Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Died Dest 68 Resort vote for संस्थापक-सत्यसमाज दरबारीलाल सत्यभक्त Jet १२ eaf Oak 035 tseiti信号 30+ 35+ 961 35+ 350 700 789 304 get 30 jeb 38 TEA ZED YES FO JN 350 F8 958 LED JOD BOT 350 Pls निरतिवाद - प्रणेता 03 Sep 302 300 Job 358 Jeg 953 350300303005 Motee निरतिवाद J Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ =::do=::::::E. 3:47MI:→ निरतिवाद अर्थात् समाजवाद की आत्मा का भारतीय अवतार 'अति' इधर कही अति उधर कही, 'अति' ने अन्धेर मचाया है । कोई कण कण को तरस रहा, अति- उदर किसी ने खाया है । या तो नचती उच्छृंखलता, अथवा मुर्दापन छाया है । 'अति' का यह अति अन्धेर देख, प्रभु निरतिवाद बन आया है || प्रणता श्री दरबारीलाल सत्यभक्त सस्थापक - सत्यसमाज - 1 कुलपति-सत्याश्रम वर्धा [ सी पी ] अगस्त १९३८ ई. मूल्य छह आ 88=4ORNICE= : :: == Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक के दो शब्द, HAATAN ज्य सत्यभक्तजी ने कुछ समय पहिले सत्यसमाज की इक्कीस मागे जनता के सामने । रक्खी थी। इन मांगोपर आचार्य महावीर प्रसादजी द्विवेदी, देशभक्त प सुन्दरलालजी, श्री Ma किशोरलालजी मशरूवाला, श्री धर्माधिकारी, श्री जनरल अवारी, वारासभाओ के कुछ WAR सदस्य तथा अन्य सज्जनो ने अपने अपने मत प्रगट किये थे । तव आवश्यकता मालूम हुई कि मागो का भाष्य किया जाय । जब वह किया गया तब निरतिवाद के नाम से एक बाट, तथा एक पुस्तक ही तैयार हो गई जो आपके सामने है। जिसे आज साम्यवाद या समाजवाद कहते है वह इसमे नही है पर जो कुछ है वह समाजवाद के उद्देश को पूरा कहता है । इसरिये पूज्य सत्यभक्तजी ने यह ठीक ही कहा है कि यह समाजवाद की आत्मा का भारतीय अवतार है। यह योजना देश के ही नही, विश्व के सामने एक नई साफ और व्यावहारिक योजना है जो धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक आदि क्षेत्रो मे पथ-निर्माण करती है। सत्यसमाज की संस्थापना के बाद श्री सत्यभक्तजी को यह अनुभव हो रहा था कि आज के युग मे:राजनीति और अर्थ शास्त्र पर प्रभाव डाले बिना अन्य क्षेत्रो मे सुधार कठिन है । क्रान्ति या सुधार एकागी नही होता वह अपना असर चारो तरफ डालता है । श्री सत्यभक्तजी धर्म और रातनीति को समाज-शास्त्र का ही एक अग मानते है इसलिये यह कैसे हो सकता था कि सत्यसमाज इन विषयो पर अपना कोई सन्देश जगत के सामने न रक्खे । श्री सत्यभक्तजी जो साहित्य निर्माण कर रहे है वह पूर्ण निःपक्ष और अमर है सत्य और अहिंसा के व्यावहारिक रूपो की मूर्ति है जनकल्याण का सुगम और साफ रास्ता है। पर इसे अच्छी तरह समझने की जीवन मे उतारने की और उसके लिये नि स्वार्थ सगठन की आवश्यकता है । इसके लिये हम आप सबको प्रयत्न करना चाहिये । -सूरजचंद डॉगी प्रकाशक, -सूरजचंद डॉगी सत्य सन्देश कार्यालय वर्धा सी पी. . मुद्रक, -मै ने जर सत्येश्वर प्रिन्टिंग प्रेस वर्धा सी. पी. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नि र ति वा द प्रारम्भिक धर्म मे इसीलिये दान और त्याग को महत्त्व है उसकी गिनती दश धर्मों में की गई है । अप'अति सर्वत्र वर्जयेत्' अति को सब जगह रिग्रह धर्म माना गया है । जैन और बौद्ध धर्म ने रोकना चाहिये । ससार मे पूर्ण समता का होना असभव है और वर्तमान की विषमता भी सही नहीं परिग्रह को पाप माना है । त्याग और दान की जा सकती । ये दोनो ही अतिवाद है । मार्ग महिमा गाई है । जीवन की आवश्यकताएँ कम से वीच मे है । इन दोनो अतिवादो को छोडकर __कम करके अपना सर्वस्व छोड़ देने का आदर्श मध्यका समन्वयात्मक मार्ग निरतिवाद है । जीवन बतलाया गया है । ईसाई धर्म मे इसीलिये अपना की सभी बातो को लेकर निरतिवाद के अनुसार धन गरीबो को बॉट देने का उपदेश है और यहा विचार किया जा सकता है । परन्तु मुख्यता धन तक कहा गया है कि सुई के छिद्र मे से ऊँट की है | क्योकि इतिहासातीत काल से जगत के निकल जाय तो निकल जाय पर स्वर्ग के द्वार अधिकाश आन्दोलन अर्थ-मूलक रहे है अथवा मे से धनवान नहीं निकल सकता । इसलाम मे उनके किसी कोने मे अर्थ अवश्य रहा है । आज इसीलिये व्याज को हराम बताया गया है । गरीबो तो यह समस्या और भी जटिल है। यन्त्रो ने जहा की सहायता पर जोर दिया है । समान बॅटवारे मानव समाज को हरएक दिशा मे द्रुतगामी बना का तथा परिश्रम करके खाने का विधान है । दिया है वहा आग पीछे का भेद भी विकट कर धर्मों के इस प्रयत्न से मानव जाति ने काफ़ी दिया है । एक तरफ असख्य धनराशि है तो । लाभ उठाया है । पर समस्या हल नहीं हो पाई । दूसरी तरफ पीठ से मिला हुआ पेट है । यह दान की प्रथाने गरीबो को कुछ सहायता दी तथा विपमता इतिहासातीत काल से है पर आज यह त्याग मे सम्पत्ति के अधिकारी बनने का दूसरो विकटाकार धारण कर चुकी है। को अवसर दिया । पर इससे पूर्ण तो क्या पर्याप्त धर्मो ने जहा जीवन मे अनेक समस्याओ को सफलता भी नहीं मिली । और आज तो दान सुलाझाने का प्रयत्न किया है वहाँ अर्थ समस्या और त्याग विकृत और दुर्लभ भी हो गये है इस. को भी हल करने की कोशिश की है। हिन्दू- लिये जटिलता और बढगई है । Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] निरतिवाद दान से जहा थोडी बहुत सुविधा मिलती है यह कल्पना सुन्दर है आदर्श है, चाहने योग्य है। वहां उसमे एक दोष भी है । इससे दीनता और पर कल्पना है और असम्भव है । इससे इतना आलस्य बढ़ता है । दान तो सिर्फ अपाहिजो और ही कहा जा सकता है कि जैन धर्म चरम सीमा सार्वजनिक कार्यों और ऐसी ही सस्थाओ के के साम्यवाद का प्रचार इस दुनिया मे सुखकर लिये उपयोगी है । बेकारो का पेट भरने के उद्देश्य समझता है । से जो दान दिया जायगा उससे लोग आलसी इससे उतरती व्यवस्था मे कुछ लोग साम्प और दीन बनेगे । उनका मनुष्यत्व नष्ट हो जायगा। त्तिक समानता की कल्पना करते है और एक इसलिये आवश्यकता इस बात की है कि सब को तरह से कुटम्ब-व्यवस्था को भी नष्ट कर देना काम और रोटी मिले । आर्थिक समस्या को सुलझान __ चाहते है । प्रत्येक पुरुप हरएक स्त्री का पति हो के लिये हम कौन से पथ से चले इसका निर्णय प्रत्येक स्त्री हरएक पुरुप की पत्नी हो, प्रत्येक बच्चा हमे करना चाहिये । समाज की सन्तान हो, योग्यतानुसार सब लोग साम्यवाद अव्यवहार्य काम करे, गाव भर का एक भोजनालय हो, उप भोग के साधन सब को बराबर मिले और जमीन यूनान मे इस समस्या को हल करने के लिये प्लेटोने प्रयत्न किया था। पर वह प्रयत्न सफल मकान दूकान कारग्वाने आदि सभी सरकारी हो । न हो सका । वह आर्थिक साम्यवाद का आदर्श यह व्यवस्था बडी सुन्दर मालूम होती है रूप था । वह साहित्य की सामग्री बना । इसके ऐसा हो सके और गान्ति रह सके तो वैकुण्ठ बाद इस विपय के आचार्यों मे जिनका नाम ही पृथ्वी पर नजर आने लगे । पर इसे प्राप्त करने विशेप रूप मे लिया जाता है वे है कार्लमार्क्स । के लिये जितने दिन लगेगे उसक सौवे भाग समय इनके विचार अवश्य बहुत अश मे सफल हुए और तक भी यह टिकाई नही जा सकती । मानव मे जो रूस सरीखे पिछडे हुए विशाल देश मे साम्यवादी स्व और स्वकीय का मोह है उसे दूर करना अशक्य शासनपद्धति प्रचलित हुई। है । स्व का सर्प मिटाया नही जा सकता । इस साम्यवाद के नाना रूप है। हर तरह व्यवस्था मे स्व का इतना सघर्प होगा कि उसे की पूर्ण समानता तो असम्भव ही है । जैनियोने रोकने के लिय अकुश लगाना पडेगे और वही से इस प्रकार की समानता की एक कल्पना फिर विपमता शुरू हो जायगी। अवश्य कर रक्खी है पर वह आदर्श मनुष्य आलस्य का पुजारी है । दार्शनिकोने होने पर भी निरी कल्पना है। ऐसा युग न कभी जो मोक्ष की कल्पना की है वह भी अनन्त था न आयेगा जब समाज मे मूर्ख विद्वान का, रोगी आलस्य के सिवाय और कुछ नही है । आज जो नीरोग का, शरीर से ऊँचे नीचे का, अल्पायु एक के बाद एक आविष्कार हो रहे है वे सव दीर्घायु का, निर्बल बलीका, सुन्दर असुन्दर का परिश्रम घटाने, आराम पहुँचाने अर्थात् आलस्य की भेद मिट जाय और सम्पत्ति का कण कण सार्व- उपासना के लिये है । मनुष्यको अगर यह मालूम जनिक हो जाय । शास्य शासक आदि कुछ न हो कि हमको हर हालत मे भर पेट रोटी रहे और परम शान्ति परमानन्द विराजमान हो। मिलेगी ही और अधिक करने से अधिक कुछ मिलने Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साम्यवाद अव्यवहार्य [३ वाला नहीं है तब वह कम से कम काम करने मूल वात अर्थ की है । आजकल साम्यवाद की कोशिश करेगा । नये नये वहानो का आवि. के आन्दोलन मे आर्थिक साम्य ही मुख्य है । पर प्कार होगा। अगर आप उन बहानो पर ध्यान क्या यह सम्भव है ? यह बात तभी सभव है न देगे तो उस उपेक्षा की चक्की मे सच्चे पीडित (१) जव प्रत्येक मनुष्य की आमदनी एक समान भी पिस जायगे । नकली बीमारो के साथ असली हो (२) उसका खर्च भी एक समान हो बीमार भी पिस जॉयेंगे । डॉक्टरो से परीक्षा कराई (३) धन सचय करने का किमी को अविभी जाय तो रोगी-जिसमे मौके मौके पर सभी लोग कार न हो । पर क्या ये तीनो बाते सम्भव है ? क्या शामिल होते है-डाक्टरो की कृपा के भिखारी होगे। इससे शान्ति सुव्यवस्था और उन्नति हो सकती है ? रोगियो से डाक्टरो को कुछ मिल तो नही सकता पहिले समान आमदनी की बाते लेले । इस इसलिये उनके द्वारा उपेक्षा और तिरस्कार होगा। मे सब से वडी बाधा यह है कि प्रत्येक मनुष्य रोगियो मे दीनता आयगी । धीरे धीरे कृपावान् की योग्यता और सेवा एक सरीखी नहीं होती। और कृपोपजीवीका भेद बडे भयकर रूप मे न सभी सेवाओं का मूल्य एक सरीखा किया जा मनुष्यता का सहार करने लगेगा | यहा अभी सकता है । बर्तन मलने या झाडू देनेवाली एक सकेत मात्र किया है | विस्तार से अगर इसका मजदूरिन और नये नये आविष्कारो के लिये दिन चित्रण किया जाय तो उससे हम घबरा उठेगे। रात सिर खपानेवाला और प्राणो को भी दावपर कौटुम्बिक व्यवस्था को नष्ट कर देने का लगा देने वाला एक वैज्ञानिक, इन दोनो की अर्थ होगा मनुष्यता को तिलाञ्जलि देना । इससे सेवा एक सरीखी नहीं हो सकती। अगर सबकी दाम्पत्य की सुविधाएँ और आनन्द नष्ट हो जायगा सेवा का मूल्य एक सरीखा हो जाय तो मनुष्य अविकाश सन्तान वात्सल्यहीन रहेगी और उसमे अधिक से अविक काम करने के बदले कम से हृदय हीनता आ जायगी। पुरुप नयी नयी नारियो कम काम करने की ओर झुकेगा । न तो योग्यता की तलाश मे और नारी नये नये पुरुपो की बढाने की तरफ उसका व्यान जायगा न योग्यता तलाश मे सदा व्यस्त रहने लगेगे, सारा राष्ट्र एक का अविक उपयोग करने की तरफ । इसलिये प्रकार का वेश्यालय बन जायगा । इसलिये कैंटु- सब मनुष्यों की आमदनी एक सरीखी नहीं हो म्विक व्यवस्था को नष्ट कर देना अत्यन्त अकल्या- सकती । हा, यह हो सकता है और होना णकर है । सच पूछा जाय तो यह साम्यवाद का चाहिये कि आमदनी मे जमीन आसमान का कल्पना चित्र है, स्वप्न है । जहा साम्यवाद का अन्तर न हो । एक आदमी पाच रुपया महीना प्रचार हुआ वहा भी कौटुम्विक व्यवस्था तोड़ी पाये और दूसरा दस हजार या बीस हजार रुपया नहीं गई । विवाह बन्धन ढीला किया गया और महीना । यह अन्धेर जाना चाहिये । अन्तर रहे काफी ढीला किया गया पर इससे कौटुम्विक पर वह आवश्यक और उचित हो । अन्तर रहना व्यवस्था नष्ट नहीं हुई और यह ढीलापन छोड देना अनिवार्य है । इस बात को साम्यवादी भी स्वीकार पडा, इसलिये कौटुम्बिक व्यवस्था को नष्ट करता है । इस प्रकार जब आमदनी मे अन्तर है तत्र कर देने की बात व्यर्थ है। पूर्ण आर्थिक साम्यवाद नही हो सकता। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरतिवाद ४ ] किसी आदमी को खर्च करने के लिये विवश नही किया जा सकता । इसलिये समान आमदनी मे भी सचय हो सकता है फिर न्यूनाधिक आमदनी मे तो सचय और भी अधिक सभव है । तीसरी बात सचय के अधिकार को I रोकना है यह भी अशक्य है । इस विपय मे ज़बर्दस्ती की जाय तो अन्याय होने की पूरी सम्भावना है ( अमुक अश मे सचय की आवश्यकता भी है ) इस प्रकार सचय होना मानव प्रकृति को देखते हुए अनिवार्य है । हा, उस पर अकुश लगाये जा सकते है और लगाना चाहिये । अति सचय न हो, सचय सचय को बढानेवाला न हो इसका विचार रखना आवश्यक है । हमारे सामने तीन मार्ग है-- १ सचय की मात्रा और प्रकार का निर्णय सरकार करे और इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का आर्थिक सूत्र सीवा सरकार के हाथ मे रहे । २ व्यक्ति को इस विषय मे पूर्ण स्वतन्त्रता हो वह किसी भी प्रकार धन पैदा करे और कितना भी सचय करे इस पर अकुश न हो । ३ - व्यक्ति को आर्थिक स्वातन्त्र्य हो पर उसके दुरुपयोग को रोकने के लिये तथा बेकारी हटाने के लिये सरकार का अर्थात् समाज का पर्याप्त अकुश हो । पहिला मार्ग साम्यवाद का है दूसरा मार्ग पूंजीवाद का और तीसरा निरतिवाद का । पहिले मार्ग मे सात खराबियाँ है: - [क] व्यक्तित्व के विकास का निरोध, [ख] दासता, [ग] कर्तव्य मे आनन्द की कमी और बोझ का अनुभव, [घ] सरकार या अधिकारियो की निकुगता रोकने की अक्षमता, [ ड] रुचि की अतृप्ति का कष्ट [च] निम्न श्रेणी के कार्य - कर्ताओ के चुनाव मे बाबा और उसके मन का . असन्तोप, और अधिकारियो का पक्षपात अन्धा - धुन्धी, [ छ ] सरकार के ऊपर असहय बोझ या शक्ति के बाहर उत्तरदायित्व - इससे पैदा होनेवाली मँहगाई । 1 ( क ) यहा व्यक्तित्व-विकास-निरोध के दो कारण है । पहिला तो यह कि सरकार के ऊपर I निर्भर हो जाने से मनुष्य मे उत्तेजना का अभाव हो जाता है । जैसे जगल मे घूमने वाले शेर और पालतू शेर मे अन्तर है वैसा ही अन्तर यहा हो जाता है । 'कुछ विशेष लाभ तो है ही नही फिर क्यो सिर खपाये' इस प्रकार की मनोवृत्ति विकास को रोकती है । दूसरा कारण यह कि अगर इस मनोवृत्ति को दबा भी दिया जाय तो भी मनुष्य को कार्य करने की पर्याप्त स्वतन्त्रता न होने से विकास रुक जायगा । आर्थिक सूत्र सीवा सरकार के हाथ मे होने से प्रत्येक मनुष्य नौकर हो जायगा । इस प्रकार वह एक बडी भारी मशीन का पुरजा बनकर रह जायगा । जीवननिर्वाह के लिये इच्छानुसार कार्य चुन लेना, उस पर नये ढग की आजमाइश करना अत्यन्त दुर्लभ हो जायगा । इसीसे व्यक्तित्व का विकास रुकेगा । 