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नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण नामकरण किया हो। नि!हण
दशवैकालिक आचार्य शय्यंभव की स्वतंत्र रचना नहीं अपितु निर्मूढ कृति है। नियुक्तिकार के अनुसार आत्मप्रवाद पूर्व से धर्मप्रज्ञप्ति (चतुर्थ अध्ययन), कर्मप्रवाद पूर्व से तीन प्रकार की पिंडैषणा (पंचम अध्ययन), सत्यप्रवाद पूर्व से वाक्यशुद्धि (सप्तम अध्ययन) तथा शेष अध्ययनों (१, २, ३, ६, ८, ९, १०) का नवमें प्रत्याख्यान पूर्व की तृतीय आचार-वस्तु से नि!हण हुआ। नियुक्तिकार दूसरा विकल्प प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि शय्यंभव ने मनक को अनुगृहीत करने के लिए सम्पूर्ण दशवैकालिक का नि!हण द्वादशांगी गणिपिटक से किया। दिगम्बर साहित्य में इसके कर्तृत्व के विषय में 'आरातीयैराचार्यैर्नियूढं' मात्र इतना उल्लेख मिलता है। महानिशीथ के अनुसार महावीर गौतम से कहते हैं—“मेरे बाद निकट भविष्य में द्वादशांगी के ज्ञाता आचार्य शय्यंभव होंगे। वे अपने पुत्र के लिए दशवकालिक का निर्माण करेंगे। वह सूत्र संसार-तारक और मोक्षमार्गप्रदर्शक होगा। इसे पढ़कर दुष्णम काल के अंत में होने वाला दुःप्रसभ नामक साधु आराधक होगा।"
तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य का अभिमत है कि चतुर्दशपूर्वी की वही रचना आगम के अंतर्गत आती है, जो केवलज्ञानी के वचनों की साक्षी से की जाए। अत: जयाचार्य ने प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध में यह कल्पना की है कि पूर्वो के आधार पर रचित दशवकालिक का कलेवर बहुत बृहत् था। शय्यंभव ने उसको लघु बना दिया। रचनाकाल
वीर-निर्वाण के छत्तीसवें वर्ष में आचार्य शय्यंभव का जन्म हुआ। ६४ वें वर्ष में वे दीक्षित हुए। दीक्षा के आठ वर्ष बाद उन्होंने इसका निर्वृहण किया अत: वीर-निर्वाण के ७२ वर्ष बाद उन्होंने इस ग्रंथ का नि!हण किया। विंटरनित्स के अनुसार वीर-निर्वाण के ९८ वर्ष बाद इसकी रचना हुई। इतना निश्चित है कि वीर-निर्वाण की प्रथम शताब्दी में ही इस ग्रंथ का नि!हण हो चुका था। भाषा-शैली
सूत्रात्मक शैली में गुंफित इस ग्रंथ में धर्म और अध्यात्म के अनेक रहस्यों का उद्घाटन हुआ है। यह गद्य और पद्य मिश्रित रचना है फिर भी इसमें पद्यभाग अधिक है। बीच-बीच में अनेक उपमाओं के प्रयोग से इसकी भाषा व्यञ्जक एवं प्राञ्जल हो गयी है। अर्धमागधी और जैन महाराष्ट्री भाषा का सम्मिलित प्रयोग इस ग्रंथ में मिलता है। अध्ययन एवं विषयवस्तु
दशवैकालिक सूत्र में दस अध्ययन तथा दो चूलाएं हैं। ग्रंथ के अवशिष्ट अर्थ का संग्रह करने के लिए चूला का वही स्थान है, जो स्थान मुकुट में मणि का है। नियुक्तिकार ने चूलिका को उत्तरतंत्र
१. दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन पृ. ११ । २. दशनि १५, १६ । ३. दशनि १७। ४. प्रश्नोत्तर तत्वबोध २०/८३२।
५. प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध १९/८२२, ८२३ । ६. दशअचू पृ. ६; सेसत्थसंगहत्थं मउड-मणित्थाणीयाणि
दो चूलज्झयणाणि।
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