Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay

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Page 57
________________ संदेश सोलहवा [ ५३ के लिये परे हो जिससे राष्ट्र मे राष्ट्रीयता स्थायी चुनाव का जो ढग है वह भी ऐसा है कि हो जाय । केवल सेवाभाव से प्रेरित होकर कोई वहा न सन्देश सोलहवाँ जाय । कोई आदमी अपने समय शक्ति विद्वत्ता धारासभा जिला बोर्ड तहसील बोर्ड म्युन्यु आदि का लाभ जनता को मुफ्त देना चाहता है सपलिटी आदि सस्थाओ मे ऐसे ही सदस्य जा और उससे कहा जाता है कि सेवा करने की सके जो अपने को किसी जाति या सम्प्रदाय का उम्मेदवारी के लिये पचास या पॉचसौ रुपये डिपाप्रतिनिधि न मामते हो । जो सर्व-धर्म-समभावी जिट रक्खो । अच्छी से अच्छी अफसरी की और सर्वजातिसमभावी हो। सेवा करने के लिये नौकरी पाने के लिये इस प्रकार डिपाजिट कोई जिनके पास काफी समय हो और जो उन सस्थाओ नहीं रखता फिर निस्वार्थ सेवा के लिये इस प्रकार के कामो मे कुछ समझदारी रखते हो । अपमान कौन सहन करेगा ? जो लोग निस्वार्थ तथा निस्वार्थ वृत्ति से काम करने को तैयार हो । सेवा के कार्य मे दस बीस रुपया देते भी हिच किचाते है वे हजारो रुपये चुनाव की लडाई भाष्य-ये सस्थाऍ किसी एक जाति के लिये नहीं मे फूंक देते है पचास पॉचसो डिपाजिट रखते है हैं इसलिये इनमे साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व-या साम्प्र घर घर जाकर वोटरो के हाथ जोडते है उन्हे दायिक निर्वाचन न होना चाहिये साथ ही प्रत्येक मोटरमे बिठाकर लेजाते है इतनी दीनता और अपसदस्य समभावी ईमानदार और जिम्मेदार होना मान कोई निस्वार्थ सेवा के लिये कैसे सहन कर चाहिये । धारासभाओ के लिये तो पहिले लिख सकता है ? और फिर वे लोग जो दूसरी जगह दो आया हू यहा म्युन्युसपलिटी और डिस्टिक्ट बोर्ड चार रुपयो के लिये भी मुँह ताकते है । आदि के विषय में विचार करना है। वास्तव मे इसलिये सच्चे सेवको को खोजने के लिये इनकी बडी दुर्दशा है । इनमे फीसदी पचहत्तर के करीब स्वार्थी लोग भर जाते है और चुनाव मे निम्नलिखित सूचनाएँ उपयोगी होगी। तो कहीं कही गुडाशाही तक मच जाती है । इन १ प्रान्तीय वारासभा, बडी धारासभा, चुनावो ने हर एक शहर और गावो मे दलबन्दी डिस्क्टि बाडे म्मुन्युसपालिटी आदि की सघटनाओ कर दी है । कहा तो यह जाता है कि हम सेवा और उनके कार्य का परिचय देनेवाला एक पाठ्यके लिये जाते है, पर सेवा के लिये इतनी वेचनी क्रम तैयार किया जाय उसकी परीक्षा हरएक क्यो ? किसी बीमार की सेवा करने के लिये तो नागरिक दे सके । इन परीक्षापास नागरिको मे इतनी बेचनी नहीं होती किसी भले आदमी को से ही कोई चुनाव के लिये खडा किया जाय । भूखा देख कर इतनी बेचनी नही होती फिर वहा बडे बडे नेताओ और विद्वानो को बिना इतनी वेचैनी क्यो ? तुममे योग्यता है भावना है परीक्षा दिये हुए ही सरकार प्रमाण पत्र दे दे । लोग चाहते है तो बुलाने पर अवश्य जाओ । पर २-चुनाव के लिये कोई आदमी स्वय खडा सेवा करने के लिये 'सौ सौ धक्के खाय तमाशा न हो किन्तु वोटरो की संख्या का करीव दमत्रा घुसके देखेगे' वाली कहावत क्यो चरितार्थ भाग जिसको चुनने के लिये अर्जी दे वहीं करते हो? आदमी चुनाव के लिय खडा समझा जाय । जहा

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