1 ( ख ) आर्थिक सूत्र सर्वथा पराधीन हो जाने से मनुष्य मे दासता आ ही जायगी । नौकर को तो इतनी सुविधा मिलती है कि एक जगह न पटी दूसरी जगह चले गये, दूसरे गाव चले गये, दूसरा मालिक देख लिया पर सरकार के हाथ मे सब का आर्थिक सूत्र आ जाने से यह सुविधा और स्वतन्त्रता नही रहेगी । अब एक जगह काम छोड़कर दूसरी जगह जाना तुम्हारे हाथ मे नही है और सरकार के सिवाय दूसरा कोई मालिक नही है इसलिये जीवन भर सरकार की ही नौकरी करना पडेगी इस प्रकार का अटूट Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माम्यवाद अव्यवहार्य [५ बन्धन दासता ही है । इससे देशभर मे दासता अतृप्त रहेगी । अतृप्त रहेगी सो रहेगी पर तृप्त के समान मनोवृत्ति और वैसे' ही कष्ट बढ़ जायेगे। होने की आशा भी इतनी क्षीण हो जायगी कि (ग) इस प्रकार की दासता के साथ थोडा उसे निराशा कहना होगा । यह और कप्ट है। भी काम करना पडे तो वह असह्य होता है और एक आदमी खाने पीने की इतनी पर्वाह नहीं स्वाधीनता के साथ इससे कई गुणा कष्ट भी करता पर यह चाहता है कि मै सारे देश मे सहन हो जाता है। एक दुकान का मालिक या विदेशो मे कुछ समय भ्रमण करू अथवा और सुबह से रातकी दस ग्यारह बजे तक दुकान पर किसी कार्य मे उसकी रुचि है जीविका के लिये आनन्द से बैठ सकता है जितने अधिक ग्राहक भी वह ऐसा ही कार्य चाहता है अथवा अर्थआवे उतना ही अधिक खुश होता है क्योकि सचय द्वारा वह अपनी इच्छा की तृप्ति करना वह अपने को स्वतन्त्र अनुभव करता है । चाहता है पर सरकार के हाथ मे पूर्ण आर्थिक पर नौकर की मनोवृत्ति ऐसी नही होती । वह सूत्र होने से यह बहुत कठिन है। यद्यपि इस थक जाता है घबरा जाता है उसे विवशता का अनु- प्रकार की अतृप्त आकाक्षाये आज भी रहती है भव होता है । जहा स्वेच्छा से नही किन्तु विवशता पर उस समय उनकी मात्रा बढ जायगी तया से दूसरो की आज्ञा मे रहकर काम करना पडता है निराशा तो और भी अधिक । वहा थोडा भी कार्य बोझ मालूम होता है । यद्यपि [च ] यदि प्रत्येक मनुष्य को समान यह परिस्थिति आज भी है और चिरकाल तक साधन मिले वह समान परिस्थिति मे रक्खा जाय उस रहेगी परन्तु आज सौ मे दस आदमियो के लिये के हृदय पर समानरूप मे सस्कार डाले जॉय ता है पर कल सौ मे निन्यानवे के लिये हो जायगी। प्रायः सभी या अधिकाश मनुष्य समान योग्यता यह समाज की अवनति है। के होगे । ऐसी हालत मे निम्न श्रेणी के काम (घ) जब हमारा पेट भी सरकार की करनेवाले अविकाश लोग कहॉ से आयेगे? कोयले मुट्ठी मे पूरी तरह आ जायगा तब सरकार के की खानो मे कौन काम करेगा सडक पर गिट्टी कौन आसन पर बैठे हुए व्यक्ति काफी निरकुश हो कूटेगा खेती आदि कामो के लिये कितने आदमी जायेंगे। अज्ञानवश या स्वार्थवश की गई उन तैयार होगे ? अगर सव को समान साधन न की भूलों का सुधार असाध्यसा, हो जायगा। दिये जाये जिससे निम्न श्रेणी के व्यक्ति भी गिल आज हम कही से भी पेट भर रोटी खाकर उन सके तो यह अन्याय होगा। से लड सकते है पर तब तो पेट उनकी मुट्ठीमे कहा जा सकता है कि ऐसा आज भी तो रहेगा तब उनसे लडना कैसे होगा ? न तो हमे होता है । होता है, पर इससे मनुष्य इतना दग्नी कही से दान मिल सकेगा न हम सचय ही कर नही होता । आज का समाज व्यक्ति से कहता सकेगे तब किस भरोसे जीवित रहकर सरकार है कि तुम अपनी सारी शक्ति लगाकर स्वतन्त्रता का सामना कर सकेगे। से अपना स्थान बनाओ और भाग्य से जो तुम्हे (ड) सारे कारबार सरकार के हाथ मे पैतृक साधन सम्पत्ति मिले उसका भी उपयोग चले जाने के कारण प्रायः सभी मनुष्यो की रुचि करलो इतने पर भी अगर तुम ऊँचे नहीं पहुंचते Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरतिवाद ६ ] तो मै [ समाज ] क्या करू ? व्यक्ति इस सचाई को मान कर चुप रहता है । वह किसी को दोष न देकर अपने भाग्य का फल समझ कर चुपचाप काम करता है । उठने की कोशिश करता है पर यदि नहीं उठ पाता तो वह समाज पर टूट नही पडता । क्योकि जिम्मेदारी समाज पर नहीं उस पर है । साम्यवाद मे समाज पर ही सारी जिम्मेदारी आ जाती है व्यक्ति बहुत गौण हो जाता है ऐसी हालत मे वह लघुता सहन नहीं कर सकता। हम घर मे कैसा भी रूखा मूखा खा सकते है परन्तु निमत्रण मे जाने पर घर से अच्छा भोजन करके भी हम उस हालत मे सतुष्ट नही हो सकते जब कि दूसरे को हम से अच्छा भोजन परोसा जा रहा है । साम्यवाद मे कोई भी छोटा बनने को तैयार न होगा और होगा तो उसे अन्याय का कडुआ अनुभव होता ही रहेगा । असन्तोप और ईर्पा जीवन को दुखी करने के साथ दूसरो को भी दुखी बनाये रहेगी । अगर सरकार साम्यवाद का दावा न करे न आर्थिक सूत्र सीधे अपने हाथ मे रक्खे तो व्यक्ति अपनी परिस्थति मे बहुत कुछ सन्तुष्ट रहेगा । न अधिकारियो को उसके जीवन के दुरुपयोग करने का इतना अवसर मिलेगा न उसे अधिकारियो पर इतना रोष होगा । उ के सरकार के ऊपर रक्षण, शिक्षण, न्याय, नियन्त्रण कर - ग्रहण आदि का जो बोझ है वह कुछ कम नही है । सरकार कोई एक व्यक्ति न होने से उसके द्वारा जो कार्य होते है उन पर व्यवस्था सम्वन्धी बहुत खर्च बढ जाता है । मै एक मकान बनवाऊँ और सरकार भी वैसा मकान बनवाये तो उसमे ग्वर्च दूने से भी अधिक आयगा । इसका कारण यह हैं कि आधे से अधिक पैसा व्यवस्था मे खर्च हो जाता है | मजदूरो की देखरेख को एक निरीक्षक चाहिये । निरीक्षक कोई बेईमानी न करे इसके लिये एक चेकर चाहिये, काम ठीक हुआ कि नही हुआ इसलिये इजीनियर चाहिये, हिसाब ठीक है कि नही इसके लिये ऑडीटर चाहिये, ढेर भर कागज फाडले और उस को गूढने के लिये क्लर्क चाहिये । इन सब कारणो से सरकारी काम बहुत महँगा पड़ता है । इसलिय ठेका देने का रिवाज है । ठेके का काम सस्ता पडता है लेकिन ठेकेदार पर नियन्त्रण और परीक्षण के लिये भी काफी खर्च होता है। 1 और ठेका भी वास्तविक मूल्य से अधिक में दिया जाता हैं । यह बात इसीसे समझी जा सकती है कि ठेकेदार अधिकारियो को हजारो रुपयोकी रिश्वत देकर भी लखपति बन जांत है I कहा जा सकता है कि ये उदाहरण किसी बिगडी हुई सरकार के नमूने है साम्यवादी सर - कार ऐसी नहीं हो सकती । ठीक है । माना कि ऐसी नहीं हो सकती सम्भवत प्रारम्भ मे ऐसी नही हो सकती, पर दस बीस वर्षो के बाद वहा भी ऐसी ही परिस्थिति आ जायगी अथवा अन्तर रहेगा तो उन्नीस बीस जैसा ही रहेगा । बात यह है कि जबतक मनुष्य अपने व्यक्तित्व का अनुभव करना नही भूलता व्यक्तित्व की महत्त्वाकाक्षा नष्ट नहीं होती तबतक उपर्युक्त उदाहरण हरएक सरकार मे मिलेगे । हा, उनकी मात्रा मे थोडा बहुत अन्तर अवश्य आ सकता है । दूसरी बात यह कही जा सकती है कि अच्छा महँगा पड़ता है तो पडने दो देश का पैसा देश मे तो रहता है । परन्तु यह तर्क ठीक नही । पूँजीवाद मे भी देश का पैसा देश मे रहता है, Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७ पूँजीवाद पापरूप एक चोर पडौसी की चोरी करले तो भी देश का हू इसलिये पूजा करता है । पर वह आदर्श है, दिशापमा देश में रहेगा इसीलिये इन सब का समर्थन दर्शन करा सकता है पर अप्राप्य है । इसलिये नहीं किया जा सकता । इस तर्क मे दूसरा दोप व्यवहार की चीज नहीं है। यह भी है कि पैसे की दृष्टि से.महंगाई का दोष हा, व्यवहार मे भी कभी कभी उसका उपभले ही न हो पर परिश्रम की दृष्टि से तो है योग हुआ है या हो सकता है पर वह झाडू की ही । कोई चीज महँगी पडी इसका यह अर्थ तरह ही हो सकता है । कमरे मे अगर कचरा पडा अवश्य है कि उसमे बहुत से मनुष्यो को बहुत परि- हो और बैठने को जगह न हो तो झाडू लगा कर श्रम करना पड़ा । इस प्रकार सरकार के हाथ मे कचरा साफ किया जा सकता है साफ जगह जो कारवार जाता है वह अविक शक्ति लेकर निकाली जा सकती है पर इसीलिये झाडू बैठने पूरा होता है । फिर भी बहुत से काम ऐसे है कि के लिये उपयुक्त आसन नहीं हो जाता । सफाई व्यक्ति के हाथसे हो नहीं सकते इसलिये महँगे करके उसे भी अलग कर देना पडता है । पूँजीवाद पडने पर भी सरकार के हाथसे कराना पडते के द्वारा जब विपमता का कचरा फैल जाता है तब है । रक्षण न्याय आदि ऐसे ही कार्य है। साम्यवाद की झाडू से सफाई की जा सकती है पर __परन्तु यदि प्रत्येक मनुष्य का धधा रोगार भी बाद मे वह साम्यवाद भी हट जाता है। सरकारी हो जाये इस प्रकार प्रत्येक मनुष्य की कभी कभी ऐसी भी परिस्थिति आती है आजीविका का बोझ सरकार के ऊपर पड़े तो जहा झाडू काम नहीं करती या उसकी जरूरत वह बोझ कितना भारी होगा ? कितना मॅहगा नहीं मालूम होती वहा दूपरी तरह के साधनो का होगा ? उसकी कल्पना ही मुश्किल से की जा उपयोग किया जाता है । भारतवर्ष की परिस्थिति सकती है। अभी ऐसी ही है-यहा का इलाज निरतिवाद से अभी अभी जहा साम्यवादी शासन प्रचलित ही हो सकता है । हुआ है वहा भी प्रत्येक व्यक्ति का बोझ सरकार पूँजीवाद पापरूप नही उठा सकी और धीरे धीरे सरकार ने लौटना साम्यवाद अव्यावहारिक हो करके भी शुरू कर दिया है । व्यक्ति की आजीविका व्यक्ति निष्पाप है जब कि पूंजीवाद व्यावहारिक होकर के हाथ मे रखने की बहुत कुछ स्वतन्त्रता देना पडी। भी पाप है,। पूँजीवाद का अत्याचार यह है कि है । और इसी लौटनेकी दिशामे प्रगति हो रही है। उसमे सेवाके बदले मे धन नहीं मिलता वल्कि व्यवहार मे आने पर और भी कठिनाइयाँ धनीको मुफ्त मे धन मिलता है। इस प्रकार दिखाई दे सकेगी। सबसे बड़ा प्रश्न मानव स्वभाव बिना किसी सेवा के धनियों का वन वढता जाता और प्राकृतिक विपमता का है इससे साम्यवाद है और सेवा करने पर भी निर्वनो की निर्धनता स्थायी नहीं हो सकता। जब वह स्थायी होने वढती जाती है । इस प्रकार एक तरफ आवलगता है तब पूँजीवाट की ओर काफी झुकने श्यकता से अधिक धन और दूसरी तरफ किसी लगता है। फिर भी मै साम्यवाद को घृणा की तरह पेट भरने के लिये भी मुहताजी, ऐसी दृष्टि से नहीं देखता । मै तो उसे आदर्श समझता असह्य विषमता पैदा हो जाती है । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८] निरतिवाद जिस समय मनुष्य वन्य-जीवन से निकल कराता किसी से पैर दबवाना, हवा कराता इस प्रकार कर सामाजिक जीवन मे आया उसने भौतिक सेवा लेकर वह सम्पत्ति समाज को दे देता । विज्ञान का पाठ पढा समाज रचना की व्यवस्था अगर दान करता तो भी दे देता। इस प्रकार बनाई सुव्यवस्था के लिये कार्य का विभाग किया उसकी विशेप सेवा का बदला भी मिल जाता निश्चिन्तता के लिये कुछ बचाना और रक्षित रखना और समाज की भी हानि न होती उसकी सपत्ति सीखा तभी से समाज मे धन सग्रह और आर्थिक सब जगह बटकर सबको जीवित और सुखी रखती। विषमता आई। मनुष्यो मे स्वाभाविक विषमता परन्तु सम्पत्ति का यह अधिकार जीवन होने से आर्थिक विषमता स्वाभाविक थी पर इस पर्यन्त के लिये ही न रह सका वह वश परम्परा का मूलरूप संग्रह नही भोग था । जो अधिक के लिये पहुंचा । मैने जो सेवा करके सम्पत्ति बुद्धिमान और अधिक श्रमी थे वे अपने कीमती जोडी उसका मुझे अपने जीवन मे ही दान या और अधिक कार्य का अविक मूल्य मांगे यह भोग कर लेना चाहिये था पर जब मैने वह स्वाभाविक था । समाज दो तरह से उसका मूल्य सम्पत्ति अपने वेटेको देदी तब समाज को पक्का चुका सकता था । एक तो यह कि उसने जितना लगा । समाज ने तो वह सम्पत्ति या जीवनअधिक और कीमती काम किया है उसके अनुसार सामग्री तुम्हे तुम्हारी सेवा को प्रमाणित करने के लिये एक प्रमाण पत्र के रूप मे दी थी । समाज उसकी अविक सेवा की जाय और भोगोपभोग को आशा यी कि तुम अपनी सेवाके बदले मे की कीमती सामग्री दी जाय । जैसे उसको प्रतिसेवा लेकर वह सम्पत्ति वापिस कर दोगे । स्वादिष्ट भोजन मिले, रहने के लिये अच्छा स्थान पर तुमने विश्वासघात करके वह सम्पत्ति वापिस मिले, कोई पगचपी करदे मालिश करदे इत्यादि । न करके अपने बेटे को दे दी। और समाज को दूसरा यह कि उससे दूसरे दिन काम न लिया उतने अश मे द खी होना पडा । यही है सग्रहजाय और पहिले दिन की सेवाके बदले मे ही उसे कती की पापता ।। दूसरे दिन भी भोगोपभोग की सामग्री दी जाय । कहा जा सकता है कि उस समयमे जब इन दो आधारो पर ही विनिमय या लेनटेन चलने कि धन अनाज आदि जीवन सामग्री के रूप मे लगा । किसी तरह किसीने अपनी एक दिन की रहता था सग्रह करना अवश्य पाप या । परन्तु सेवा को चार दिनके जीवन निर्वाह के योग्य रुपये पैसे के रूप मे वन सग्रह मे क्या पाप है समझा किसीने आठ दिनके । इस प्रकार वे लोग क्योकि यह जीवन-सामग्री नहीं है। सामग्री का सग्रह करने लगे । अगर यह सग्रह परन्तु रुपयो पैसो का सग्रह करना और जीवन भरके लिये होता तब जीवन सामग्री का सग्रह करना एक ही बात है । तो ठीक था । जीवन के अन्त तक या तो वह क्योकि जीवन सामग्री को रखने और उसे प्राप्त सारी सामग्री भोग डालता या दान मे दे देता करने का उपाय रुपया पैसा ही है । रुपया पैसा दोनो ही दृष्टि से समाज का लाभ था। क्योकि रोक लेने से जीवन सामग्री आपसे ही रुक जाती अगर भोगता तो वह सारा अन्न खा तो नहीं सकता है। इसलिये रुपयो पैसो के बहाने से परिग्रह या । वह तो उसको देकर किसी से मालिश क्षम्य नही हो सकता । Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूँजीवाद पापरूप इस प्रकार लोगोने अनिर्दिष्ट काल के लिये जीवन सामग्री रोक कर जहा विश्वासघात किया हा समाज के व्यक्तियो के संकट का दुरुपयोग करके एक और अनर्थ किया । सम्पत्ति एक तरफ रुक जाने से दूसरे लोगो का जीवन-निर्वाह कठिन हो गया । उनने यह सोचकर कि आज कही से लेकर काम चलाओ कल फिर किसी तरह उपार्जन करके ढेढेगे । इस विचार से वे लोग यो के पास उवार मॉगने आये । पर धनियोने कहा कि ले जाओ पर हम दसके बदले ग्यारह लेगे । यह शर्त मंजूर हो तो हम देते है नही तो हमे क्या गर्ज पडी कि हम तुमको उबार दे 1 इस प्रकार धन- संग्रह करके विश्वासघात किया था सो तो किया ही था अब दूसरा पाप यह होने लगा कि बिना सेवा दिये ही धन प्राप्त करना शुरू कर दिया गया । व्याज खाना इसीसे पाप है । आज हम यर लेकर, अपनी चीज भाडे देकर, तथा अन्य उपायों से जो बिना परिश्रम के धन पैदा करते है वह सब व्याज है मुफ्तखोरी है, दूसरो की गरीबी बढाने वाला है दूसरे के सकट का दुरुपयोग करने से निर्दयता है । इन कारणो से पाप है । प्राय सभी धर्मों मे परिग्रह को जो पाप कहा गया है इसका यही कारण है । इसी का नाम पूँजीवाद है । अर्थात् अनिर्दिष्ट काल के लिये या वंशादिपरम्परा के लिये पूँजी पर अधिकार रखना और किसी न किसी तरह व्याज खाना यही पूँजीवाद है । इसके सहारे से और भी बहुत से अनर्थ तथा वेईमानिया पैदा होती है । अपनी साधारण व्यवस्था शक्ति को बहुमूल्य बताना, मनमाना पारिश्रमिक लेना ये सब पूँजीवाद के साथ रहने वाले अनर्थ है । इस पूँजीवाद ने ही जहा इनेगिने 1 | [ ९ कुबेर पैदा किये है वहा करोडो भिखमंगे और कगाल पैदा किये है | नव्बे फीसदी मनुष्य आज पूँजीवाद के चक्रमे पिसकर मनुष्यता खोकर पशुजीवन बिता रहे है । इसलिये आवश्यक है कि समाज की शान्ति सुख के लिये मौलिक नियमो के पालन के लिये सबके साथ न्याय करने के लिये पूँजीवाद दूर कर दिया जाय । एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर, एक दल दूसरे दल पर, एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर जो टूट रहा है उसे शिकार बना रहा है उसका कारण यह पूँजीवाढ है । पूँजीपति इतना बुरा नही है जितना कि पूँजीवाडी बुरा है । पूँजीपति वह मनुष्य है जो पूँजी रखता है । पर पूँजीवादी वह है जो सम्पत्तिको सदा के लिये रखना चाहता है और पूँजी के वलपर उसे बढ़ाना चाहता है । मानव-जीवन मे सग्रह की आवश्यकता तो है ही । प्रतिदिन कमाना और प्रतिदिन खर्च कर डालने की व्यवस्था किसी को भी सुखकर या सुविधाजनक नहीं हो सकती । एकाध को हो भी जाय तो बात दूसरी है पर साथ ही उसे दूसरो का ज्ञात या अज्ञात भरोसा रखना पडता है | जनता इसका पालन नहीं कर सकती । इसलिये संग्रह अनिवार्य है । पर सग्रह से सग्रह को न वढाया जाय, वह अनिर्दिष्ट काल के लिये न किया जाय, यथा-सम्भव सग्रह की मात्रा कम हो, अधिक हो जाने पर ढारमे लगा दिया जाय इन सब परिस्थितियो मे मनुष्य पूँजीपति तो हो सकेगा पर पूँजीवादी न हो सकेगा । किन किन परिस्थितियो मे किस तरह मनुष्य धन का सग्रह करते हुए भी पूँजीवादी न कहला सके इसके लिये कुछ दिशासूचक नियम दे देना उपयोगी होगा। