृपिंडादि सेवन करने का प्रायश्चित्त
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जे भिक्खू आजीवियपिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ॥ ६७॥ जे भिक्खू वणीमगपिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥ ६८॥ जे भिक्खू तिगिच्छापिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥ ६९॥ जे भिक्खू को(ह)वपिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥ ७०॥ जे भिक्खू माणपिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥ ७१॥ जे भिक्खू मायापिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ॥ ७२॥ जे भिक्खू लोभपिंडं भुंजई भुंजंतं वा साइजइ॥७३॥ जे भिक्खू विज्जापिंडं. जइ भुंजंतं वा साइजइ॥ ७४॥ जे भिक्खू मंतपिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥ ७५॥ जे भिक्खू चुण्णयपिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥ ७६ ॥ जे भिक्खू अंतद्धाणपिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥ ७७॥
जे भिक्खू जोगपिंड भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ। तं सेवमाणे आवजा बाउम्मासियं परिहारहाणं उग्घाइयं ॥ ७॥
॥णिसीहऽज्झयणे तेरहमो उद्देसो समत्तो॥ १३॥ ..कठिन शब्दार्थ - धाईपिंड - धातृपिण्ड - घर के शिशुओं के लालन-पालन क्रीड़ादि हेतु नियुक्त व्यक्ति को देने हेतु बना भोजन, दुईपिंडं - दूतपिण्ड - गृहस्थ के ग्राम-ग्रामान्तर संदेशवाहकजन को देने हेतु बना भोजन, णिमित्तपिंडं - निमित्तपिण्ड - भूत, भविष्य एवं वर्तमान काल विषयक शुभ-अशुभ कथन कर ग्रहण किया जाने वाला आहार, आजीवियपिंडंआजीविक पिण्ड - अपने भोग, उग्र आदि विशिष्ट वंशों का कथन कर जीवन निर्वाह हेतु गृहीत आहार, वणीमगपिंडं - वनीपकपिण्ड - दैन्यपूर्ण वचन कह कर प्राप्त आहार, तिगिच्छापिंडं - चिकित्सापिण्ड - गृहस्थ के रोग शमन हेतु औषधादि बतलाकर प्राप्त आहार, को(ह)वपिंडं - क्रोधपिण्ड - क्रोधपूर्वक गृहीत आहार, माणपिंड - मानपिण्ड - अभिमान पूर्वक गृहीत आहार, मायापिंड - मायापिण्ड - कपट सहित, असत्यादि भाषण पूर्वक प्राप्त आहार, लोभपिंडं - लोभपिण्ड - लोभ - लोलुपता वश प्राप्त उत्तम, सरस
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