Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay

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Page 22
________________ निरतिवाद १८ ] और सिर्फ ७५० का व्याज ही उसे मिलेगा। दो विश्वासघात करके हजम कर जाओ और जिसने [५] अगर पति पत्नी मे से कोई भी पैता- तुमको विश्वासपात्र नहीं समझा या तुम्हारी लीस वर्ष से कम उम्रका न हो तो दोनो के नाम आवश्यकता का मूल्य नही समझा वह सुरक्षित से वेक मे रुपया जमा होगा । दोनो मे से जो रहे यह तुम्हारे जीवन का बड़ा भारी पाप है। अन्त तक जीवित बचेगा उसी को वह पेन्शन- अगर सम्पत्ति का विभाजन ही करना है तो नीति व्याज मिलता रहेगा । पर दोनो मे से जिसकी और कानून के बलपर करो इस तरह विश्वासघात उम्र कम होगी उसी के अनुसार व्याज की दर करके नही । निरतिवाद मे किसी का ऋण माफ निश्चित की जायगी । अगर पति पचाप्त वर्षका नहीं किया जायगा । हा, ऋण मे जितना भाग है और पत्नी पैतालीस की तो व्याज की दर अयोग्य होगा या सारा ऋण ही अयोग्य होगा ४५ वर्ष के अनुसार आठ आना रहेगी । पचास तो उतना ऋण नाजायज ठहरा दिया जायगा पर के अनुसार नव आना नही । माफ नही किण जायगा । दोनो के मरने के बाद वह व्याज नाबालिग ख-कोई आदमी अपने को दिवालिया घोपित सन्तान को मिलेगा। नहीं कर सकेगा । उसे जीवन भर ऋण चुकाने टोना मे से कोई एक मर जाय और दूसरा का यन्न करना पडेगा। शादी करले तो उसको व्याज मिलना बन्द हो दिवालिया की प्रथा पूँजीवाद और पूंजीपति जायगा । वह पहिले दम्पति की नाबालिग सन्तान बढाने मे सहायक होती है । एक पूंजीवादी व्यक्ति को मिलने लगेगा । सन्तान न होगी तो किसी को पूंजीपति बनने के लिये चतुराई के नाम पर बदन मिलेगा। मागी करके इधर उधर से लाकर सम्पत्ति इकठ्ठी करता है । कुछ दिनो वाद दिवाला निकाल देता ४ ऋण चुकाना अनिवार्य है । कुछ सम्पत्ति पत्नी के नाम कुछ नाबालिग क-जो ऋण लिया है वह ईमानदारी से पाई। बच्चे के नाम कर देता है । कुछ किसी अन्य ढग पाई चुकाना मनुष्य मात्र का नैतिक कर्तव्य है । से छिपा जाता है । कुछ दिनो बाद दूसरे नाम ऋण न चुकाना एक प्रकार की चोरी है और से दकान चलाता है फिर इसी तरह की गडबडी ऋण अस्वीकार करना तो डकैती है। इसलिये __ करता है । इस प्रकार एक दो बार दिवाला निकाल प्रत्येक व्यक्तिको ऋण चुकाना अनिवार्य होगा। कर अच्छा श्रीमन्त बन बैठता है । बहुत से पूजीयह कहना कि ऋण देनेवाले के पाम पति तो इसी प्रकार बन गये है। ऐसे लोग अपने आवश्यकता से अधिक धन होगा इसीलिये उसने साथी पंजीपतियो का ही नही, किन्तु गरीबो ऋण दिया। वह अविका धन अगर किसी ने का भी वन हडप जते है । कोई गरीब दो दो चार खा लिया तो क्या अन्याय है, ठीक नही । आव- चार रुपये जोडकर सेठजी के यहा जमा कर देता श्यकता से अधिक धन तो बहुतो के पास होगा है। सेठजी का कल दिवाला निकलनेवाला है परन्तु जिसने तुम्हारी ही इच्छा के अनुसार तुम्हारे और राततक मोटरे खरीदी जा रही है । इस लिये मौके पर सहयोग दिया । उसे ही तुम धोखा प्रकार धोखा देकर कछ लोग पूँजीपति बन बैठत

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