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरतिवाद १०] १ - अगर इस आशय से सम्पत्ति का सग्रह करता है कि भविष्यमे अपना जीवन - - निर्वाह करते हुए बिना किसी बदले के समाज-सेवा करूँगा । समाज पर अपने जीवन-निर्वाह का वोझ कम से कम डालूगा या न डालूगा । सग्रह की हुई सम्पत्ति समाजके काम मे लगा दूंगा और मरने के बाद समाज को दे जाऊँगा । २ - सन्तान के शिक्षण और नाबालिग अवस्था मे उसके पोपण के लिये जितनी सम्पत्ति आत्रश्यक है उतनी सम्पत्ति उत्तराधिकारियो को छोड कर बाकी सम्पत्ति दान कर जाऊगा और जीवन मे भी समय समय पर दान करता रहूगा । ३ - पूर्वजो से उत्तराधिकारित्व मे पर्याप्त धन मिला है इसलिये धन रखता है। धन बढाता नही है । जितना धन बढाता है उतना दान I मे और उचित भोग मे खर्च कर देता है । और मूल धन भी दान मे लगाता रहता है । ४ - मूलवन खर्च नही करता किन्तु आमदनी सब खर्च डालता है । इन चारो श्रेणियो के पूँजीपतियो के लिये यह आवश्यक है कि उनका पैसा कमाने का ढंग गैर कानूनी न हो। न कानून का दुरुपयोग किया गया हो । जूआ सट्टा आदि का भी सबध न हो । इस प्रकार के पूँजीपति या धनवान पूँजी - वादी नहीं कहे जायँगे । निरतिवाद ऐसे पूँजी - पतियों का विरोध नहीं करता। खासकर पहिली और दूसरी श्रेणी का । तीसरी और चौथी श्रेणी को भी वह सह सकता है । जिस प्रकार पूजीपति होकर भी पूँजीवादी होना आवश्यक नही है उसी प्रकार पूजीवादी होकर भी पूजीपति होना आवश्यक नहीं है । गरीब होकर के भी मनुष्य पूँजीवादी हो सकता है । पूजीपति सौ मे दो चार ही हो पर पूँजीवादी सौ मे निन्यानवे होते है या हो सकते है । एक मजूर चार छ. आने रोज कमाता है इससे उसकी अच्छी तरह गुजर नही होती पर चार पैसे सट्टेके दाव पर लगाता है तो वह पूँजीपति न होकर के भी पूँजीवादी है । एक मजूर अपने पडौमी को एक रुपया देता है और महीने के अत मे एक रुपये का व्याज भी लेता है तो वह पूँजीवादी है । गरीब होने से हमे यह न समझना चाहिये कि यह पूँजीवादी नही है या असयमी नही है । गरीब हो या अमीर सभी किमी न किसी मार्ग से धन पैदा करना चाहते है, न्याय और अन्याय की किसी को पर्वाह नही है ( इनेगिने महात्माओ को छोडकर ) अगर पर्वाह हैं तो सिर्फ इतनी कि कानून के पंजे मे न फॅस जॉयँ । भिखमगा भी चाहता है और करोड पति भी चाहता है कि सारी सम्पत्ति मेरे घर मे आजाय और वह किसी भी तरह आ जाय । ऐसी हालत मे सभी पूँजीवादी है । और पूँजीवाद जब पाप है तब वे पापी भी है । जिनके पास पूँजी है वे पापी है और जिनके पास पूँजी नही है वे धर्मा है ऐसा समझने की भूल कदापि नही करना चाहिये । यह तो भाग्य की -- अकस्मात् की बात समझना चाहिये कि किसी के पास धन है और किसी के पास नही है । जिनके पास धन है न तो वे सयमी है। जिनके पास वन नही है न वे सयमी है । इसलिये धनवान और गरीब सब पर एकसी दृष्टि रखना चाहिये | धनवानो को विशेप पापी समझने का कोई कारण नही है । विशेप पापी धनवानो मे भी है और गरीबो मे भी है और अनुपात भी उसका वरावर है । निरतिवाद दोनो की परिस्थिति Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ११ निरतिवाद का रूप पर तटस्थता से विचार करता है, वह न तो पूँजी- अन्तर्राष्ट्रीय जटिलताएँ पूंजीवाद का ही फल है । पतियो को शत्रु समझता है न गरीबो को । हा, ६-पूजी लगाकर नफा के नाम पर लूट पूंजीवाद को वह शत्रु समझता है जो कि अमीर मचाने के लिये अनेक अनावश्यक चीजे तैयार की और गरीब सब मे समाया हुआ है इमको नष्ट जाती हैं और उन चीजो को खपाने के लिये जनकरने का वह सन्देश देता है। समाज का अनेक तरह से पतन किया जाता है पूँजीवाद से जो हानियाँ है उसका दिशा- अर्थात् उसे मार्ग भ्रष्ट किया जाता है । जैसे पंजी मूचन करने के लिये कुछ हानियो की तरफ लगाकर युद्ध की सामग्री तैयार करना और उसे सकत किया जाता है। __ खपाने के लिये दो देशो को या दो जातियो को १-एक तरफ धन इतना इकट्ठा हो जाता लडा देना । इसके लिये लोगो मे राष्ट्रीयता या है कि लाखो आदमियो को उसके बिना भखो जातीयता का ऐसा उन्माद भरना जिससे वे दूसरे मरना पडता है। देश को शत्रु समझने लगे और लड पडे, राष्ट्र के २-सम्पत्ति के बदले में जन समाज को सेवा सूत्रवारो को लॉच रिश्वत देकर युद्ध के लिये तैयार नही मिलती । समाज की सम्पत्ति मुफ्त मे ही करना, अज्ञात रूपमे ऐस आक्रमण करा देना बहुत से लोग मार ले जाते है । जिमसे ढो देश आपस मे लड पडे इस प्रकार युद्ध ३-जहा धन इकट्ठा हो जाता है वहा अनु सामग्री खप जाय । और भी इसके अनेक प्रकार त्तरदायित्व, ऐयाशी (वेश्या--सेवन मद्यपानादि) है । मनुष्य को व्यसनी बनाने वाली चीजे तैयार आलस्य, निर्बलता, घमड आदि दुर्गुण पैदा हो __करके मनुप्य का पतन किया जाता है । मानवजाते है और उसके प्रभाव से और भी बहुत जाति की या दूसरे की कुछ भी दशा हो पर पूँजीसे मनुप्यो का पतन होता है बहुत से मनुष्य __ वादी अपनी पूंजी फॅमाकर उससे आमदनी उनके दुर्गुणी कार्यों के भी शिकार बन जाते है । निकालने की कोशिश करेगा। ४-पूजी से धन पैदा करने के लिये बहुत निरतिवाद का रूप से साहूकार लोग भोले प्राणियो को ऋण देकर ऊपर बताये हुए साम्यवाद और पूजीवाद फंसाते है और इस प्रणाली से सैकडो घर तबाह दोनो दो दिशाओ की सीमाएं है। एक आसहो जाते है। मान की इतनी ऊँची चीज है कि जिसे हम पा ५-दूसरे राण्ट पर आक्रमण भी पंजीवाद का नही सकते । अगर किसी तरह उछलकर उसे फल है । जब लोगो को अपने देश मे पॅजी फंसाने छू भी ले तो वहा रह नहीं सकते। हमे गिरना के लिये जगह नहीं रहती या उससे सन्तोपप्रद पडेगा । पूँजीवाद इतना नीचा है कि वहा के लट नहीं हो पाती तब दूसरे देशो पर जाल अन्धकार गर्मी और गदगी से दम घुटता है । फैलाया जाता है । उन पर आक्रमण किया जाता मार्ग बीचमे है । हमे जमीन पर रहना है । न है उनकी स्वतन्त्रता छीनी जाती है लाखो आद- आसमान मे न पाताल मे । निरतिवाद, पूंजीवाद मियो का कत्ल कर दिया जाता है । अधिकाश और साम्यवाद के बीच का स्थान है । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ] निरतिवाद निरतिवाद को समझने के लिये ये चार बाते ग-बेकारो को शारीरिक श्रम करने के लिये ध्यान मे रखना चाहिये। तैयार रहना होगा । सूत कातना, कपडे बुनना, १-निरतिवाद, साम्यवादको एक काल्प- मिट्टी आदि की चीजे बनाना, फर्नीचर तैयार निक आदर्श समझता है। पर अव्यवहार्य होने करना, सडके बनाना, गिट्टी बिछाना, खती करना से हानिकारक मानता है। बगीचा करना आदि हर काम के येि तैयार २--पंजीवाद को वह पाप समझता है इस रहना होगा । कठिन काम थोडे समय तक लिया लिये उसे नष्ट या मृतप्राय. कर देना चाहता है। जायगा । गारीरिक गक्ति तथा अन्य योग्यता का ३-वह पंजीपतियो को पापी (विशेष पापी) भी विचार किया जायगा । उनको उद्योग वगैरह नही समझता है परन्तु उनका पंजीपतित्व बढ़ने न भी सिखाया जायगा जिससे उन्हे बाहर काम पावे बल्कि घटकर बेकारो या गरीबाके पोपण मे मिलन मे सुभीता हो । काम आवे ऐसी योजना करना चाहता है। घ-सरकार की यह दृष्टि न रहेगी कि ४-वह पंजीपतियों को एकदम कगाल नही बेकारो के कार्य का बाजारू मूल्य क्या है । कार्य बनाना चाहता परन्तु उनको झटका न लगे इस का मूल्य कुछ भी हो पर बेकारो को भरपेट रोटी प्रकार धीरे धीरे उनके पूंजीपतित्व को सीमित और कपडे का प्रवव करना सरकार का उद्देश्य करना चाहता है। होना चाहिये । सरकार के पास कुछ काम न निरतिवाद के सामाजिक आदि अनेक पहलू हो तो भी कुछ न कुछ काम लेना चाहिये । है, लेकिन ऊपर जो चतु सूत्री दी गई है वह कहावत है किनिरतिवाद के आर्थिक पहलू को ही बताती है। खाली न बैठ कुछ न कुछ किया कर। इस आर्थिक पहलू को साफ साफ समझने के कुछ न हो तो पैजामा उवेड कर शिया कर ॥ लिये उसका भाष्य जरूरी है | अगर किसी राष्ट्र यह कहावत बेकारों के विषय में भी लागू मे निरतिवाद का प्रचार हो तो उस राष्ट्र की रहना चाहिये । जैसे कुछ न हो तो जगल के आर्थिक व्यवस्था कैसी हो, वहा के आर्थिक कानून पत्ते बीन लाओं और लाकर जला दो। यह तो कैसे हो इसका रेखाचित्र यहा खीचा जाता है। एक उदाहरण है असली बात यह है कि वेकारो .१-- बेकारशाला से कुछ न कुछ काम अवश्य लिया जाय । (क) सरकार की ओर से प्रत्येक जिले ङ-साठ वर्ष से अधिक उम्र के बूढो से के भीतर कम से कम दो और अधिक से अविक बेकार शाला मे काम न लिया जाय । या उनसे जितने सम्भव हो, उतने ऐसे केन्द्र हो, जहा सिर्फ देखरेख का काम लिया जाय । परिश्रम बेकारो को रहने का प्रबन्ध हो । वहा उन्हें सावा- लिया जाय तो इतना ही जितना कि उनके स्वास्थ्य रण भोजन और साधारण वस्त्र दिये जाये । और के संभालने के लिये जरूरी हो। इसके बदले मे करीब आठ घटे काम लिया जाय । च-बेकार शाला का अविकारी बेकारों ख-बेकारो को घरसे बेकार-शाला तक को काम ढढने का प्रयत्न करता रहे । जिन को आने और जाने का ग्वर्च सरकारकी तरफ से हो। जरूरत हो वे भी बेकार-गाला से स्थायी अस्थायी Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धनसंग्रह पर रोक [ १३ ___ रूप मे कर्मचारी प्राप्त कर सके। मे रखना ठीक होगा । हा, कोई वेकार घर मे छ-आये हुए कार्य को स्वीकार करना रह कर बेकार-गाला अथवा सरकार ने जहा या न करना बेकार की इच्छा पर निर्भर रहे। कार्य के केन्द्र बनाये हो वहा जाकर आठ घटो प्रश्न-ऐसा होगा तो बहुत से बेकार या नियत घटो तक काम करके घर आ जाना जिन्दगी भर बेकार शाला से जाना न चाहेगे। चाहे तो कोई हानि नही । सरकार के ऊपर बोझ बने हुए वहीं पडे रहेगे। २ धन संग्रह पर रोक उत्तर-ऐसा न होगा। क्योकि बेकार क—किसी कटम्ब के पास एक लाख रुपये शाला मे भी उसे काम तो करना पडता है। स अधिक रुपये हो तो उन अधिक रुपयो का और जो चाहे काम करना पडता है । साथ ही आधा भाग या दो तृतीयाश सरकार मे चला बेकार शाला का जीवन इतना वैभवशाली न होगा जाय । और यह रकम बेकार--शाला के कार्य मे कि वह वाहर की स्वतन्त्र जीविका के आनन्द लगाई जाय । को भुला सके। ख-निम्न लिखित चीजे सम्पत्ति मे न ज-बेकार अगर अपने घर पर रहकर ही गिनी जॉय पर शर्त यह रहे कि ये चीजे भरणपोपण चाहे तो सरकार कुछ काम का कभी बेची न जॉयेंगी न किसी को भाड़े पर दी ठेका देकर उस कुटुम्ब के पोपण के लिये साधा- जॉयेंगी । रण प्रबन्ध करे । जैसे कम से कम इतने नबर [१] रहने का मकान [२] भोजन सामग्री का सत इतने गज कातकर ला या और ऐसा [३] पहिनने ओढने के कपडे [४] पढने की ही कोई काम दे। पुस्तके [५] फरनीचर [६] सजावट की चीजे शका-[१] बेकार शाला: न बनाकर घर फोटो चित्रः मूर्ति खिलौने आदि । [७] घोडा पर ही सवको काम दिया जाय और भरणपोषण साइकिल, मोटर गाड़ी, तागा आदि ८] भोजन दिया जाय तो कैसा ? बनाने खाने की सामग्री-वर्तन चौकी आदि । समाधान-अन्छा है और यथासम्भव यही [९] आविष्कार के साधन [१०] इन्द्रियो के करना चाहिये । पर हर हालत मे यह सम्भव विशेप विपय--इत्र, हारमोनियम फोनोग्राफ वीणा नही है । किसी बेकार के पास कदाचित घर न आदि वादत्र, इत्यादि । हो तो उसे बेकार शाला मे ही रखना ठीक होगा। । अगर ये चीजे व्यापार के लिये रक्खी अथवा + सरकार के पास घरमे देने लायक पूरा जाँयेंगी तो सम्पत्ति मे गिनी जॉयेंगी । काम न हो बेकार शाला मे ही बहुत से वेकारो ॥ सोने चांदी के आभूषण भी सम्पत्ति मे को मिलाकर काम कराना हो तो भी बेकार शाला गिने जायेंगे। ॥ व्यापार के विशेप साधन भी सम्पत्ति मे + ( सरकार का अर्थ है उसी देश के जन मत से बनी हुई सरकार । निरतिवाटके प्रकरणमे सब जगह सरकार का गिने जॉयेंगे । जैसे फोटोग्राफर का केमरा सम्पत्ति है। यही मतलब समझना चाहिये ।) III रुपया पैसा जमीन मकान (निवास के Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] निरतिवाद अनिरिक्त ) आदि तो सम्पत्ति है ही। सकता । विक्रय करने के आगय से बहुत अधिक उपर्युक्त दस तरह की चीजो के सिवाय लाख रक्खेगा तो वह सम्पत्ति मे गिन लिया जायगा। रुपये तक की सम्पत्ति एक कुटम्ब को रखने सजावट की चीजे या और भी ऐसी वस्तुओं का का अविकार रहे । बाकी सम्पत्ति का आवा या अधिक सग्रह करे तो इससे शिल्पकार आदि को दो तृतीयाश सरकार ले ले। काम मिलेगा । बेकारी यो ही दूर हो जायगी। शका (१)-एक लाख रुपये की सीमा बहुत कुटुम्बियो मे वन का विभाग कर भी लिया अविक है । इसके अतिरिक्त दस तरह की चीजो जाय तो भी अच्छा है । कम से कम इससे बहुत की जो छट दी गई है उसके बहाने तो और भी . व्यक्तियो के पास तो सम्पत्ति पहुंचेगी। इस दृष्टि कई लाख रुपये की सम्पत्ति हजम की जा सकेगी से सम्पत्ति का जितना विभाजन हो उतना ही इसके अतिरिक्त कुटम्बियो मे धन का विभाग करके अच्छा है। भी कई लाख की सम्पत्ति लाख के भीतर शंका-[२] सरकार को देने के लिये अधिक बताई जा सकेगी। सम्पत्ति कोई अपने पास रक्खेगा क्यो ? वह दान समाधान-दुरुपयोग होने पर भी आखिर कर देगा रिश्तेदारो और मित्रो मे वितरण कर देगा। सीमा रहेगी । और इतना नियत्रण काफी है। समाधान-दान कर दे तो अच्छा है ही। वर्तमान के श्रीमानो का नियत्रण भी हो जायगा इससे वह वन समाज में फैलेगा ही। अगर रिश्तेऔर कुछ बेकार-शालाओ के सचालन के लिये दारो मे वितरण कर देगा तो भी सम्पत्ति का भी सरकार के हाथ मे जायगा । आज के बडे २ विभाजन होगा । और धीरे धीरे वह सम्पत्ति समाज श्रीमानो को एकदम लूट लेना एक तरह का मे फैल जायगी। अन्याय है। उत्तराविकारित्व के समय उनकी शंका [३]-जो चीजे भोगोपभोग की सामग्री सम्पत्ति को इस तरह धारे वारे कम करने से समझ कर सम्पत्ति नहीं ठहराई गई है अगर कहाउन्हे भी न खटकेगा और बेकारी हटाने के लिये चित् उन्हे बेचना पडे-जीवन निर्वाह भी धन मिल जायगा। के लिये ही उनका बेचना आवश्यक हो जाय तो भोगोपभोग के साधनो के रूप में अगर कोई वह क्या करे ? ___ लाखो की सम्पत्ति रख भी ले तो भी जनता की समाधान-ऐसी परिस्थिति मे वह सरकार विशेप हानि नही है । बल्कि वह सम्पत्ति भोगो- की अनुमति लेकर बेच सकेगा । पर इस हालत पभोग के सावनो को खरीदने मे लगायगा इसलिये मे उसकी सम्पत्ति एक लाख रुपये से अधिक न उन सावनो को तैयार करने वाले लोगो को काम होना चाहिये । मिलेगा इस प्रकार बेकारी दूर करने में सहायता शंका [४]-रुपया तो भारत का सिक्का है । मिलेगी । भोगोपभोग के सावनो मे जीवन की भारत की आर्थिक दशा के अनुरूप यह मर्यादा आवश्यक सामग्री कोई अधिक नही रख सकता । उचित कही जा सकती है पर दूसरे देशो के लिये अन्नका सग्रह तो अधिक करके कोई क्या करेगा न तो यह मर्यादा ठीक हो सकती है और न क्योकि अन्न बहुत अधिक तो खाया नहीं जा वहा रुपये का चलन ही है । