Book Title: Nirtivad Author(s): Darbarilal Satyabhakta Publisher: Satya Sandesh Karyalay View full book textPage 8
________________ निरतिवाद ४ ] किसी आदमी को खर्च करने के लिये विवश नही किया जा सकता । इसलिये समान आमदनी मे भी सचय हो सकता है फिर न्यूनाधिक आमदनी मे तो सचय और भी अधिक सभव है । तीसरी बात सचय के अधिकार को I रोकना है यह भी अशक्य है । इस विपय मे ज़बर्दस्ती की जाय तो अन्याय होने की पूरी सम्भावना है ( अमुक अश मे सचय की आवश्यकता भी है ) इस प्रकार सचय होना मानव प्रकृति को देखते हुए अनिवार्य है । हा, उस पर अकुश लगाये जा सकते है और लगाना चाहिये । अति सचय न हो, सचय सचय को बढानेवाला न हो इसका विचार रखना आवश्यक है । हमारे सामने तीन मार्ग है-- १ सचय की मात्रा और प्रकार का निर्णय सरकार करे और इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का आर्थिक सूत्र सीवा सरकार के हाथ मे रहे । २ व्यक्ति को इस विषय मे पूर्ण स्वतन्त्रता हो वह किसी भी प्रकार धन पैदा करे और कितना भी सचय करे इस पर अकुश न हो । ३ - व्यक्ति को आर्थिक स्वातन्त्र्य हो पर उसके दुरुपयोग को रोकने के लिये तथा बेकारी हटाने के लिये सरकार का अर्थात् समाज का पर्याप्त अकुश हो । पहिला मार्ग साम्यवाद का है दूसरा मार्ग पूंजीवाद का और तीसरा निरतिवाद का । पहिले मार्ग मे सात खराबियाँ है: - [क] व्यक्तित्व के विकास का निरोध, [ख] दासता, [ग] कर्तव्य मे आनन्द की कमी और बोझ का अनुभव, [घ] सरकार या अधिकारियो की निकुगता रोकने की अक्षमता, [ ड] रुचि की अतृप्ति का कष्ट [च] निम्न श्रेणी के कार्य - कर्ताओ के चुनाव मे बाबा और उसके मन का . असन्तोप, और अधिकारियो का पक्षपात अन्धा - धुन्धी, [ छ ] सरकार के ऊपर असहय बोझ या शक्ति के बाहर उत्तरदायित्व - इससे पैदा होनेवाली मँहगाई । 1 ( क ) यहा व्यक्तित्व-विकास-निरोध के दो कारण है । पहिला तो यह कि सरकार के ऊपर I निर्भर हो जाने से मनुष्य मे उत्तेजना का अभाव हो जाता है । जैसे जगल मे घूमने वाले शेर और पालतू शेर मे अन्तर है वैसा ही अन्तर यहा हो जाता है । 'कुछ विशेष लाभ तो है ही नही फिर क्यो सिर खपाये' इस प्रकार की मनोवृत्ति विकास को रोकती है । दूसरा कारण यह कि अगर इस मनोवृत्ति को दबा भी दिया जाय तो भी मनुष्य को कार्य करने की पर्याप्त स्वतन्त्रता न होने से विकास रुक जायगा । आर्थिक सूत्र सीवा सरकार के हाथ मे होने से प्रत्येक मनुष्य नौकर हो जायगा । इस प्रकार वह एक बडी भारी मशीन का पुरजा बनकर रह जायगा । जीवननिर्वाह के लिये इच्छानुसार कार्य चुन लेना, उस पर नये ढग की आजमाइश करना अत्यन्त दुर्लभ हो जायगा । इसीसे व्यक्तित्व का विकास रुकेगा । 1 ( ख ) आर्थिक सूत्र सर्वथा पराधीन हो जाने से मनुष्य मे दासता आ ही जायगी । नौकर को तो इतनी सुविधा मिलती है कि एक जगह न पटी दूसरी जगह चले गये, दूसरे गाव चले गये, दूसरा मालिक देख लिया पर सरकार के हाथ मे सब का आर्थिक सूत्र आ जाने से यह सुविधा और स्वतन्त्रता नही रहेगी । अब एक जगह काम छोड़कर दूसरी जगह जाना तुम्हारे हाथ मे नही है और सरकार के सिवाय दूसरा कोई मालिक नही है इसलिये जीवन भर सरकार की ही नौकरी करना पडेगी इस प्रकार का अटूटPage Navigation
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