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निरतिवाद सन्देश तेरहवा
न्यायालय से न्याय करावे । अगर बाहर का कोई राष्टीयता का समर्थन वही तक होना चाहिये राष्ट्र राष्ट्रसघ के किसी राष्ट्रपर आक्रमण करे जहा तक वह दूसरे राष्ट्रो पर आक्रमणात्मक न हो। तो सब मिलकर उसका बचाव करे । इस प्रकार
भाष्य-जो देश राष्ट्रीयता की मंजिल तक धीरे धीरे दुनिया के समस्त राष्ट्रो मे सुलह शान्ति ही अभी पूरी तरह नहीं पहुंचे है उन्हे तो राष्टी- कायम को जाय । यता अपना ध्येय बनाना चाहिये । जैसे भारत, भाष्य-वर्तमान मे जो यूरप मे राष्ट्रसघ है चीन आदि देश है। परन्तु इटली, जापान, इग्लेण्ड वह तोड देना चाहिये । उसने कमजोर राष्ट्रो को आदि राष्ट्रो की राष्ट्रीयता आक्रमणात्मक हो गई है। वोखा देकर गुलाम बनाने मे मदद ही पहुंचाई है। वह मनुष्य जाति के लिये अभिशाप है । इस शाप जैसा कि एबीसीनिया के मामले मे हुआ और और पाप के कारण मनुष्य जाति को सैकडो वो चीन के विपय मे भी हुआ । जब तक राष्ट्रतक चैन न मिलेगी । आज एक राष्ट्र सताया सघ का कोई एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रपर सवार होगा जाता है कल वही बदला लेकर सतानेवाले को तब तक राष्ट्रसघ एक नपुसक सस्था ही रहेगा । सताता है इस प्रकार अविश्वास और अशान्ति उसके न होने से एक लाभ यह होगा कि निर्वल का राज्य छाया हुआ है । जनशक्ति और धन- राष्ट्र उमके भरोसे ठगे न जायगे । भारत सरीखे शक्ति मनुष्य के सहार मे लग रही है। गरीब देशका अपनी तिजोरी मे से रुपया देकर
अगर किसी देश की जनसख्या बढ़ रही इस राष्ट्रसघ सरीखी विश्वासघाती सस्थाको पोषण है तो किसी उपाय से सतति-नियमन करना
देना ठीक नही । इसलिये भारत को उससे अलग चाहिये अगर वह न हो सकता हो तो बारहवे
हो जाना चाहिये। भले ही साम्राज्यवादी देश' सन्देश के नियमानुसार दूसरे देशो मे-जहा बसने
उसको बनाये रक्खे । यदि भारत सरकार राष्ट्रकी गुजायश हो-बस जाना चाहिये । पर वहा
सघ से सम्बन्ध-विच्छेद न करे तो काग्रेस सरीखी वसने के लिये उन देशो पर आक्रमण कर बैठना,
सस्थाको सम्बन्ध-विच्छेद घापित कर देना चाहिये । उन देशो को गुलाम बनाना, वहा के नागरिको राष्ट्रसघ मे जनसख्या के अनुसार प्रतिकी सम्पत्ति छीन कर अपने देशवालो को दे देना निवि इस तरह हो । अत्याचार और बर्वरता है । यह इस बात का ५ करोड तक
१ प्रतिनिवि दुखद प्रमाण है कि सामूहिक रूप मे भी मनुष्य १५ करोड तक अभी जानवर है । यह जानवरपन जाना चाहिये। ३० करोड तक ३ , सन्दश चौदहवा
५० करोड तक ४ , ऐसे राष्टो का जो किसी दूसरे राष्ट्रो को
५० करोड के उपर ५ , पराधीन नही बनाना चाहते न वनाये हुए हैं- पाच से अविक प्रतिनिवि किसी राष्ट्र के न एक राष्ट्रसघ हो । जिसमे जन-सख्या के अनुसार हो । जिन देशो मे प्रजातत्र सरकारे है उन देशो प्रतिनिधि लिये जावे । ये राष्ट्र आपस मे सरकार ही प्रतिनिवि भेने । जहा सरकार मे आक्रमण न करे । झगडा होनेपर राष्ट्रसघ के प्रजानुमोदित नहीं है वहा की सर्वश्रेष्ठ राणीय
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