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याज हराम समाधान- रुपया तो एक उपलक्षण मात्र है । इसके अनुरूप दूसरे देशो को अपने सिक्के मे सम्पत्ति की मर्यादा निश्चित कर लेना चाहिये । भारत मे भी परिस्थिति के अनुसार एक लाख रुपये से अधिक या कम मर्यादा स्थिर की जा सकेगी। ग्वासकर अगर बेकारी की समस्या हल न हो तो एक लाख रुपये की मर्यादा घटाकर पचास हजार की जा सकती है । और उत्तराधिकारित्व के समय ही नहीं किन्तु जीवन मे ही अधिक सम्पति का आधा या दो तृतीयाग बेकार शाला फड मे लिया जा सकता है । I शंका [५] क्या श्रीमानो की तरफ से मिले हुए इसी वन से बेकार - शालाओ का काग चलाया जायगा 2 समाधान - यह मुख्य द्वार होगा । साथ ही बेकार शालाओ को चलाने के लिये सरकार दूसरी आमदनी मे से भी वर्च करेगी। वेकार शालाओ को चलाने की सरकार पर पूरी जिम्मेदारी रहेगी । श्रीमानो की सम्पत्ति में से भाग नहीं मिला यह वहाना बेकारशालाओ के सञ्चालन मे बालक न वनेगा | शंका - [६] अगर पूँजीवाद मिट जाय और बेकार - शालाओ मे कोई आदमी न रहे तब भी क्या धन सग्रह पर रोक रहेगी ? समाधान - अवश्य । बेकार - गालाओ को अगर उस धन की आवश्यकता न होगी तो सरकार उस बन को प्रजा-हित के दूसरे कामो मे खर्च करेगी । ग--आय कर [ इनकम टेक्स ] निम्न लिखित दर के अनुसार देना पडेगा । [ १५ आमदनी पर कर न लगेगा | सरकारी मकान का भाडा देना पडता होगा तो वह भी करसे मुक्त रहेगा । इससे अधिक आमदनी का चतुर्थाश करके रूपये देना होगा । १- कुटुम्ब के प्रत्येक व्यक्ति पर पन्द्रह रुपया मासिक [ वडे शहरो मे वीस रुपया ] तक की जैसे किसी कुटुम्ब में पाच व्यक्ति है और १०) मांसिक मकान भाडा देना पडता है और आमदनी १००) मासिक है तो १५४५ = ७५) +१० ) = ८५) इस ८५) मासिक पर कुछ टेक्स न रहेगा बाकी १५) रुपये मे से चतुर्थांश ३|| ) कर देना पडेगा | अगर छ आदमी कुटुम्ब मे हो जाय तो कुछ भी न देना पडेगा । अगर चार रह जॉय तो ७||) रु मासिक देना पडेगा । इस प्रकार कुटुम्ब मे आदमी बढने पर फी आदमी ३|||) रु. कर घटेगा और आदमी घटने पर फी आदमी ३|||) रु कर बढेगा । घ -- प्रत्येक आदमी को कुटुम्ब का मुखिया होते समय इस बात का विवरण देना होगा कि उसके पास इस समय कितनी सम्पत्ति है । ङ - किसी भी मनुष्य से यह पूछा जा सकता है कि तुमको वालिग होते समय या उत्तराविकारी होते समय इतनी सम्पत्ति मिली थी पर आज इतनी अधिक क्यो है ' सम्पत्ति के बुढने का यदि सन्तोपजनक कारण न मिलेगा तो वह अपराव समझा जायेगा। इससे जितनी सम्पत्ति के विषय मे सन्तोपजनक उत्तर न मिलेगा उतनी सम्पत्ति छीनी जा सकेगी और कुछ जुर्माना भी किया जा सकेगा । ३ व्याज हराम क - कोई भी व्यक्ति व्याज के ऊपर साइकारी न कर सके, सुरक्षण के लिये सरकारी वेको मे वह रुपया जमा कर सके पर उसे व्याज न मिले । आवश्यकता होने पर वह सरकार के मार्फत दूसरों Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ] निरतिवाद को रुपया दे सके पर उसका भी ब्याज न मिल सके। बेकार शालाओ के द्वारा खाना मिल जायगा । ख-करीब दस रुपये तक का देन लेन विवाह आदि विशेष अवसरो पर उधार लेने की सरकार की मार्फत के बिना ही हो सकेगा । अधिक जरूरत पड़ती है पर यह मूर्खता बन्द होना का भी हो सकेगा पर वह सरकार मे न माना चाहिये । उधार लेकर उत्सव मनाना ऐसा अपजायगा । जैसे किसी के पास दो लाख की सम्पत्ति राध है जो कानून की मारसे भले ही बच जाता है। सरकार नियम न. २ [का के अनुसार एक हो पर उत्तरदायित्व और विवेकी दृष्टि से जो लाख की सम्पत्ति से अधिक का आधा भाग ले अत्यन्त निन्दनीय है । विवाह के खर्च के लिये लेना चाहे और उसपर यह कहा जाय कि दो अगर तुम्हारे पास कुछ भी नही है तो पाच पडोलाख मे एक लाख तो हमे अमुक आदमी का देना सियो के सामने दोनो का विवाह घोपित कर दो है तो सरकार इसे बहाना ही समझेगी । अगर वह सरकार मे इस की सूचना दे दो। बस, खर्च एक लाख रुपया सरकार के मार्फत लिया होगा तो करने की कोई जरूरत नहीं है । उधार न मिलने सरकार मान्य करेगी। से बहुत से मूर्खतापूर्ण अनावश्यक खर्च आप ही सरकार की मार्फत लेन देन से एक फायदा बन्द हो जायगे । लोगो को यह बड़ा लाभ होगा। तो यह होगा कि लोग सम्पत्ति छिपाने के लिये ऐसा ग-यह हो सकता है कि किसी को झूठा बहाना न बनायेगे । दूसरा लाभ यह होगा कि व्यापार के लिये पूजी की आवश्यकता हो और दीवानी झगडे प्रायः निःशेप हो जायेंगे । झूठे स्टाप पजी देने के लिये कोई भी पडौसी या परिचित झूठे गवाह आदि के झगडो से लोग बच जायगे। अपरिचित वन्धु उधार न देता हो तो ऐसी इस समय बेक के द्वारा जैसा लेन देन होता हालत में सरकारी बेक से रुपया उधार मिल है उसी तरह की व्यवस्था तब भी बना दी जायगी सकेगा । इसके लिये उसे अपनी आवश्यकता साथ ही यह शर्त भी रहेगी कि देने वाले और योग्यता और कार्य प्रणाली बताना पडेगी । ऋण लेने वाले बेक पर हाजिर रहे । कुछ अपवादो की चुकाना अनिवार्य होगा । नहीं तो दफा नं. ४ वात दूसरी है। के अनुसार उसे दडित होना पडेगा । साधारणतः शंका (६) इस प्रकार अगर व्याज लेना यह ऋण १०००) रुपये से अधिक न होगा । बिलकुल बन्द होजायगा तब कोई किसी को रुपया घ-जो आदमी इस प्रकार सरकारी बेक उधार क्यो देगा ? सभी लोग अपना रुपया बेक से रुपया उधार लेगा उने सौ रुपये पर महीने मे मे या घर मे रक्खेगे। पर जीवन मे उधार लेने दो आने ब्याज देना होगा। इस प्रकार सिर्फ की आवश्यकता तो सभी को होती है उनकी असु- 'सरकारी बेक ही ब्याज ले सकेगे सो भी इतनी विधा बढ जायगी । और उधार के बिना कभी मात्रा मे । और किसी को व्याज लेने का अधिकभी भूखो मरने की नौबत आ जायगी । कार न होगा । न खानगी बेक खुल सकेगे । समाधान-आज उधार लेने की जितनी सरकारी बेकोको जो ब्याज से आमदनी होगी वह जरूरत पड़ती है उतनी उस समय न पडेगी। बेक के सचालन मे खर्च होगी । फिर भी अगर भूखो मरने की नौबत तो इसलिये न आयगी कि कुछ बचत रही तो बेकार शालाओ के पोपण मे Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याज हराम [१७ जायगी । इस प्रकार इस व्याज से जनता का ही उम्र में शादी हो गई तो उसका महीना उसी भला होगा । इसलिये यह हराम न समझा जायगा। समय बद हो जायगा । इसी प्रकार दूसरा लड़का ____ड-~-वृद्ध आदमियो को कुछ शर्तोपर विशेप और दूसरी लडकी भी बालिग होने तक व्याज व्याज मिल सकेगा । जिससे वे सन्तोप से जीवन पाती जायगी। मूलधन सदाके लिये सरकारी बिता सके । गर्ते ये रहे। हो जायगा। [१] मूल वन सदाके लिये सरकार मे जप्त ३ ~~यह व्याज किसी भी हालत मे बढ हो जायगा। न होगा । किमी अपराव मे जुर्माना होने पर भी २०४५ वर्ष के वन को प्रतिमास आठ उसकी इच्छा के विरुद्ध इस व्याज मे से जुर्माना आना सैंकडा, ५० वर्ष के वृद्ध को नव आना वमूल न किया जायगा । अगर वह जेल जाय तो मैकडा ५५ वर्ष के वृद्ध को दस आने सैकटा, उसकी पत्नी या सन्तान को वह व्याज मिलता ६० वर्ष के वृद्ध को ग्यारह आना सैकडा रहेगा | अगर पत्नी या सन्तान न होगी तो और और ६५ वर्ष के वृद्ध को बारह आना सैकडा, किसी सम्बन्धी को न मिलेगा उसीके नाम से ७० या इससे अधिक उम्रके वृद्ध को चौदह जमा होता रहेगा और जेल से निकलने पर उसे आना सैकडा उसके जीवन के अन्त तक मिलता मिल जायगा । रहेगा। उसने मरने के बाद उसकी मौजूदा ४ ---इस प्रकार के पेन्शन--व्याज लेने [ रुपये जमा कराते समय की ] सन्तान को तब वाले वृद्ध को चाहिये कि वह किसी का ऋण तक यह रकम मिलती रहेगी जब तक सन्तान अपने ऊपर न रक्खे । अगर ऋण निकलेगा तो नाबालिग और अविवाहित है । विवाहित होने पर उसका पेन्शन व्याज ऋण चुकाने मे लगा दिया या बालिग होने पर [ १८ वर्प का होने पर] जायगा । अगर पेन्शन-व्याज से शीघ्र न चुकेगा उस का हिस्सा मिलना बन्द हो जायगा। तो आज तक दिय गये पेन्शन-व्याज को काटने जैसे किसीने ४५ वर्ष की उम्र मे ४००० पर जितना मुलधन बचेगा उसमे से वह ऋण रु जमा किये । २०) महीना व्याज मिलने लगा। चुका दिया जायगा । और ऋण छिपाने के अपदस वर्ष बाद वह मर गया । उसके चार सन्तान राध मे मूलवन का एक चतुर्थाश तक और है । १२ वर्ष का पहिला लडका, १० वर्ष की कम कर लिया जायगा । वानी मूलधन समझा लडकी, ८ वर्ष का दूसरा लडका, ४ वर्ष की जायगा । जैसे किसी ने २०००) जमा किया । लडकी । तो उन मासिक वीस रुपये के चार पाच साल में उसने ६००) रुपये व्याज मे ले हिस्से किये जायेंगे और चारो को पाच पाच रुपया लिये । वाद मे किसी का ४००) ऋण निकल महीना दिया जायगा । बडे लडके को छ वर्प आया । तो २०००) में से ब्याज के ६००) बाट जब कि वह १८ वर्प का हो जायगा उस निकालने पर जो १४००) वचे उसमे से ४००) का हिस्सा ५) महीना मिलना बढ होगा । लडकी का ऋण चुकाया जायगा। फिर जो १०००) अगर १८ वर्षकी उम्र तक कुमारी रही तो उसे बचे उस मे से २५०) ऋण छिपाने का ढड समझ तबतक ५) महीना मिलेगा। अगर १५ वर्षकी कर ७५०) मूलधन के रूप में वेकमे जमा रहेगे। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरतिवाद १८ ] और सिर्फ ७५० का व्याज ही उसे मिलेगा। दो विश्वासघात करके हजम कर जाओ और जिसने [५] अगर पति पत्नी मे से कोई भी पैता- तुमको विश्वासपात्र नहीं समझा या तुम्हारी लीस वर्ष से कम उम्रका न हो तो दोनो के नाम आवश्यकता का मूल्य नही समझा वह सुरक्षित से वेक मे रुपया जमा होगा । दोनो मे से जो रहे यह तुम्हारे जीवन का बड़ा भारी पाप है। अन्त तक जीवित बचेगा उसी को वह पेन्शन- अगर सम्पत्ति का विभाजन ही करना है तो नीति व्याज मिलता रहेगा । पर दोनो मे से जिसकी और कानून के बलपर करो इस तरह विश्वासघात उम्र कम होगी उसी के अनुसार व्याज की दर करके नही । निरतिवाद मे किसी का ऋण माफ निश्चित की जायगी । अगर पति पचाप्त वर्षका नहीं किया जायगा । हा, ऋण मे जितना भाग है और पत्नी पैतालीस की तो व्याज की दर अयोग्य होगा या सारा ऋण ही अयोग्य होगा ४५ वर्ष के अनुसार आठ आना रहेगी । पचास तो उतना ऋण नाजायज ठहरा दिया जायगा पर के अनुसार नव आना नही । माफ नही किण जायगा । दोनो के मरने के बाद वह व्याज नाबालिग ख-कोई आदमी अपने को दिवालिया घोपित सन्तान को मिलेगा। नहीं कर सकेगा । उसे जीवन भर ऋण चुकाने टोना मे से कोई एक मर जाय और दूसरा का यन्न करना पडेगा। शादी करले तो उसको व्याज मिलना बन्द हो दिवालिया की प्रथा पूँजीवाद और पूंजीपति जायगा । वह पहिले दम्पति की नाबालिग सन्तान बढाने मे सहायक होती है । एक पूंजीवादी व्यक्ति को मिलने लगेगा । सन्तान न होगी तो किसी को पूंजीपति बनने के लिये चतुराई के नाम पर बदन मिलेगा। मागी करके इधर उधर से लाकर सम्पत्ति इकठ्ठी करता है । कुछ दिनो वाद दिवाला निकाल देता ४ ऋण चुकाना अनिवार्य है । कुछ सम्पत्ति पत्नी के नाम कुछ नाबालिग क-जो ऋण लिया है वह ईमानदारी से पाई। बच्चे के नाम कर देता है । कुछ किसी अन्य ढग पाई चुकाना मनुष्य मात्र का नैतिक कर्तव्य है । से छिपा जाता है । कुछ दिनो बाद दूसरे नाम ऋण न चुकाना एक प्रकार की चोरी है और से दकान चलाता है फिर इसी तरह की गडबडी ऋण अस्वीकार करना तो डकैती है। इसलिये __ करता है । इस प्रकार एक दो बार दिवाला निकाल प्रत्येक व्यक्तिको ऋण चुकाना अनिवार्य होगा। कर अच्छा श्रीमन्त बन बैठता है । बहुत से पूजीयह कहना कि ऋण देनेवाले के पाम पति तो इसी प्रकार बन गये है। ऐसे लोग अपने आवश्यकता से अधिक धन होगा इसीलिये उसने साथी पंजीपतियो का ही नही, किन्तु गरीबो ऋण दिया। वह अविका धन अगर किसी ने का भी वन हडप जते है । कोई गरीब दो दो चार खा लिया तो क्या अन्याय है, ठीक नही । आव- चार रुपये जोडकर सेठजी के यहा जमा कर देता श्यकता से अधिक धन तो बहुतो के पास होगा है। सेठजी का कल दिवाला निकलनेवाला है परन्तु जिसने तुम्हारी ही इच्छा के अनुसार तुम्हारे और राततक मोटरे खरीदी जा रही है । इस लिये मौके पर सहयोग दिया । उसे ही तुम धोखा प्रकार धोखा देकर कछ लोग पूँजीपति बन बैठत Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारखाने आदि [ १९ है । इसलिये दिवालिया किसीको न बनाया जाय। सहूलियत दी जायगी । उसमे आगे के लिये व्याज ग-जो आदमी अपने को ऋण चुकाने मे तो माफ कर ही दिया जायगा साथ ही कुछ समअसमर्थ घोपित करे उसके कुटुम्ब की सब संपत्ति झौते के ढग से काम लिया जायगा । सरकार जप्त करले । फिर वह स्त्री के नाम हो ज-समय की अविकता से ऋण नाजायज या पुत्र के नाम हो। न हो सकेगा । समय कितना भी चला जाय ऋण घ-'अगर यह मालूम हो कि ऋणी ने कुछ बना ही रहेगा। सम्पत्ति इसलिये सम्बन्धी या मित्रो के नाम कर झ-जो आदमी ऋणी की सम्पत्ति का दी है कि जिससे वेक या साहुकार उसे ऋण मे उत्तराधिकारी होगा उसे वह ऋण भी लेना पटेगा। ले न सके तो वह सम्पत्ति सरकार जप्त तो नही तो वह सम्पत्ति उसे न मिलेगी। कर ही लेगी। साथ ही दोनो के लिये यह दड ५ कारखाने आदि नीय अपराध समझा जायगा । क-कपडे की मिले, कोयले की खदाने, --ऐसे व्यक्ति को अपना मकान जमीन रेलवे, घासलेट, पेट्रोल आदि, मोटर, साइकिल आभूपण आदि ऋण चुकाने में लगा देना होगा। इत्यादि के कारखाने सरकारी हो और सरकारी और तबतक उसे ऋणशाला मे रहना होगा। प्रबन्ध मे काम करते हो। जबतक वह ऋण न चुक जाये । हा, पत्नी पुत्र आदि के लिये ऋणशाला में जाना अनिवार्य न ख-छोटे छोटे खानगी कारखाने रहे पर होगा । अगर ऋण न चुक पाये तो उसे जीवन उन मे कोई शेयर न ले सके । शेयर की प्रथा भर ऋणशाला मे रहना होगा। ही बन्द रहे। च-ऋणगाला बेकार शाला की तरह एक ग-बीमा कम्पनियाँ और बेक राष्ट्रीय सरऐसी शाला होगी जहा ऋण चुकाने में असमर्थ कार या प्रान्तीय सरकार के हो। व्यक्ति के या लोगो को आकर रहना पडेगा । वेकारशाला की हिस्सेदारी [शेयर-होल्डरो] के बेक ओर तरह उन्हे साधारण खाना मिलेगा और साधारण वीमा कम्पनियों न हो | क्योकि पूजी वढाने की मजदूरी करना पडेगी । अगर उनकी योग्यता मनाई है अगर बीमा का रुपया व्यापार मे लगाया अधिक कमाने की होगी तो इस प्रकार की नौकरी जायगा तो व्यापार मे घाटा आने पर बीमावालो करनेकी सरकार इजाजत दे देगी । अथवा का रुपया मारा जायगा।। जमानत मिलने पर उन्हे व्यापार की सुविधा भी घ-अनेक व्यक्ति मिलकर एक दूकान खोल दी जा सकेगी। उनकी आमदनी मे से उनके सकते है-अयत्रा हलका पतला कारखाना भी भरण पोपण का खर्च निकाल कर बाकी ऋग निकाल सकते है | पर प्रत्येक हिस्सेदार को वहा चुकाने मे लगाया जायगा । ऋण मुक्त होने पर काम करना होगा । सिर्फ पूजी लगाकर कोई उन्हे ऋणशाला से मुक्त कर दिया जायगा। हिस्सेदार न बन सकेगा न व्याज के नाम पर छ-निरतिवादके प्रचारके पहिलेका कुछ ले सकेगा | जो आदमी उसमे काम न अगर ऋण होगा तो उसके चुकाने के लिये कुछ करना होगा और व्याज के लिये पूजी लगायगा Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरतिवाद २० ] तो उसकी पूंजी सरकार मे जप्त हो जायगी । व्याज या नफा लेने पर अपराधी समझा जायगा इससे सजा पायगा । ङ -- म्युन्सपल कमेटियों या डिस्ट्रिक्ट बोर्डों को ट्राम रेलवे, बस आदि खोलने का अधिकार होगा। च -- जहा तक हो सके बडे बडे कारखाने न खोले जॉयँ । कारखानो का रूप ऐसा हो जिन्हे एक कुटुम्ब आराम से चला सके । कपडे की एक मीलकी अपेक्षा अगर छोटे छोटे कर्वे घर घर मे हो या इस प्रकार की मशीने हो जो घर पर चलाई जा सकती हो और मनुष्य इच्छानुसार उस पर काम करे और काम के अनुसार पैसा पावे तो और अच्छा । घर द्वार छोडकर हजारो आदमियों का एक जगह काम करने से काम चाहे कुछ सस्ता या सुविधा जनक होता हो पर दूसरी दृष्टि से बडी हानि होती है । १ - बीच बीच मे विश्राम करता हुआ स्वतन्त्रता से काम करने वाला मनुष्य दस घटेसे भी अधिक काम आराम से कर सकता है । मील मे आठ घटा भी भारी मालूम होता है । २-मील मे स्वास्थ्य खराब हो जाता है । ३ --सदाचार नष्ट हो जाता है । ४ पराधीनता बढ़ जाती है । इत्यादि बहुत से ढोप बडे बडे कारखानो मे है । जिन कार्यो के लिये बडे कारखाने बनाना अनिवार्य है उनकी बात दूसरी है । वे रहे, पर जो चीजे ऐसे बडे कारखानो के बिना भी तैयार की जा सकती है उनके चिपय मे नीति विभक्ती - करण की रहे । ६ ज़मीन और मकान क - जमीन की मालिकी जहा तक हो सके समानरूप मे रक्खी जाय । आवश्यकता से अधिक जमीन कोई न रक्खे | जमीदारी प्रथा नष्ट कर दी जाय । जमीन को भाडे पर देना आदि सख्त मना रहे । ख - एक कुटुम्ब को उतनी ही जमीन मिले जितने मे वह अपने हाथ से खेती कर सके । अनाज काटने या देखरेख मे वह नौकरो या मजदूरो से सहायता ले सके पर खेती के कार्य मे वह स्वय सहयोगी रहे । ग-कटम्ब के एक एक व्यक्ति के पीछे कुछ जमीन नियत रहे [ उदाहरणार्थ पाच पाच एक ] जिससे अधिक जमीन कोई न रख सके । अगर कुटुम्बियो की संख्या घट जाय और उससे जमीन रखने की सीमा का उल्लघन होता हो तो सरकार वह जमीन दूसरो को जिनके पास सव से कम जमीन हो-भाडे से देदे । घ- सरकार जो जमीन किसी को भाडे पर देगी वह जमीन आवश्यकतानुसार कभी भी ले सकेगी । सरकारी आवश्यकता के दो रूप रहेगे । १ कोई सरकारी काम हो । २- किसी कम जमीन वाले को या वेजमीन को ज़मीन देना हो । जो जमीन सरकार बेच देगी उसका लगान तो देना पडेगा पर वह मौरूसी होगी । मकान मालिक उसे बेच तो सकेगा, पर तबतक सरकार वह जमीन ले न सकेगी जबतक उसके कुटुम्ब मे उतनी जमीन के खेती करने वाले रहे । सरकार जब लेगी तब उसका मूल्य चुका देगी । पर बारह वर्ष तक मूल मालिक को आवश्यकता सिद्ध करने पर सरकार से अपनी जमीन वापिस लेनेका हक होगा । ड- - बस्ती या म्युन्युसपल के भीतर कोई कुटुम्ब एक एकड से अधिक जमीन न रख सकेगा च-अपने उपयोग के लिये ही मकान रख सकेगा भाडे पर देने के लिये नही । