Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay

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Page 56
________________ ५२ ] निरतिवाद इनके लाखो कुटुबी इसी तरह के उदार वन विक है या केवल नौकरी के लिये है । इसके जॉयगे। लिये उम्मेदवार के पहिले चरित्र का विचार ___हमारी जाति मे से इतने अनुपात मे नौक- किया जाय । रियाँ मिलना चाहिये' आदि मागे और झगडे इस यह कहा जा सकता है कि इस तरह से शान्त हो जॉयगे । क्योकि जो आदमी सर- नौकरी के लिये किसी के धर्म पर या विचारो कारी नौकरी मे जायगा वह तो राष्ट्रीय जाति के पर हस्तक्षेप करना तो मनुष्यको गुलाम बनाना है । सिवाय और किसी जाति का न रह जायगा । सो नौकरी में आशिक गलामी तो है ही। तब जातिवाले अपना आदमी गुमाने को यह आज भी अमुक तरह के विचारो का बधन है माग ही पेश न करेगे । और करे भी तो इसमे तब उदारता का बधन क्या बुरा है ? दूसरी बात दूसरो का इतराज कम हो जायगा । यह है कि जो वस्तु कल्याणकारी है उसे बधन भारतवर्ष मे नौकरी पर रखते समय प्रत्येक नहीं कह सकते । प्रेम का बन्धन, कर्तव्य का नौकर से यह प्रतिज्ञाएँ ले लेना चाहिये। बधन, ईमान का वधन आदि बधन या गुलामी १-मै आज से अपने को हिन्दू मुसलमान नहीं है । मनुष्य को सकुचित वातावरण मे लाआदि न मानूगा न ऐसी सस्थाओ का सदस्य देना बवन नहीं है बल्कि बधन का नाश है । रहूगा जो साम्प्रदायिक या जातीय हो । __ तीसरी बात यह है कि साम्प्रदायिक और जातीय २-मै खानपान मे तथा विवाह मे जाति- कट्टरता छीनने से धार्मिक भावनाएँ नहीं छिनती । भेद का विचार न करूगा अपनी अनुकूलता का अपनी रुचि के अनुसार पुस्तक पढने, पूजा ही विचार करूगा । आदि करने की मनाई नही है। स्वतन्त्र विचा३-नौकरी के प्रत्यक कार्य में निपक्षता रक बनने की मनाई नही है । ‘मनाई सिर्फ इस से व्यवहार करूगा । किसीसे लॉच रिश्वत आदि बात की है कि धर्म और जाति की दुहाई देकर न लूगा । राष्ट्र मे सघर्ष पैदा न किया जाय । ४-साम्प्रदायिक या जातीय मामलो मे विल आजकल अधिकाश सरकारी नौकरो की कुल नि:पक्ष रहगा और साम्प्रदायिक काई जाति या धर्म नहीं होता । भरपूर पैसा या जातीय कटुता बढाने का कोई कार्य न करूगा । मिलता है चैन से गुजरती है न खुदा याद आता है न ईश्वर, न कुरान न पुरान, गरीब दुनिया की ५-सम्प्रदाय और जाति के नामपर मै तो याद ही क्या आयगी । पर ये लोग अपनी कोई माग पेश न करूगा। महत्त्वाकांक्षाओं के कारण अपने स्वार्थ का समर्थन ६-मैं जनहित और न्याय को ही सब से कराने के लिये जाति और मजहब का सहारा वटा शास्त्र मानूगा। इनके विरोध मे किसी लेकर भोले लोगो मे विप फैलाते है । अपना उल्लू शास्त्र को न रक्खगा। सीवा करते है और जनता मे जगलीपन' भरते है नौकरी पर रखते समय इस बात की जॉच इसलिये इस बात की जरूरत है कि सरकार। ग्वाम तौर पर करली जाय कि ये प्रतिज्ञाएँ वास्त- आदमी जाति और सम्प्रदाय से परे हा और सदा

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