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरकारी मुलाजिम [२१ छ--भाडे पर देने के लिये मकान और मास-भक्षी भी आकर रह सकेगा । इससे शाकदूकान सरकारी या म्युन्युसिपल आदि की होगी। भोजियो को वडा कष्ट होग। छोटे गाव मे भी गाव की ओर से या सरकार की उत्तर-सरकारी मकानो मे जातिपॉतिका ओर से ऐसे मकान बनेगे जो भाडे पर दिये जा विचार तो न रहेगा पर मासभोजियो के लिये खास सकेगे। खास इमारते ही रहेगीं । शाक भोजियो के मकान प्रश्न-इससे प्रवासियो का कष्ट बढ जायगा। मे मांसभोजी न रह सकेगा। अगर किसी गाव मे सरकारी मकान न हो, अथवा ४ प्रश्न-जमीन और मकान जिस प्रकार होकर के भी भरा हुआ हो तो प्रवासी कहा ठहरे भाडे से न दिये जायेंगे उसी प्रकार क्या अन्य चीजो गाववाले भाडे के लोभ के बिना मकान क्यो देगे के भाडे पर देने की मनाई होगी? उदाहरणार्थ-मोटर उत्तर-मकान जब व्यापार के साधन न रह गाडी, साइकिल आदि भी भाडे से न दी जासकेगी। जॉयेंगे तब लोगो की भावना ही बदल जायगी । उत्तर-साइकिल मोटर आदि को भाडे पर आज भाडे के कारण मकानो का मूल्य दूसरे ढग देने की मनाई न होगी । जमीन और मकान का ही मालूम होता है । पर उस समय मकान जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएँ है इनके ऊपर आवश्यक होने पर भी पानी की तरह पीने और मनुष्य का एकाधिपत्य हो जाना दूसरो को जन्म पिलाने की चीज रह जायेंगे । आतिथ्य की भावना बढ जायगी । यो तो आज भी प्रभासियो को सिद्ध अधिकार से वञ्चित करना है। साइकिल थोडा बहुत कष्ट सहना ही पड़ता है मो तब भी मोटर आदि मे नही । सहना पडेगा । छोटे गावो मे तो आज भी मकान प्रश्न-फिर भी पूँजी पैसा कमाने मे सहायक भाडे को लोग बहुत कम जानते है । नो हुई। . २ प्रश्न-होटलो का क्या होगा ? उत्तर--सो तो होगी ही। पर उसके साथ उत्तर-होटल तब भी रहेगे । पर इसके परिश्रम आदि भी लगेगा । ब्याज की तरह केवल लिये सरकारी मकान भाडे से मिलेगे । हा सिर्फ पूँजी पूँजी न वढाये यही आवश्यक है । परिश्रम भोजन कराने के लिये अपने मकान का उपयोग का सावन बने तो कोई हानि नही अथवा अनिकिया जा सकता है । पर यात्री को ठहराने और वार्य हानि है। ठहरने का भाडा लेना हो तो सरकारी मकानो मे ७ सरकारी मुलाज़िम ही हो सकेगा । यदि ऐसा न किया जायगा तो क-सरकारी काम पर नियुक्त होते समय लोग इसी बहाने पूँजी से व्याज या नफा पैदा प्रत्येक व्यक्ति को अपनी साम्पत्तिक अवस्था बता करने की कोशिश करेगे। देनी होगी। इसी प्रकार छोडते समय बतानी होगी। ३ प्रश्न-भाडे के लिये सरकारी मकान रहने ख-रिश्वत लेने की सख्त मनाई रहेगी। से एक बडी दिक्कत बढ़ जायगी । वह है पडौस साधारणतः रिश्वत देने वाला और रिश्वत लेनेवाला की । सरकारी मकानो मे जाति-पॉति का विचार दाना ही अपराधी समझ जावेगे। पर रिश्वत लेने तो रक्खा नहीं जा सकता । तब पडोस मे एक वाला तो निश्चित ही अपरावी रहेगा । हा, रिश्वत Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरतिवाद २२ ] देने वाला उस हालत मे ही अपराधी समझा जावेगा जब रिश्वत देकर कोई अनुचित लाभ चाहेगा । भुलाकर डराकर या उसकी स्वाभाविक सुविधा से वचित कर अगर रिश्वत ली गई होगी तो रिश्वत देनेवाला अपराधी न माना जायेगा | ग- वेतन निम्न लिखित मासिक दरके अनुसार "" मालूम घ- सरकारी मुलाजिमों को वेतन के अतिरिक्त निम्न लिखित सुविधाएँ और मिलेगी । राष्ट्राध्यक्ष- मकान, मकान की सफाई आदि को नौकर, बोडीगार्ड, मोटर आदि सवारी, उसके लिये नौकर तथा पेट्रोल आदि । ङ -- पेन्शन मिलेगी । रहेगा । राष्ट्राध्यक्ष १०००) प्रान्ताध्यक्ष ५०० ) से ७००) तक राष्ट्रीय धारासभा के मंत्री आदि ५००) से ६००) प्रान्तीय धारासभा के मंत्री आदि ४५० ) से ५०० ) हाइकोर्ट जज ४५०) से ६००) तक कलेक्टर शेसन जज आदि २५०) से ३५०) तक प्रोफेसर सबजज आदि १००) से २०० ) तहसीलदार आदि ७५) से १००) तक नायब तहसीलदार ५०) से ७५) पुलिस इन्स्पेक्टर ४० ) से ६५) हॉइस्कूल के मास्टर ४० ) से १००) मिडिल स्कूल के मास्टर २५) से ३५) तक प्रायमरी स्कूल १६ ) से ३०) तक 35 35 यह एक साधारण रूप रेखा है । इससे दृष्टि- होगा। पति के कुटुम्बियो का नहीं । कोण होता है । 1 प्रान्ताध्यक्ष आदि को कुछ कम मात्रा मे इसी के अनुसार मंत्री आदि का भी विचार किया जायगा । सबजज आदि को रहने के लिये मकान मुफ्त दिया जायगा । ८ नारीका अधिकार क - प्रत्येक विवाह के समय स्त्री-वन नियत किया जायगा । उस पर हर हालत मे जीवन भर नारी का अधिकार रहेगा । ख -- उत्तराधिकारित्व मे पुत्रो के समान पत्नी का भी एक भाग रहेगा । ग --माता के स्त्रीवन पर उसकी पुत्रियों का अधिकार होगा । पुत्री न हो या जीवित न हो तो वह पुत्रों को मिलेगा । पुत्री के पति पुत्र आदि को नही । माता अगर अपना स्त्रीधन पुत्रियो को न देना चाहे तो नही भी दे सकती है। माता की इच्छा मुख्य है 1 घ- नारी अगर विशेप अर्थोपार्जन करती हो तो १५) मासिक आमदनी के अतिरिक्त जितनी आमदनी होगी उस पर उसी का अधिकार होगा । १५) कुटुम्ब खर्च के लिये कम किये गये है । ड--पति के अगर कोई सन्तान न हो तो पति की समस्त सम्पत्ति पर पत्नी का अधिकार निरतिवाद का यह साकेतिक रूप है। कुछ बात तो मैंने यहा कुछ स्पष्टता से लिखीं है जिससे निरतिवाद की व्यावहारिकता को लोग समझ सके और कुछ साधारण रूप में ही लिखदी है । समय आने पर इनके उपनियम बनाने मे देर न लगेगी । कुछ बाते ऐसी है जिनको मैंने यहा लिखा नही है पर वे आपसे आप समझी जा सकती है। जैसे निरतिवादी समाज मे सट्टा जुआ आदि बन्द रहेगा, भिक्षा माँगना अपराध समझा जायगा । अमुक योग्य साधुओ को ही आवश्यकतावश इसकी पर्वानगी दी जा सकेगी । लोग सग्रहशील Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २३ अब और यहां वनने की अपेक्षा दानशील बने इसके लिये दानियो (२) धनसंग्रह पर रोक को विशेष उपाधियो का देना आदि बहुत सी छोटी इस विषय की भी सभी बाते आज व्यवहार वडी बाते है जो देशकाल देखकर प्रचलित की में आने योग्य है। जॉयेंगी । यहा तो निरतिवाद को समझने के लिये (३) व्याज हराम सक्षिप्त रूप-रेखा रखदी है । परिस्थिति के अनुसार क-मूल योजना तक पहुँचने के लिये इसमे परिवर्तन भी हो सकता है। पंद्रह वर्ष का समय निश्चित किया जाय । पहिले - अब और यहां पाच वर्ष तक बेकोसे प्रति वर्ष २) सैकडा । इस के आगे पाच वर्ष तक १॥) सैकडा । इसके निरतिवाद का जो रूप यहा बताया गया । का आगे पाच वर्ष 1) सैकड़ा ब्याज मिले बादमे है वह कोरा आदर्श नहीं है वह एक व्यावहारिक ___ व्याज देना बिलकुल बद हो जाय । योजना है । पर उस व्यावहारिक योजना को भी अमल में लाने के लिये समय चाहिये । प्रत्येक ख, ग,-मूल योजना की तरह अब और देश की परिस्थिति ऐसी नही होती कि जो एक यहा भी व्यवहार मे लाये जा सकते है । दम निरतिवाद के रूप में बदल जाय । यद्यपि घ-इसमे ब्याज की दर मे परिवर्तन करना निरतिवाद के प्रचार के लिये पूरी नही तो आशिक होगा । जब बेक पन्द्रह वर्ष के तीन भागो मे २) १) ॥) व्याज ढेगे तब उन्हे लोगो से कुछ क्रान्ति की आवश्यकता है फिर भी निरतिवाद इस अधिक लेना होगा। इसलिये पहले पाच वर्ष मे ३) ढग से काम करना चाहता है कि लोगो को कम से कम झटका लंगे। सैकडा प्रतिवर्प, दूसरे पाच वर्ष मे २१) सैकडा तीसरे पाच वर्ष मे २) सैकडा । । ___मै भारत की वर्तमान परिस्थिति को देखते खानगी बेको को भी ब्याज की इसी दर हुए कुछ ऐसा कार्य निश्चित करना चाहता हू जो . का पालन करना चाहिये । और पाच वर्ष मे बेक कुछ शीघ्र व्यवहार मे लाया जा सके । दूर तोड देना चाहिये । बेक की पूँजी शेयर-होल्डगे भविष्य में पूरा निरतिवाद प्रयोग मे आ ही जायगा मे बॉट देना चाहिये । किन्तु उसके बीच का विश्राम--स्थान कैसा हो ऊ-मूल योजना की तरह । इसी का यहा वर्णन करना है। (४) ऋण चुकाना अनिवार्य निरतिवाद की योजना में बहुत सी बाते तो इसके क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, ऐसी है जिन पर आज भी पूरा अमल करना है। झ. विषय तो मूल योजना की तरह अब और यहा परन्तु कुछ वात ऐसी है जिन पर समझौते की भी रहेगे । छ के विषय मे कुछ स्पष्टीकरण दृष्टि से कुछ परिवर्तन करना है । यह है--- (१) बेकार-शाला पुराना जो ऋण है उस पर तब से अबतक . इस विषय की सभी बाते आज भी व्यवहार मासिक चार आना सैकडा व्याज लगाया जाय मे आने लायक है। और बीचमे अवधि समाप्त होन के डरसे नालिश Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] निरतिवाद वगैरह की हो तो उसका खर्च भी जोडकर ऋण हिस्सेदारी कर सकते है । की जो रकम हो उसमे वह सब रकम कम कर ६ ज़मीन और मकान दी जाय जो साहूकार को आज तक मूल या क-वर्तमान मे जो जमीदार है उनका ब्याज के नाम पर मिली है। इस ऋण को ___ जमीदारी हक दस वर्ष तक चालू रहे । बादमे जमीदारीक दस वर्ष तक चाल चुकाने के लिये पाच वर्ष की मुद्दत दी जाय । उनकी जमीदारी सरकार लेले । इसके बाद पाच इस मुद्दत मे ब्याज न लगाया जाय । अगर ऋणी वर्ष उनको अपनी जमीन कम करने के लिये की आर्थिक स्थिति अच्छी हो तो जल्दी ऋण और दिये जॉय । इस बीच वे अपनी जमीन बेच चुकाने के लिये न्यायालय आज्ञा दे । सकते है या कुटुम्ब मे इस प्रकार विभक्त कर (५) कारखाने आदि सकते है कि नियम न. [६-ग] के साथ इसके सभी विषयोमे पुराने कारवार के विरोध न रहे । लिये निम्न लिखित स्पष्टीकरण है--- ख-जिनके पास जमीन अधिक है उन्हे दस १-अभी जो कारखाने या कम्पनियों है वे वर्ष का समय दिया जाय कि वे अपनी जमीन पाच वर्प मे सरकारी हो जॉयेंगी। उनकी मशीन नियम न. ६-ग के अनुसार करले । आदि की जो उस समय कीमत उचित समझी ग-ऊपर जो क और ख मे समय दिया गया जायगी वह सरकार देगी। पर सरकार एक साथ है उसके पूर्ण होने पर यह योजना काम मे लाई न देगी । वह दस वर्ष मे धीरे धीरे देगी। जाय । और उसी क्रम से वह शेयर होल्डरो मे बट जायगी। घ--मल योजना की तरह । २-एक व्यक्ति के नाम अगर एक लाख --पाच वर्ष की अवधि दी जाय । रुपये से अधिक के गेयर होगे तो वे अधिक शेयर च--पाच वर्ष तक मकान भाडा ले सकेगा। सरकार जप्त कर लेगी। अर्थात् हिस्सा होते समय परन्तु भाडा औचित्य की मात्रा से अधिक तो उन शेयरो का रुपया सरकार खुद लेलेगी। नही है इसकी जॉच की जायगी । और दो वर्ष ३-बीमा कम्पनियों नये बीमा लेना बद कर के बाद भाडेका चतुर्थाश सरकार लेने लगेगी। देगी | पाच साल तक पुराने बीमो का रुपया उसके दो वर्ष बाद आधा लेने लगेगी और पाचवे लेती रहेगी और चुकाती रहेगी पर शेयर होल्डरो वर्ष तीन चतुर्थाश । बाद मे पूरा । सिर्फ मरम्मत को प्रति वर्ष ३) सैकड़ा से अधिक न बॉट के लिये भाडे की आमदनी का एक दशाश मिल सकेगी । बाद मे कम्पनी सरकारी हो जायगी। सकेगा। और वह ऊपर के दो नियमो के अनुसार शेयर- छ-मूल योजना की तरह । होल्डरो को बदला देगी। ७ सरकारी मुलाज़िम --पाच वर्प मे सब हिस्सेदारो को अपना क और ख मूल योजना की तरह । हिसाब करके अलग हो जाना चाहिये ।। ग मे थोडा बहुत परिवर्तन किया जा सकता है। अथवा वे नियम न. ५ घ के अनुसार नये ढगसे घ ङ मूलकी तरह । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देशी राज्य [ २५ ८ नारीका अधिकार च-विदेश-यात्रा या अन्य किसी यात्रा का सभी विषय मूल योजना की तरह । खर्च भी राज्य से मिलेगा पर इसकी स्वीकृति धारासभा ९ देशी राज्य से लेनी होगी और बजट भी धारासभा से पास यह एक नया विषय है जो मूल योजना मे नही कराना होगा। है । वास्तव मे इनकी आवश्यकता नहीं है परन्तु छ--विवाह शादी आदि विशेष प्रसगो के भारतवर्ष मे ये है और इस परिस्थिति में है कि लिये भी राज्य की तरफ से खर्च मिलेगा पर उसकी इन्हे सहसा तोडा नहीं जा सकता । ऐसी हालत में स्वीकृति धारा सभा से लेनी होगी। अगर इनके विपय मे निश्चित और दृढ विचार ज-भोजन खर्च, वस खर्च, खानगी यात्राएँ, प्रगट न किये जाय तो ये गकाकुल रहेगे और दान पुण्य, तथा और भी पाकिट खर्च के लिये कभी भी प्रजा के सहयोगी न बनेगे । देशी राज्यो राजाओ को निम्न लिखित भेट राज्य की ओर से को ईमानदारी के साथ दृढ आश्वासन देने की मिलेगी। जरूरत है और इनका स्थान निर्दिष्ट कर देना भी राजा के लिये १०००) मासिक ज़रूरी है। रानी के लिये ५००) मासिक क-राजाओ का सन्मान वही रहेगा जो आज है। राजकुमार और राजकुमारियो को २५०) मासिक ख--राजाओ को राज्यो मे उत्तरदायित्वपूर्ण राजा के सगे भाई ) शासन स्थापित करना होगा । राजाओ का स्थान अविवाहित बहिन और । २५०) सुरक्षित है । पर जैसे इग्लेड के राजा के अधिकार राजमाता प्रत्येक को । सीमित है असली और अतिम अधिकार पार्लमेट झ--राजा, रानी, राजा के भाई, बालिग को है उसी प्रकार राजाओं के अविकार सीमित रहेगे राजकुमार इनको राज्य की तरफ से कुछ न कुछ असली अधिकार उस राज्य की व्यवस्थापक सभाको और अतिम अविकार भारत सरकार को रहेगे। काम सौपा जायगा । वह इन्हे करना होगा । उपग--देशी राज्यो के अलग सिक्के पोष्ट और र्युक्त भेट पेन्शन के तौर पर न होगी किन्तु फौजदारी कानून न होगे । भारत सरकार के सिक्के एक तरह का वह वेतन या आनरेरियम होगा । पाट और फौजदारी कानन ही लागू होगे । दीवानी ब---आज जो रानाओ के पास खानगी कानून भी भारत सरकार से पास करा लेना पडेगे। जायदाद है उसमे से दस लाख रुपये तक की घ--वर्तमान मे उनके रहने के लिये जो महल जायदाद उनके पास रहेगी वाकी राज्य की है वे उन्हीं के पास रहेगे । हा, जो उनके किसी समझा जायगा काम मे नहीं आते वे राज्य के काम मे लेलिये ट-देशी राज्यो की तीन श्रेणियाँ रहेगी। जांवगे । राज महलो की देखरेख सफाई आदि के प्रथम श्रेणी में हैदराबाद मैसूर गवालियर वडौढा लिये नौकर तथा सामान राज्य की तरफ से मिलेगा। काश्मीर इन्दोर उदयपुर जयपुर आदि रियासते --बोडीगार्ड, मोटर आदि का खर्च भी रहेगी । राजकुटुग्यो के लिये ऊपर जिस भेटका र.ज्य की तरफ से मिलेगा। वर्णन किया गया है वह प्रथम श्रेणी की रियासतो Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ] निरतिवाद के विषय मे है । इन रियासतो का स्थान एक अगर राजा या रानी ने यह इच्छा प्रदर्शित की प्रान्तीय सरकार सरीखा होगा अर्थात् ये भारत होगी कि उनकी खानगी जायदाद भी उनके सरकार के नीचे रहेगी। स्मारक बनाने या किसी दूसरे ढग से कोई दूसरा दूसरी श्रेणी की रियासतो मे राजकुटुम्बो के स्मारक तैयार कराने मे लगायी जाय तो उसके लिये जो भेट दी जायगी वह ऊपर के अनुपात अनुसार कार्य किया जायगा। से करीब आधी होगी उनके अन्य खर्च भी कम देशी राज्योकी इस प्रकार कायापलट हो होगे | ये रियासते प्रान्तीय सरकारो के अधीन जाने से भारतीय जनता को और राजाओ को, रहेगी इन का स्थान एक जिला की तरह होगा। दोनो को लाभ है। तीसरी श्रेणी की रियासते जिलाधीश ( कले भारतीय जनता को तो यह लाभ है कि क्टर ) की देखरेख में रहेगी । इनके शासको को राजाओ के साथ जो सघर्प है वह मिट जायगा आनरेरियम और भी कम मिलेगा। और राजा लोग भारत की उन्नति करने मे और ठ-किसी भी राजाको गोद लेने का अधि जन सेवा करने मे दत्तचित्त हो जायगे । नि सकार न होगा । उसके बाद राजपुत्र उत्तराधिकारी न्देह राजाओ को जो विशेप सुविधाएँ रहेगीं वे होगा । उसके अभाव में राजपुत्री [ अगर वह निरतिवाद की नीति के कुछ बाहर जाती है । किसी दूसरे राज्य की रानी न हो तो ] राजपुत्री उनका खर्च राष्ट्राध्यक्ष की अपेक्षा भी बढ जाता के अभाव मे रानी की अनुमति हो तो राजा का है । फिर भी वर्तमान परिस्थिति की अपेक्षा वह सगा भतीजा, उसके भी अभाव मे अन्तिम शासक परिस्थिति कई गुणी अच्छी है। राजाओ का के रूप मे रानी, राज्य करेगी। रानी के देहान्त के बाद राज्य भारत सरकार के हाथ मे पूरे रूप कुछ पूंजीपतित्व अवश्य वढा रहता है पर पूँजीवाद मे आ जायगा। भारत सरकार या तो उसका नहीं बढ़ता । इससे विशेष हानि कुछ नहीं है | राज्य मे उत्तरदायी शासन स्थापित हो जाने से स्वतन्त्र एक प्रान्त बना देगी अथवा किसी प्रान्त मे मिला देगी। राजा लोग जो प्रजा से दूर पड़े हुए है वे निकट आजायगे । परस्पर का सकोच और भय दूर ड-इस प्रकार जो राज्य भारत सरकार होजायगा । एक दूसरे के सहयोगी और मे मिला दिया जायगा उसकी राजधानी मे अतिम प्रेमी बन जॉयगे । राजाओ के मनमे भी भारत राजा और अतिम रानी का एक विशाल स्मारक होगा । जिस मे राजा और रानी की मूर्तियों रहेगी से विशेप प्रेम हो जायगा । इसलिये भारतीय और चारो तरफ एक बाग होगा । यह स्मारक प्रजा को चाहिये कि वह देशी राज्योके विषय मे प्रथम श्रेणी की रियासतो के लिये करीब दस उपर्युक्त नीति से सहमत हो जाय ।। लाख रुपये के खर्च से, दूसरी श्रेणी की रिया- बहुत से लोग राजाओ को नष्ट कर देने सतो के लिये करीब पाच लाख रुपये के खर्च की बाते किया करते है | इस तरह की बातो से से और तीसरी श्रेणी की रियासतो के लिये करीव राष्ट्र की शक्ति छिन्न भिन्न होती है । राजा दो लाख रुपये के खर्च से बनाया जायगा। लोग अभी अनियन्त्रित शासक है अथवा जिसके Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देशी राज्य [ २७ नियन्त्रण मे है वह सत्ता भारतीय लोकमत की देश के नेताओ को और काग्रेस को उसका समनहीं है। राजाओ को उखाड देने की बातो से दो र्थन करते हुए स्पष्ट घोपणा करना चाहिये भले सत्ताएँ भारतीय लोकमत के विरुद्ध खडी हो जाती ही आवश्यकतानुसार उस मे थोडा बहुत परिहै। बाहर की सत्ता से लडा भी जा सकता है वर्तन कर लिया जाय । पर भीतर की सत्ता के साथ लडाई छेडने से राष्ट्र : राजा लोग अगर इस विषय मे कुछ विचार की शक्ति के टुकडे टुकडे हो जाते है । राष्ट्र करेंगे तो उन्हे बहुत से लाभ दिखाई देगे । कुछ निर्बल हो जाता है। का सकेत यहा किया जाता हैकुछ लोग ऐसे है जो राजाओ के विषय १-कुप्रवन्ध आदि की जिम्मेदारियो से मे कुछ नहीं बोलते अथवा कह देते है कि राजाओ बच जावगे इससे जो उनका अपयश फैलता है को ज्यो का त्यो रक्खेगे । पर इससे राजाओ की वह दूर हो जायगा । शका दूर नहीं होती । भारत मे जो उथल पुथल २-भारत सरकार के एजेन्ट. से उन्हे मची हुई है उसको देखते हुए राजा लोग भी यह डरते रहना पडता है, और भीतर ही भीतर उन नहीं समझते कि भविष्य मे वे ज्यो के त्यो रह से काफी अपमानित होना पडता है । प्रजा का सकेंगे । वे कुछ त्याग करने को भी तैयार है पर बल न होने से उन्हे यह अपमान सहना पडता उनको कुछ ऐसा निश्चित रूप मालूम होना चाहिये है। परन्तु पीछे यह अपमान न सहना पडेगा। जिसे देखकर वे आश्वासन प्राप्त कर सके । हम ३--एक तरफ निर्बलो पर अत्याचार और आप को छेडना नही चाहते इत्यादि मीठी बातो दूसरी तरफ वडी सत्ता से भय, इन दोनो दोपो पर वे भरोसा नहीं रख सकते । वे तो यह समझते है कि आप नहीं छेडन चाहते. तो आप सम से मनुष्यता नष्ट होती है और इससे सच्चा आनन्द का साथी या शिप्य छेडेगा दूसरे लोग छेड़ेंगे। दो नहीं मिलता और न सच्चे मित्र मिलते है । म. गाधी न छेडेगे तो प. जवाहिरलाल छेडेगे । पैसे के बल पर नौकर मिलते है धनके जबतक कि उनके विषय में कोई जिम्मेदार व्यक्ति लोभ से चापलूस मिलते है, हृदय से प्रेम करनेनही ( व्यक्ति तो आज है कल नही ) किन्तु वाले नहीं मिलते । क्योकि राजाओं की वर्तमान कोई जिम्मेदार सस्था ( उदाहरणत. काग्रेस) परिस्थिति प्रजा के ऊपर बोझ सरीखी है । स्पष्ट शब्दो मे कुछ घोपणा नहीं करती तबतक जहा सच्चा प्रेम और भक्ति नहीं है और जीवन राजा लोग कैसे आश्वासन प्राप्त करेगे । राजा बोझ है वहा सच्चा आनन्द कहा से मिलेगा । लोग यहा तक तो सहमत हो जायगे कि रिया- ४-वर्तमान मे राजाओ का जीवन बहुत सनो की बुराईयाँ चली जॉय पर वे यह जरूर कुछ पराधीन है । वे प्रजा के सम्पर्क में आ ___चाहेगे कि उनका व्यक्तित्व बना रहे वे राजा बने नही सकते न सार्वजनिक कार्यों मे भाग ले सकत रहे और अमुक सुविधाएँ भी [ भले ही वे काफी है। जरा जरासी बात के लिये उन्हें बडी सत्ता । मर्यादित हो ] पाते रहे। का मुंह ताकना पड़ता है। अविकार परिमित ऊपर की योजना मे दोनो वाते है इसलिये हो पर निश्चित हो और किसी के द्वेप का विषय Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ] निरतिवाद न हो और उन मे नागरिकता की वास्तविक रहेगा और उसका खर्च राज्य देगा। भोजन सुविधाएँ हो तो उसमे जो आनन्द और शान्ति वस्त्रादि के लिये जो दिया जायगा वह कम नहीं है वह अन्यत्र नहीं । है। हा, ऐयाशी के उन्माद के लिये पैसा नहीं ५-भारत जिस दिशा में आगे बढ रहा मिलेगा और इससे उन्हे बडा लाभ होगा । आज है उसे देखते हुए यह निश्चयात्मकरूप मे कहा दुर्व्यसनो के कारण उनका जीवन बर्बाद हो जा सकता है कि राजाओ की स्थिति सरक्षित जाता है और वे बाहर से वैभव-पूर्ण होने पर भी नही है । जिस युग मे बडे बडे साम्राज्यो के भीतर से खोखले और दुखी होते है । इसमे मिटने मे देर नहीं लगती उस युग मे राजाओ के राजाओ का ही अपराध नहीं है, राजाओ के उखडने में देर न लगेगी । यह ठीक है कि राजा हाथ मे जो अनियन्त्रित सावन है उनका अपराध अपनी शक्ति का उपयोग करके प्रजा की प्रगति भी है । जहा अनियन्त्रित वन और प्रभुत्व हो मे रोडे अटका सकते है पर इससे इतना ही होगा वहा देवता भी दानव बन सकते है फिर राजा कि आज का कार्य कल हो पायेगा । पर वह तो राजा ही है । इस ढानवता से राजाओ का कल राजाओ के लिये बहुत भयकर होगा । प्रजा जीवन सुख शान्ति मय नही हो पाता । इसलिये का कोप खुदाकी चक्की की तरह है जो धीरे यह आर्थिक नियन्त्रण उनके जीवन को पवित्र धीरे चलती है पर अच्छी तरह पीसती है। इस और सुख शान्तिमय बनाने में सहायक होगा। के लिये सब से अच्छा उपाय यही है कि प्रजा आज उनके विषय मे प्रजा का ऐसा खयाल है के साथ राजा लोग उपर्युक्त शर्तीपर सुलह करले, कि राजा लोग लाखो रुपये मुफ्त मे उडा जाते इससे वे भी सदाके लिये निश्चित रहेगे और प्रजा है पर निरतिवादी योजना के अनुसार सुलह हो की भी उन्नति होगी । राष्ट्र की उन्नति के साथ जाने पर उन पर से यह आक्षेप निकल जायगा वे भी उन्नत हो सकेगे। इसलिये वेजा के प्रेमपात्र हो जायगे साथ ही प्रजा के साथ सर्प होने मे अगर वे उनका वैभव या ठाठ करीव ज्यो का त्यो बना सफल भी होगे तो भी चैन से न रह पावेगे और रहेगा। इस प्रकार दोनो ओर राजाओका कल्याण अगर असफल हुए तो मिट जावगे। सफल होने ही है । की सम्भावना बहुत कम है । वे नहीं तो उनके इस प्रकार निरतिवादी योजना के अनुसार उत्तराधिकारी सकट मे पडेगे। इस प्रकार के राजाओ और भारतीय जनता के बीच सुलह हा अशान्तिमय विद्रोहमय चिन्तित जीवन की जाने से राजाओ का भी हित है और भारतीय अपेक्षा प्रजा के साथ सुलह करके शान्तिमय जनता का भी हित है । हा, थोडा थोडा त्याग प्रेम मय जीवन बिताना बहुत अच्छा है। दोनो को करना पडेगा जो कि उचित है । ६-ऊपर की योजना मे राजाओ को वेतन या भेट आज की अपेक्षा कम रक्खी गई उपसंहार है पर सच पूछा जाय तो उसमे कष्ट कुछ नही निरतिवाद की यह योजना पत्थर की लकीर है क्योकि महल मकान ठाठ आदि तो फिर भी नही है इसमे अनुभव और युक्ति के आधार पर Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९ उपसंहार थोडा वहत परिवर्तन किया जा सकता है सो वह विन्दु को सामने रख कर कार्य करे और श्रीमानों तो समय आने पर हो जायगा। अभी तो उस को गाली देने मे अपनी शक्ति खर्च न करे तो की आत्मा को समझ कर अपनाने की कोशिश देशको उसके द्वारा कुछ ठोस सेवा मिल सकती है । करना चाहिये । साम्यवादी दलमे गाली न देने वाले जिम्मेदार यद्यपि श्रीमत्ता पर इसमे अकुश है पर अगर व्यक्तियो की-त्यागियो की-विद्वानो की-कमी नहीं श्रीमान लोग विचार करेंगे तो उन्हे मालूम होगा है । जो गाली ही देते है उनका भी कुछ अपराध कि उन्हे दुःखी होने का कोई कारण नहीं है नही है । बात यह है कि यहा की भमि के अनुकल बल्कि उनकी अनियन्त्रित लालसाओ को रोककर निश्चित योजना न होने से इस प्रकार की अस्तउन्हें एक प्रकार की गान्ति दी गई है और प्रजा के व्यस्तता स्वाभाविक है । मै समझता हूँ कि निरकोप और ईर्ष्या से बचाया गया है । और दानादि तिवाद की योजना साम्यवादियो को भी अपने के रूप मे जीवन को सफल बनाने की ओर ध्येय के अनुकूल और व्यवहारू मालूम होगी। उन्हे परिचालित किया गया है । ___बहुत से लोग इस योजना को राजनैतिक साम्यवादियो से मै कहूगा कि भारत की योजना समझेगे । इसमे सन्देह नहीं कि इसका परिस्थिति पर विचार करे । साम्यवाद का पौधा सम्बन्ध थोडा बहुत राजनीति से है भी । इस इस देशकी मिट्टीमे लग सकता है या नहीं ? यदि योजना के कार्य--परिणत होने पर राजनैतिक लग सकता है तो उसके लिये खाद तथा रक्षा के परिवर्तन होना अनिवार्य है । पर मै राजनीति के साधन हम जुटा सकते है या नहीं यह एक प्रश्न अग के रूप मे इस योजना को नहीं रख रहा हू। तो है ही, साथ ही यह भी एक प्रश्न है कि साग्य मै तो इसे सामाजिक क्रान्ति या सामाजिक सुधार वाढ क्या स्थिर चीज बन सकती है ? अभी के रूप मे रख रहा हूँ। बल्कि दूसरे शब्दो मे तो उसकी परीक्षा हो रही है। और ज्यो ज्यो " मैं इसे गर्मिक समझता हू । समय बीतता जा रहा है त्यो त्यो वह निरति- पुराने समय मे वर्म और समाज के नाम पर वाद की ओर ही बढ़ता जा रहा है । भय है कि ही लोग परिग्रह का त्याग करते थे, दान करते थे, कही आवेग मे या किसी क्राति द्वारा वह निरति- अपने व्यापार को सीमित करते थे, राजा लोग वाद की सीमा का उल्लघन कर पंजीवाद मेन आर श्रीमान लोग अपने सर्वस्वका त्याग करके । चला जावे । कुछ भी हो पर कम से कम अभी भिक्षुक बन जाते थे । कोई भिक्षुक अपने ' वह निरतिवाद की ओर जा रहा है। ऐसी हालत द्वार से भूखा निकल जावे तो लोग शर्मिन्दा होत ' म हम निरतिवाद को ही अपना कार्यक्रम बनावे ये ओर समझते थे कि हमसे कोई पाप हो गया । और दूसरो की भूलो से लाभ उठाकर विचार- है । राजसगा भी समाज के इस प्रभाव की अव१६ पूर्वक अपना पथ निर्माण करे तो यह सब नकल हेलना न कर सकती थी। ___करने की अपेक्षा कही श्रेयस्कर है । __आज हमारे सामाजिक और धार्मिक जीवन काग्रेस मे 'सोशलिस्ट पार्टी के नाम से मे यह सब नहीं रह गया है । और राजसत्ता '' जो दल बना हुआ है वह निरनिवाद के दृष्टि- बिलकुल अलग जा पही है Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ] निरतिवाद निरतिवाद इन सब को मिलाकर, सब की सुवि- की दृष्टि मे राजनैतिक । अपनी अपनी दृष्टि है। धाओ का विचारकर पुराने युगको वापिस लाना ऐसी कौनसी योजना है जिस पर लोग हंसे चाहता है पथ-भ्रान्ति दूर कर देना चाहता है। न हो या जिसकी निन्दा न की हो । सो इसके पर वह पुराना युग ज्यो का त्यो तो वापिस विषय मे भी होगा । उन लोगो से मुझे कुछ कहना आवेगा नहीं, उसका तो पुनर्जन्म ही हो सकेगा। नहीं है । पर जिनको यह कार्यकारी जचे, जो निरतिवाद के रूप में उसका पुनर्जन्म इस कार्य के लिये सगठन करना चाहे, तन मन ही समझना चाहिये । किसी की दृष्टि मे यह वचन धन से सहयोग करना चाहे उनको सादर धार्मिक है, किसी की दृष्टि मे आर्थिक और किसी निमन्त्रण है। अति और निरति 'अति' इधर कही अति उधर कही, 'अति' ने अन्धेर मचाया है । कोई कण कण को तरस रहा, अति-उदर किसी ने खाया है । या तो नचती उच्छृखलता, अथवा मुर्दापन छाया है । _ 'अति' का यह अति अन्धेर देख, प्रभु निरतिवाद बन आया है । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इक्कीस सन्देश इक्कीस सन्देश 'सत्यसमाज की मॉगे' इस शीर्षक से जो इक्कीस सन्देश जनता के सामने रक्खे गये थे उन पर बहुत से विद्वान और समाचार पत्रोका ध्यान गया है । कुछ विद्वानो ने कुछ मतभेद भी प्रगट किये है । मै उनकी यहा अक्षरग आलोचना नही करना चाहता । फिर भी उनकी आलोचनाओ पर ध्यान देकर जो कुछ बदलने लायक मालूम हो उसे बदलना, और जिनका खुलासा करना जरूरी हो उनका खुलासा करना आवश्यक समझता हू । इसलिये यहा प्रत्येक सन्देश का सुधरा हुआ रूप और उसका माष्य किया जाता है । सत्यसमाज हरएक बात पर निरतिवाद की दृष्टि से विचार करना चाहता है । वह किसी भी दिशा मे इस प्रकार अति नही करना चाहता कि वह तत्त्व कल्याणकर होने पर भी अतिमात्रा मे होने के कारण अकल्याणकर बन जाय । अच्छी से अच्छी चीज भी अगर अधिक मात्रा मे हो जाय । अपनी मर्यादा भूल जाय तो अकल्या कर हो जाती है । जिस प्रकार अँधेरा आखो को काम कर देता है । उसी प्रकार तीव्र प्रकाश की चकाचौध भी आँखो को बेकाम कर देती है इसलिये अतिअधकार और अतिप्रकाश दोनो ही अकल्याणकर है । कल्याणकर है निरति = अति का अभाव | ३१ सत्य समाज के इक्कीस सन्देश किस आशय को लेकर है और निरतिवाद की कसौटी पर कसे जाकर वे किस रूप मे व्यावहारिक बन सकते है इसी बात का दिग्दर्शन मुझे यहां कराना है । सन्देश पहिला सब मनुष्य अपने को मनुष्य जाति का ही माने । रग, देश, व्यापार, कुलपरम्परा आदि के भेद से जातिभेद न माना जाय, अर्थात् इन कारणो से रोटी बेटी व्यवहार सीमित न रक्खा जाय । न कोई जाति के कारण ऊँच नीच छूत अछूत आदि समझा जाय । भाष्य -- जातीयता की निशानी स्वाभाविक दाम्पत्य है । जहा विनातीयता होती है वहा स्वाभाविक दाम्पत्य नही होता जैसे हाथी घोडा ऊँट आदि जानवरो मे स्वाभाविक दाम्पत्य नही है इसलिये हम हाथी घोडा आदि को एक एक जाति कह सकते है । परन्तु मनुष्यो के भीतर जो जातिभेद की कल्पना की गई वह ऐसी नहीं है उस मे ऐसा आकारभेढ या शरीरभेद नहीं है कि हम भारतीय और अग्रेज को आर्य और मगोलियन को ब्राह्मण और शूद्र को भिन्न भिन्न जाति का कह सके । इन मे परस्पर दाम्पत्य हो सकता है वापरम्परा चल सकती है इसलिये मनुष्य मात्र को एक जाति का समझना चाहिये । Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ] निरतिवाद फिर भी दाम्पत्य को अगर वैपयिक सम्बन्ध क्षेत्रादि परिस्थितिके भेद से विपम मालूम होता है ही मानलिया जाय और दाम्पत्य को सिर्फ इसीमे अन्यथा मूल मे वह एकसा-सजातीय है। सीमित कर लिया जाय तो यह मनुष्य का पशुता कुछ राजनैतिक कारणो से एशिया, खासकी ओर पतन होगा । मनुष्य के दाम्पत्य मे शारी कर भारत मे गोरी जातियो के विषय मे घृणा है रिक ही नहीं किन्तु मानसिक समन्वय की भी क्योकि उनने अन्य जातियो पर बहुत अत्याचार आवश्यकता है । इसलिये सौन्दर्य, सदाचार, खान किये है और छलबल से सताया है। नि सन्देह पान की समता, भापा आदि बातो के देखने की भी आवश्यकता है । परन्तु इन बातो को लेकर पाप घृणा की वस्तु है । और उस कारण से जातिभेद न बनाना चाहिये। अभी जाति के पापी से भी घृणा हो जाय तो क्षम्य है परन्तु नाम पर जो भेद बना लिये गये है उनमे कोई पापी की जाति को मौलिक रूप मे सदा के लिये ऐसी विशेपता नही है जो दूसरो मे न पाई जाती जुदा समझ लेना भल है । कुशासन से हम घृणा हो इसलिये अनुकूल सम्बन्ध ढूडने के लिये अमुक करेगे इसके लिये कुशासक को भी सतायेंगे पर गुणो और अपनी आवश्यकताओ का ही विचार उस जाति मात्र को बुरा समझना भूल है । पशुकरना चाहिये न कि कल्पित जाति का । दाम्पत्य वल और अधिकार आने पर मनुष्य मे अत्याचार के लिये जिन जिन गुणो को हम चाहे उनका की प्रवृत्ति होने लगती है इसके लिये हम उसे विचार करे परन्तु सब कछ मिल जाने पर भी दड दे सकते ह लेकिन समूह मात्र से घृणा नही सिर्फ कल्पित जातिभेद से न डर जॉय । आव- कर सकते । समूह मे एक दो प्रतिशत अच्छे श्यक गुणो को कसौटी बनाकर मनुष्य मात्र के आदमी भी हे सकते है उनसे घृणा नहीं कर साथ सम्बन्ध करने को हम तैयार हो । और सकते । राजनैतिक आदि परिस्थितियो के बदल दूसरा जो तैयार होता हो उसे सहारा दे उसके जाने से वे लोग मित्र बन जायगे इस मे कोई साथ सहयोग करे । सन्देह नही । इसलिये हमे गो। काले पीले आदि बहुत से लोग सैद्धान्तिक रूप में इस सर्व- के कारण किसी से घृणा न करना चाहिये न जाति-समभाव को मानते है पर किसी कारण विपमभाव रखना चाहिये । हा, अत्याचार के से उन्हे अगक जाति स घणा होती है। जैसे विरुद्ध लडना चाहिये इसलिये हम अत्याचारी अमेरिका में अमेरिकन लोग सबसे समभाव रक्खेगे से लड सकते है, पर उसको अत्याचारी समझ परन्तु उसी देश मे बसनेवाले हब्शी लोगो से कर न कि विजातीय समझकर । अत्याचार का बदला न करगे इसका कारण यह दुरभिमान है कि एक चुक जाने पर या अत्याचार दूर हो जाने पर हम दिन ये हळगी हमारे गुलाम ये और आज बराबरी प्रेम भी करेगे । का दावा करते है । वास्तव मे उनमे कोई विप- खाने पीने मे हमे भोजन की शुद्धता, मता नहीं है । एक दिन जो हब्शी पशु सरीखे स्वास्थ्यकरता स्वादिष्टता स्वच्छता आदि का ही ये वे ही आज सभ्यता शिक्षा आदि मे अमेरिकनो विचार करना चाहिये न कि जाति का । विवाह के बराबर है इसीसे मालूम होता है कि मनुष्य सम्बन्ध मे अनुकूल शरीर मन आदि का विचार Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश दूसरा [ ३३ करना चाहिये न कि जाति का, छूताछूत के सकते । प्रतीक बदल सकता है । मूर्ति न होगी विचार मे सक्रामक रोगो या गदकी से बचने नेता की कब होगी राष्ट्रीय झडा होगा । सच्चे का ही विचार करना चाहिये न कि जाति का, समाज सेवको का आदर जनता के दिल से कैसे यह त्रिसत्री सर्व-जाति-समभाव की सूचक है। निकल जायगा ! अगर निकल जाय तो इससे लाभ इस मे निरतिवाद की भी रक्षा हुई है । जाति के क्या ? समाज सेवको को जीवन भर और कुछ नाम पर जो कल्पनाएँ है वे एक अति है और आराम तो मिलता नहीं है मरने के बाद-और थोडा जाति तोडने के नाम पर शुद्धि, स्वच्छता अनुकू- बहुत जीवन मे भी-लोग उन्हे याद करेगे यही एक लता आदि का विचार न करना दूसरी अति आगा का तन्तु उनको कठिनाइयो मे टिकाये है । निरति मध्य मे है । रहता है । यह नष्ट हो जाय तो उनको सहारा सन्देश दूसरा क्या रहे और जनता मे भी कर्तव्य की प्रेरणा कैसे सभी मनुष्य सर्व धर्म समभावी हो किसी हो । सो धर्म के जो आदर भाक्त आदि अग है धर्म सस्था मे विशेप रुचि रखना व्यक्ति की इच्छा वे नष्ट नही हो सकते न होना चाहिये । धर्मों पर निर्भर रहे पर उस सम्प्रदाय मे किसी का के नेता या सस्थापक अपने समय के सामाजिक ऐसा अन्धानुराग न रहे कि दूसरे सम्प्रदाय का क्रान्तिकारी है । धर्म भी एक सामाजिक वस्तु है। आढर नष्ट करदे । उन समाज-सेवको का हमे आदर करना चाहिये। __ भाष्य--इस विषय मे भी अतिवाद फैला और जब साधारण जनता आदर रखती है तब हुआ है । एक दल वर्मोकी अन्धनिन्दा करता ऐसे शुभ कार्य मे उसके साथ सहयोग करके हम है और सब अनों की जड इन्हे ही समझता जनता के निकट मे क्यो न पहुँचे ? हा, उन है । दूसरा दल अपने किसी वम से इस प्रकार धर्म-प्रवर्तको को आप अलौकिक व्यक्ति या ईश्वर चिपटा हुआ है कि अपने धर्म मे आय हुए न मानिये । लोक सेवक महात्माओ के रूपमे ही विकार भी वह नहीं देखना चाहता और उन उनका आदर कीजिये । उनके विषय मे विकारो को भी धर्म समझता है और अन्य वर्मो जो अन्वश्रद्धा-पूर्ण कथार और अतिशयोक्तियाँ को दभ, नरक का रास्ता मानता है। दूसरो को प्रचलित है उनको न मानिये बल्कि उनका विरोध नास्तिक काफिर मिथ्यात्वी आदि कहकर तिर- कीजिये । ईश्वर की सत्ता भी आप मानना चाहे स्कार करता है । निरतिवाद इन दोनो अतिवादो माने न मानना चाहे न माने, पर यह अवश्य को पसद नहीं करता। . मानिये कि मानव जीवन के लिये नीति-सदाचार धर्म-विरोधियो से वह कहना चाहता है कि की आवश्यकता है और इसका प्रचार करनेवाले धर्म का नाश नही हो सकता वह किसी न किसी जन सेवक आदरणीय है। बस, धर्म का मानना रूप मे जीवित रहेगा उसका नाम भले ही बदल हो गया। धर्म के नाम पर चलनेवाले ढकोसलो जाय । उसका प्राण नैतिकता और सदाचार है का आप खूब विरोध कीजिये। वह नष्ट नहीं हो सकता न होना चाहिये । भक्ति अन्ध-श्रद्धा और धर्ममद को लेकर जो अतिआदि जो उसके बाह्य अग है वे भी नष्ट नहीं हो वादी बने हुए है उनसे कहना है कि जैसे आपका Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ] निरतिवाद धर्म जगत् की शान्ति के लिये आया था उसी धर्म के विषय में निरतिवाद न तो किसी प्रकार दूसरे वर्म भी आये थे । सदाचार के नियम धर्म मे अन्धश्रद्धालु होने को कहता है न अन्वसभी धर्मो मे पाये जाते है । जो अन्तर है वह निन्दक, वह विवेकपूर्ण समभावी होने की प्रेरणा देशकाल का है सो होना चाहिये । ऐसी हालत करता है | धर्म-सस्थापक महापुरुपो को न तो मे आप अमुक धर्मवाली समाज मे पैदा हुए इसलिये वह ईश्वर मानता है न वश्चक । उन्हें लोक-सेवक वह धर्म सर्वोत्तम है इसमे सचाई क्या हुई ? आप हिन्द्र पूर्वजो के समान आदरणीय-वन्दनीय समझता है मे पैदा हुए सो हिन्दू धर्म अच्छा और मुसलमान मे और एक दुसरो के पूर्वजो का आदर करके पैदा हुए इसलिये मुसलमान धर्म अच्छा या जैन परस्पर मे प्रेम बढाने का सन्देश देता है । मे पैदा हुए सो जैन धर्म अच्छा इसमे नि पक्षता संदेश तीसरा विचारकता और तर्क नहीं है इसलिये इसका कुछ सम्प्रदाय या जाति के नामपर किसी को मूल्य नही । यहा धर्म की ओट मे अभिमान की किसी भी प्रकार के विशेषाधिकार न रहे । न पूजा है जो कि पाप-मूल है । सस्कारो के कारण पृथक् निर्वाचन रहे । अगर किसी धर्म विशेष से आपको आत्मीयता भाष्य-सम्प्रदायो को और जातियो को जो हो गई है तो धर्म के साथ घनिष्टता रखिये पर विशंपाविकार मिलते है उससे ईर्ष्या फूट अविश्वास इसीलिये दसरे धर्मों की निन्दा न कीनिये और आदि बटने के सिवाय और कुछ लाभ नहीं । न अपने ही धर्म को स्वर्ग मोक्ष पहुंचाने का ठेका राष्टीय उदारता नष्ट होजाती है । और इन दीजिये । परीक्षा करते समय भी लोकहित को दलबन्दियो मे राष्ट्रका हित गौण होजाता है। धर्म की कसौटी वनाइये अपने धर्म के अमुक वेप हिन्द मुसलमानो के प्रश्न को लेलीजिये । एक के या रीतिरिवाजो को धर्म की कसौटी बनाकर दूसरे प्रतिनिधि को दूसरे की कोई पर्वाह नहीं' धर्मों की परीक्षा न कीजिये सभी धर्म अपने रूप इसलिये दोनो को राष्ट्र की चिन्ता न होकर अपनी को धर्म की कसौटी बनाकर दूसरो की परीक्षा अपनी कौम की पर्वाह होती है । आपस मे ही करे तो सभी परस्पर मिथ्या साबित होगे फिर आत्मरक्षा की चिन्ता मे सब परेशान है, विवायक आपका धर्म भी मिथ्या होगा । लोकहित की दृष्टि कार्य या स्वतन्त्रता का कार्य कोई नहीं कर पाता से विचार करने पर और जिस देशकाल मे वह या बहुत कम कर पाता है । जातीय दगे होते है धर्म पैदा हुआ था उसदेश काल को नजर मे तो उनका उपाय करने की अपेक्षा अपनी अपनी रखने पर सभी धर्म सन्तोपजनक मालूम होगे। कौम को निर्दोप साबित करने की वकालत हा, जो बाते अकल्याणकर हो उन्हे कदापि न मे सब शक्ति खर्च हो जाती है । खैर, काग्रेस मरीखी मानिये पर दूसरो की ही नहीं, अपनी भी अकल्या- एक अप्ताम्प्रदायिक सस्था के होने से फिर भी णकर बाते न मानिये बल्कि जब दोप देखने की गनीमत है । अगर हिन्दू सभा और मुसलिमलीग के इच्छा हो तो पहिले अपनी वर्मसस्था के देखिये ही प्रतिनिधि धारासभाओ मे रहे तो वारासभाओं पीछे दूसरो की धर्म सस्था के । आत्मनिंदा बुरी के टग ऑफ वार मे राष्ट्र की वजिया उटजॉय । नही है पर परनिन्दा बुरी है । अगर हिन्दू मुसलमानो के अलग अलग प्रति Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ संदेश तीसरा निधि न हो तो हरएक प्रतिनिधि को हरएक कौम तीसरा मार्ग-पृथक् प्रतिनिधित्व कर देने के मनुष्य का खयाल रखना पड़े और साम्प्र- पर भी अगर सम्मिलित निर्वाचन से सन्तोप न दायिक कटुता न हो। होता हो और अविश्वासादि कारणो से कुछ समय परन्तु प्रारम्भ मे जब तक ठीक तौर पर तक पृथक् निर्वाचन भी चालू करना हो तो विश्वास पैदा नही हुआ है तबतक निरतिवाद की आशिक पृथक निर्वाचन की नीति काम मे लेना नीति के अनुसार कुछ समझौते का मार्ग निकाला चाहिये । बहुसख्यक समाज नियत प्रतिनिवित्व जा सकता है । इसके दो मार्ग है-- न मागे तो अच्छा है परन्तु अगर मागे ही तो वह पहिला मार्ग-तो यह है कि न तो पृथक् भी दिया जा सकता है। प्रतिनिधित्व रहे न पृथक् निर्वाचन रहे किन्तु इसमें निम्न लिखित नियम रहेगे। प्रतिनिधियो की सख्या नियत रहे । अल्पसत्यक १-अपने अनुपात से अधिक किसी को. कोमो के प्रतिनिधि उनकी जन सख्या के अनु- प्रतिनिवित्व न रहेगा । सार नियत हो । पर चुनाव सामान्य ही हो । हा। २-वह अनुपात सौ मे अस्सी प्रतिनिधियो चनाव होने के बाद अगर यह मालूम हो कि के साथ लगाया जायगा । बाकी बीस प्रतिनिवि अमुक काम के नियत प्रतिनिधि चुनाव में नहीं सामान्य निर्वाचन के लिये रहेगे। आ सके कुछ प्रतिनिधि कम रह गये है तो जितने प्रतिनिधि कम रह गये हो उसी कौम के ३-दस दस वर्ष के बाद सामान्य निर्वाउतन प्रतिनिधि धारासभा अपने बहुमत से चुन चन के प्रतिनिधियो की सख्या दस प्रतिशत ले। जैसे कही मुसलमानो के तीस प्रतिनिधि बटती जायगी । और जातीय निर्वाचन की घटती नियत है और चुनाव मे पच्चीस ही आये तो पाच जायगी। प्रतिनिवि वारासभा फिर चुन लेगी । इस प्रकार ४ - सामान्य निर्वाचन का क्षेत्र ७० प्रतिशत तीस की संख्या पूरी हो जायगी। होने पर पूर्ण सामान्य निर्वाचन कर दिया जायगा। दुसरा मार्ग-यह है कि पृथक् प्रतिनिवित्र इस प्रकार पचास वर्ष मे पूर्ण राष्ट्रीयता प्रचलित तो रहे परन्तु पृथक् निर्वाचन न हो। इस विषय हो जायगी । मे निम्न लिखित नियमो का पालन होना चाहिये। इन नियमा को एक उदाहरण देकर स्पष्ट १-बहुसख्यक समाज के लिये प्रतिनिधि करना जरूरी है | मानलो किसी प्रान्त की धारानियत न किये जाय । सभा मे सौ बैठके है। ५० मुसलमानो की २-अल्प संख्यक समाजके लिये भी उस ३० हिन्दुओ की १५ सिक्खो की ५ वाकी की सख्या के अनुपात से अविक प्रतिनिधि कौमो की । इन सौ वैठको मे से २० बैठके नियत न किये जाय । सामान्य निर्वाचन के लिये रहगी । इन बैठको के ३-पृथक् प्रतिनिधित्व उन्ही को दिया जाय लिये हरएक कौम का आदमी खडा रह सकेगा। जिनके दायभाग आदि के कानून जुदे हो और और हरएक कोमका आदमी वोट दे सकेगा। जाति की दृष्टि से अपने को जुदा मानते हो। वाकी ८० बैठके इस तरह बट जाय। 1 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम ३६ ] निरतिवाद जन सख्या बैठके अर्थ हिन्दू का वर्म -स्थान समझते है जब कि मुसलमान बात यह नहीं है । मदिर शब्द का अर्थ भवन हिन्दू ३० या घर है। यह बात अवश्य है कि रूढि मे सिक्ख प्रतिष्ठित घर को ही मन्दिर कहते है जैसे राजफुटकर मदिर-राजा का घर, शिक्षामदिर-पाठशाला । सावारण बैठके देवो के घर को देवमदिर कहते है पर देव मदिरो की बहुलता होने से अकेला मदिर शब्द १०० देव-मदिर के लिये रूढ हो गया । जब किसी पहिला मार्ग उत्तम है दूसरा मध्यम है तीसरा शब्द के साथ मिल कर मदिर शब्द आता है जघन्य है। अगर जघन्य मार्ग भी न अपनाया जाय तव उसका अर्थ व्यापक--घर-हो जाता है । फिर तब इसे भयकर दुर्भाग्य ही समझना चाहिये। भी यह शब्द भ्रम से भी सम्प्रदाय की सूचना न दे इसलिये इस शब्द के बदले मे यहा धर्मा___ व्यवस्था कोई भी अपनाई जाय बहुसख्यक लय शब्द रक्खा गया है। तो बहुसख्यक रहेगे ही, पृथक् निर्वाचन से अल्पसख्यक न बन जॉयेंगे । अल्प-सख्यकता से पैदा सत्यसमाज के मदिर की जो योजना है होने वाले भय का उपाय पृथक् निर्वाचन नही जिस मे सभी धर्मों के स्मारक रखने का विवान है उसका नाम भी सत्य-मदिर की जगह धर्माहै किन्तु विश्वास प्रेम और राष्ट्रीयता को महत्त्व __ लय कर दिया जाता है । क्योकि हिन्दू, मुसलदेना है । यह बात मुसलमान और हिन्दू दोनो मान, जैन, ईसाई आदि सभी को उस मे एकसा को समझ लेना चाहिये । स्थान है। संदेश चौथा इस विषय मे निम्न लिखित प्रश्न प्रदर्शित प्रत्येक नगर और गाव मे एक एक धर्मालय हो किये गये है जिन का खुलासा करना जरूरी है | जिस मे उस देश मे प्रचलित मुख्य मुख्य धर्म १-मूर्तिविरोव २-एक धर्म पूजना ही बुरा हे देवा-महापुरुपो की मूत्तियाँ हो । धर्मालय मे आने फिर सब वर्म पूजन से और भी बरा होगा । मे जातिपॉति का बवन न हो। सभी धर्म वाले ३ -वहा दिन भर क्या होता रहेगा। वहा प्रार्थना करे । वहा पशुबलि न हो । सम- १-मत्र्ति पजा के विषय मे मैने स्वतन्त्र भावी व्याख्यान या अन्य कार्य हो । लेख मे ही विस्तार से लिखा है । यहा सक्षेप मे भाष्य--इसे नगर-मन्दिर या ग्राम--मन्दिर यही कहना है कि जब तक मनुष्य के पास हृदय भी कह सकते है परन्तु धर्मालय शब्द सर्वोत्तम है तबतक अपनी भावनाओ को जाग्रत रखने के है । पहिले मैने इसे ग्राम-मन्दिर कहा था पर लिये स्मारक रखना अनिवार्य है । फिर चाहे वह एक सज्जन ने यह पसद नही किया । मुसलमान पुतला, ध्वजा, त्रिशूल, नख, केग, हड्डी, स्तभ, समाज को इस शब्द से विरोध है इसका कारण चरखा, लिखे हुए अक्षर, पुस्तक, कबर या समूचा एक भ्रम है। मुसलमान भाई मदिर शब्द का मकान हो। अगर उसके सम्पर्क से हमारे हृदय Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश पाँचवाँ मे कोई भावना व्यक्त होती है तो वह मूर्ति ही है। स्मारक ही रखना है तब उनमे मूर्तियॉ सर्वोत्तम है | उसकी पूजा किसी जड पिंड की पूजा नही है २-एक धर्म पूजने मे भी कोई विशेष बुराई न उसमे जड पिंड का गुणानुवाद किया जाता नही है अगर कदाचित मानली जाय तो भी सव है वह तो किसी आदर्श की पूजा है । हो सकता धर्म पूजने मे बुराई नही हो सकती । एक धर्म है कि किसी महात्मा को उस सहारे की आवश्य- पूजने मे मनुष्य का हृदय सकुचित अन्धश्रद्धालु कता न हो तो वह उसपर उपेक्षा करेगा परन्तु जन- अहकारी हो सकता है जब कि सब धर्म पूजने मे साधारणके लिये तो अवश्य चाहिये । मूर्ति न रखने ये दोप निकल जाते है । विविधता मे जब समता से एक तरह की मूर्ति विरोधी कट्टरता पैदा होती देखने की उदारता आजाती है तव विवेक आही है । मूर्ति-पूजक तो मूर्तिशून्य स्थान मे भी जा जाता है । हा, सब धर्म की सभी बाते मानने सकता है मूर्ति का विरोधी मूर्ति के सामने जाने की जरूरत नहीं है, विवेकपूर्वक सभी मे से मे भी अपमान समझता है । समभाव के लिये अच्छी अच्छी बातो का चुनाव करलेना जरूरी है। यह कट्टरता घातक है। ३--धर्मालय मे सुबह शाम प्रार्थनाएँ होगी । ___ अगर हम धर्मालय मे सभी धर्मों का कोई समय समय पर समभावी व्याख्यान होगे । पुस्तन कोई स्मारक न रक्खेगे तो सर्व-धर्म-समभाव कालय वगैरह की योजना भी की जा सकती है। पटाने के लिये और सभी धर्मो के वर्मस्थान के और भी सामूहिक कल्याण के कामो मे धर्मालय विषय मे आदर पैदा करने के लिये हमारे पास का उपयोग किया जा सकता है। कोई अवलम्बन न रह जायगा । हमारे मनमे ___अभी योजना कठिन मालूम होती है पर मन्दिर आदि स्थानो से घृणा ही रहेगी । यह दो चार जगह प्रारम्भ हुआ कि यह बात सावारण घृणा जाना चाहिय । अगर मृत्ति का हम अक्सास हो जायगी । सत्यसमाज ऐने वालयो के नमूने न होगा तो हम हिन्दू मन्दिर, जैन मदिर, बोद्ध , होगा तो हम हिन्दू मान्द, जन मादर, वाई बनाना हो चाहता है। मन्दिर, गिरजाघर (रोमन के यालिक) मे आदर के साथ कैसे जॉयगे । हमारे हृदय मे इनके लिये संदेश पाँचवॉ जगह न रहेगी यह वासना द्रुप और घृणा के प्रत्येक नगर और गाव में एक रक्षक दल वीज का काम करेगी। हो जिसमे सभी सम्प्रदाय और जाति के लोग एक बात और है। अगर वर्मालय मे किसी शामिल हो । जातीय और साप्रदायिक प्रतिनिधित्व धर्म का कोई स्मारक न हो तो वह योडे रखने वाले लोग उसमे शामिल न हो। इस दल से सुधारको की चीज रह जायगी । न तो उस के काम निम्नलिखित हो । स्थान के विषय मे साधारण जनता के दिल मे [क] कोई पुरुष किसी नारी को न छेड पवित्रता का भाव होगा न किसी को उसमे सके । नारी कहीं गय तो वह अनुभव कर सके आत्मीयता पैदा होगी । वह एक साधारण टाउन- कि वहा मेरे शील और इज्जत की रक्षा होगी। हॉल बनकर रह जायगा । सर्व-धर्म-समभाव के हरएक वर्म और हरएक जाति का मनुष्य उसका लिये उसमे स्मारक रग्वना आवश्यक है और जब रक्षक है । Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] अत्या [ ख ] सामूहिक झगडो को रोकना चार पीडितो को सहायता पहुचाना । [ग] भले आदमियो को सतानेवाले गुडो का दमन करना । निरतिवाद [घ] आग लगने जल--प्रलय होने या और किसी तरह की आपत्ति आने पर सहायता करना । [ ङ ] नगर को साफ स्वच्छ रखने मे सहायता करना । भाष्य- यहा कुछ सशोधन खडे हुए है१ - क्या गुडो का गुडापन हटाने के लिये उद्योग न करना चाहिये ? २ - गुडो के पीछे रह कर गुडो को पोसने और उनकी योजना करनेवालो के खिलाफ क्या कुछ न करना चाहिये । ३ - क्या नारी को अपने शील की रक्षा के लिये ऐसे रक्षक दल पर ही अवलम्बित रहना होगा ? ४- भले आदमी अर्थात् पूँजीपति, गुडा अर्थात् गरीब, उसका दमन ठीक नही । ५--क्या रक्षक दल को सगस्त्र तालीम न दी जायगी ६ - दल को अहिंसक ही रहना चाहिये । ७ - जबतक यह साबित न हो कि एक स्त्री अपनी इच्छा से व्यभिचारिणी है उसे वह अत्याचारित ही समझेगातो स्त्री की आत्मरक्षा करने की शक्ति बढ़ सकती है । · सूचनाएँ सुन्दर है । यहा मूल सन्देश मे मैने इन बातो पर प्रकाश नही डाला इसका कारण सिर्फ यही था कि मुझे नगर रक्षक दल के सिर्फ कार्य बताने थे । उन कार्यो को करने की परिस्थिति पैदा न हो या क्यों पैदा होती है आदि बातो पर विचार तो अन्यत्र विस्तार से किया गया है कई बातो पर स्वतन्त्र लेख तक लिख है । फिर भी इन सब बातो का यहा कुछ स्पष्टीकरण करना उचित है । 1 १ - गुडापन हटाने के लिये अधिक से अधिक कोशिश करना चाहिये । उन्हे दु. सगति से बचाना चाहिये सदाचार की शिक्षा देनी चाहिये । उनकी सामाजिक कठिनाइयो को दूर करने का उपाय खोजना चाहिये । पर जबतक ये उपाय नही हुए तबतक रक्षकदल की आवश्यकता है । और परिस्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि बहुत समय तक यह आवश्यकता रहेगी । जब सारा ग्राम ही रक्षकदल बन जायगा तब रक्षक दल की अलग जरूरत न पडेगी । (२) गुडो के पीछे रहनेवाले सभ्य गुडो को भी गुडा समझना चाहिये और उनको ठिकाने लाने के लिये भी कोशिश होना चाहिये । ३ - रक्षक दल होने का यह मतलब नहीं है कि नारी उसी पर अवलम्बित रहे । नारी मे वीरता शक्ति और निर्भयता आना चाहिये उसके लिये भी कोशिश करना चाहिये । वह आततायी के प्राण ले सके और न ले सके तो अपने प्राण दे सके पर अत्याचार को सफल न होने दे, इतनी दृढता प्रत्येक नारी मे होना चाहिये । पर नारी को प्राण देने का अवसर न आवे इसके लिये रक्षक दल का उपयोग है । निसन्देह पर - रक्षितत्व से परतन्त्रता आती हैं पर इस प्राणि जगत् मे थोडी न थोडी पररक्षितता और परतन्त्रता अनिवार्य बन गई है । हर आदमी को अपनी रक्षा करने में समर्थ होना Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश पाँचवॉ चाहिये पर उसकी इस समर्थता की सीमा बहुत शस्त्रोके उपयोग से समस्या और दूर नहीं है । उसे पुलिस की आवश्यकता पडती जटिल हो जायगी । पशु वल या शस्त्रो का उपहै और सरकार सरीखी सस्था का बोझ भी उसने योग नारी रक्षण आदि नैतिक कार्यों में ही उठाया है । व्यक्ति को जितनी सम्भव है उतनी करना चाहिये ।। शक्ति आत्मरक्षण के लिये पैदा कर लेना चाहिये ६-साधारणतः दल को अहिंसक रहना चाहिये। पर बाद मे पररक्षितत्व आ ही जाता है । खास कर घर के जातीय झगडो मे । पर गुडापन नारी के विषय मे यह बात कुछ अधिक मात्रा मे रोकने के लिये हिंसा का भी उपयोग किया जा है। उसकी अग रचना ऐसी है कि उस पर नर सकता है । का आक्रमण हो सकता है । पशुओ मे भी जहा ७-नारी के विषय मे जो पक्षपात-पूर्ण नर और मादा किसी भी मनुष्य समाज की मनोवत्ति समाज मे घुस गई है वह अवश्य जाना अपेक्षा अधिक स्वतत्र है, नर आक्रमणकारी देखा चाहिये । इसके विपय मे मै विस्तार से अनेक जाता है, फिर मानव समाज मे तो यह बात कुछ वार लिख चुका है। अविक ही होगी । मानव समाज मे नर नारी नारी को सताया जाय और वही भ्रष्ट का कार्यक्षेत्र कुछ ऐसा विभक्त है-और शान्ति समझी जाय इससे बढकर अधेर और क्या होगा। और सुव्यवस्था की दृष्टि से वह बुरा नही है- उसके विषय में हमारी सहानुभति बढना चाहिये कि नारी को कुछ और कमजोर हो जाना पड़ा और साथ ही अपनी असावधानता पर हमे लजित है । किन्तु नारी को अधिक से अधिक बल- होना चाहिये और आक्रमणकारी को दड देना शालिनी तो होना ही चाहिये, जराजरासी बात मे चाहिये । पर होता है इससे उल्टा यह अन्धेर वह पुरुप का सहारा चाहे यह कमजोरी भी जाना चाहिये। जाना चाहिये । फिर भी कुछ न कुछ सरक्षण की रक्षक दल की रूप रेखा और कार्य-क्षेत्र के आवश्यकता तो है ही उसके लिये यह दल विषय मे थोडा बहुत परिवर्तन हो सकता है पर आवश्यक है। हर जगह ऐसे रक्षक दल की आवश्यकता है । ४-दुर्भाग्य से मेले आढमी का रूढ अर्थ स्त्री को न तो पगु बनाना चाहिये न बिलकुल पूंजीपति भी प्रचलित है पर यहा इस अर्थ मे अरक्षित छोडना चाहिये। यह निरतिवाद है। यह शब्द नही है। भले आदमी का अर्थ है सन्देश छट्ठा सज्जन पुरुप, चाहे वह गरीब हो या अमीर । वेढ कुरान पुरान मूत्र पिटक बाइबिल आवस्ता श्रीमान् भी सज्जन होते है और गरीब भी। । अथ साहब आदि किसी भी शास्त्र की दुहाई दूसरों , श्रीमान् भी गुडे होते है और गरीब भी। के अधिकार या सविधाओ मे बाधा डालनेवाली ५-रक्षक दलको सशस्त्र तालीम अवश्य या किमी नो विशेषाधिकार दिलानेवाली न समझा देना चाहिये। यह राष्ट्ररक्षा की दृष्टि से भी उप- जाय । कर्तव्य-अकर्तव्य का निर्णय युक्ति और योगी है । पर शसो का उपयोग सम्हल कर ही अनुभव के आधार पर लोकहित की कसौटी पर करना चाहिये । जहा जातीय दंगे हो वहा कसकर किया जाय। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] निरतिवाद भाष्य-इन धर्मग्रथो ने एक जमाने मे लोगो संदेश सातवाँ की बहुत भलाई की है और इनके भीतर ऐसे नारी, नारी होने के कारण ही किसी अविनैतिक उपदेश भरे है जो आज भी हितकारी कार से वञ्चित न रक्खी जाय । शारीरिक भेट है । पर उनमे ऐसी वाते भी है जो उसी समय के कारण कार्यक्षेत्र का भेढ व्यवहार मे रहे कानून के लिये उपयोगी थीं । आज अगर उनका उप मे नही । दायभाग मे नारी का अधिकार योग किया जाय तो दूसरो के अधिकारो मे बाधा वढाया जाय । विधवाविवाह विधुरविवाह के आ सकती है। देशकाल को देखकर विवि समान समझा जाय । बहुपत्नीत्व की प्रथा कानून विधान बनाना चाहिये । आजके युग मे । से वन्द कर दी जाय । आज की परिस्थिति देखकर विवान बनाना भाष्य-नर-नारी-सम्बन्ध एक ऐसी विकट चाहिये । सैकडो हजारो वर्ष पुराने विवानो मे से तो कुछ चुने हुए विधान ही काम मे लाना चाहिये । समस्या है जो कानून के बल से सुलझ नही सकती । खासकर घर क भीतर तो यह और भी ___ अपने अपने धर्मग्रथोपर जोर दिया जाय जटिल है । फिर भी इसकी रूप रेखा पर कुछ और अक्षरशः पालन किया जाय तो सत्यासत्य अंकुश लगाये जा सकते है । खासकर सामाजिक का निर्णय हो ही न सके क्योकि वस्तुस्थिति जीवन मे तो इसको बहुत स्पष्ट किया जा सकता को कोई न देखे अपनी अपनी बात है । निम्नलिखित बातो पर ध्यान रखने की आवपकड कर सब रह जॉय । हमे यह याद रखना श्यकता है। चाहिये कि धर्म शास्त्र अपने नैतिक विकास के लिये हैं दूसरो के ऊपर अपना बोझ लादने के १-धारासभाएँ म्युनिसपल आदि सस्थाओ मे, लिये नहीं। शिक्षा विभाग तथा अन्य प्रवन्ध विभाग मे भी नारी मे भेदभाव न रक्खा जाय । अध्यक्ष पद इस सन्देश पर भी कुछ सूचनाएँ आई हैएक सूचना यह है कि इन ग्रथो की पुन वगैरह भी स्त्रियों को दिये जॉय । हा, योग्यता का र्रचना की जाय । इस बात पर मेरा ध्यान बहुत विचार तो सर्वत्र आवश्यक है । दिन से है। बल्कि सत्यसमाज के पहिल मैने २-आर्थिक अधिकार 'नारीका अविकार' यही काम शुरू किया था। बल्कि इन धर्मग्रथो इस शीर्पक के वर्णन के अनुसार रक्खा जाय । के सार लिखे जाना चाहिये और इन पर समयो- ३-विववाविवाह का अविकार पूरा हो और पयोगी समभावी टिप्पणियाँ भी लिखी जानी इससे उसके स्त्रीवनमे वाधा न आव। . चाहिये । टिप्पणियाँ ऐसी हो जिससे लोगो की ४ तलाक के रिवाज को उत्तेजन न दिया शास्त्रान्धता नष्ट हो जाय और विवेक या विचार जाय परन्तु कुछ ऐसी परिस्थितियो का निर्देश किया शक्ति जाग्रत हो। जाय जब नारी तलाक दे सके । नारीको तलाक शास्त्रो के विषय मे न तो अन्धश्रद्धा रक्खी देने की सुविधा जितनी मिले पुरुष को उसमे जाय न उनका सर्वथा बहिष्कार किया जाय। कुछ कम मिले अथवा यह नियम और जोड दिया यह निरतिवाद है। जाय कि परित्यक्त नारी जब तक अपना दूसरा Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश आठवाँ विवाह न करले तब तक उसके भरण पोषण का भार उसी पुरुष पर रहे जिसने तलाक दिया है । पर इसका निर्णय न्यायालय करे । ५- बहुपत्नीत्व की प्रथा जाना चाहिये । अगर किसी कारण से अपवाद रूप मे रहे तो उसके साथ अपवाद रूप में बहुपतित्व की प्रथा भी रहे अथवा नियोग का सुभीता मिले । जैसे कोई पुरुष सन्तान के लिये दूसरी गाढी करना चाहता है तो करे, परन्तु उसकी पत्नी को सन्तान के लिये नियोग करने का सुभीता हो। अच्छी बात यही है कि न बहुपतित्व रहे न बहुपत्नीत्व । ६-शिष्टाचार मे नरनारी का समान दर्जा हो । योग्यताभेद से जो शिष्टाचार के रूपमे परिवर्तन होता है वह बात दूसरी है । astast बातो मे यो कानून या लोकनीति कुछ अकुश लगा सकते है पर घरू बातो मे परस्पर का त्याग और प्रेम ही बडा कानून है । इसके बिना कोई भी कानून नर नारी की समस्या को नहीं सुलझा सकता | हा, वातावरण ऐसा अवश्य होना चाहिये कि जो पुरुष को उद्दड बनाने से रोके । नारीको मार बैठना, अमर्याद गालियाँ बकने लगना, सब के सामने तीव्र अपमान कर बैठना आदि वाते' अत्यन्त निंद्य समझी जाना चाहिये । इन वातो पर भी कानून नियन्त्रण नहीं कर सकता पर लोकनीति नियन्त्रण कर सकती है । पुरुष पशुवल मे अधिक है इसलिये उसके अधिकार अधिक हों और नारी निर्बल है इसलिये उसके अधिकार कम हो यह दृष्टि जाना चाहिये । [ ४१ जरूरत होने पर नारी को बाहर के काम भी करना चाहिये और पुरुष को भीतर के । नर नारी समता रहे और विषमता का समन्वय रहे यही निरतिवाद की दृष्टि है । सन्देश आठवॉ इन सब समताओ के होने पर भी नारीका कार्यक्षेत्र घर के भीतर है और पुरुष का बाहर हिन्दू, मुसलमान, जैन, ईसाई, पारसी आदि के दायभाग के नियम जुदे जुदे न रहे । इस विपय मे नर नारी के अधिकारो की समानता जितनी अधिक सम्भव और व्यवहारोचित है उसी के अनुसार कानून बनाया जाय जो सभी सम्प्रदाय और जातियो के व्यक्तियो पर एकसा लागू हो । इसकी रूपरेखा शास्त्रो के आधार से नही किन्तु लोकहित ओर गक्यसमानाधिकार के आधार से बनना चाहिये । भाष्य- फौजदारी कानून सबको एक सरखि हैं दीवानी कानून सबको एक सरीखे है फिर जुढे जुदे शास्त्रो मे दायभाग के कानून जुढे जुढे दायभाग का कानून सब को जुदा जुढा क्यों हो ? मिलते हैं उसका कारण यह है कि वे एक ही समय और एक ही जगह के बने हुए नहीं हैं । शास्त्रो ने उस समय के कानून मे फेरफार करके सुधार अवश्य किया और उससे जन-समाज को लाभ पहुँचाया पर आज जब कि सब एक जगह आ गये है तब उन सबसे अच्छा दायभाग कानून वयो न बनाया जाय ? एक हिन्दू स्त्री सिर्फ इसी - लिये मनुष्योचित अधिकारों से वञ्चित रहे कि वह हिन्दू कुटुम्ब मे पैदा हुई इस प्रकार का अन्याय कदापि न रहना चाहिये । उत्तराधिकारित्व का प्रश्न किसी एक सम्प्रदाय का या जातिका प्रश्न नहीं है वह मनुष्यमात्र का प्रश्न है इसलिये मनुष्योचित दृष्टि से ही उसका विचार करना चाहिये । इसमें किसी की Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ] हा क्या है । इससे उत्तराधिकारित्व की जटि 1 लताएँ कम हो जायगीं । और बहुत से लोग जाति सम्प्रदाय रीति रिवाज आदि के विषय मे न्यायालय मे कुछ का कुछ साबित करते है वह सब झगडा दूर हो जायगा । सम्प्रदाय और जातियो को जो अनुचित महत्त्व प्राप्त है वह भी नष्ट हो जायगा । हरएक सम्प्रदाय के दायभाग मे जो त्रुटियों, या व्यक्ति के प्रति अथवा नारी के प्रति अन्याय है, वह , नष्ट हो जायगा । निरतिवाद कोई कह सकता है कि हमको अपनी सम्पत्ति किसी खास तरह इसी तरह बाटना है । कानून बाटने के लिये जोर क्यो दे पर इस के लिये कोई मनुष्य सम्पत्ति का 'बिल' अपनी इच्छा के अनुसार बना सकता है । वर्तमान सुभीता है। उत्तराधिकारित्व तो किसी एक कानून से ही दिया जाता है, चाहे हिन्दू कानून हो या मुसलिम कानून । जब कानून का सहारा अनिवार्य है तब इस विषय मे एक सब से अच्छा कानून क्यो न बनाया जाय । हमारे कानून मे तो ये सुभीते है और अमुक के कानून मे ं तो ये सुभीते नही है इस प्रकार की शकाऍ भी निर्मूल हैं क्योकि जो नया कानून बनेगा उसमे आज के सभी कानूनो की अच्छाइयॉ शामिल की जॉयगी । वह किसी एक धर्मशास्त्र के आधार पर न बनेगा बल्कि सभी धर्मो मे से अच्छी अच्छी बाते चुनी जॉयगी । साथ ही लोकहित का विचार किया जायगा । आज जो किसी को अत्यधिक सुविधाएँ हैं किसी को अत्यधिक असुविधाएँ, इन दोनो को हटाकर सबको समान सुविवाऍ मिले ऐसा प्रयत्न होना चाहिये । सन्देश नववा ' प्रत्येक विवाह सरकार मे रजिष्टर्ड हो । हा, उसके पहिले या पीछे विवाह की विधि इच्छानुसार की जा सकती है। कानून की वेब धाराऍ उठा देना चाहिये जो एक जाति का दूसरी जाति मे ( अनुलोम या प्रतिलोम ) एक सम्प्रदाय का दूसरे सम्प्रदाय मे वैवाहिक संबध होने मे बाबा डालती है । किसी भी तरह का विवाह हुआ हो सब मे गोद लेने का अधिकार रहे । विधवा को भी रहे । । भाष्य - - इस विषय मे कई 'सूचनाऍ आई है १ - - रजिष्टी कराने की आवश्यकता नही है । सरकार का जितना कम अकुश रहे उतना ही अच्छा । २ - रजिष्ट्री सरकार नही, काजी यो पुरोहित करे । ३ - रजिष्ट्री के बाद विधि करना विडम्बना है दो मे से एक कोई भी चीज रक्खी जाय । ४- गोद का रिवाज बिलकुल उठा दिया जाय । I समाज शास्त्र मे एक कसौटी :- का निर्देश, आता है कि जो सरकार अधिक से अधिक सुव्यवस्था के साथ कम से कम अकुश रक्वे वही सरकार अच्छी है । इसलिये विवाह शादियो के यि मे सरकारी, अकुश खटकना स्वाभाविक है । पर सरकारी अकुश और सरकारी सेवाओ का भेद ध्यान मे रखना आवश्यक है । सरकार के कुछ काम तो नियन्त्रण सबधी है . और कुछ काम सहायता या सेवासबधी | शिक्षण देना असपताल खोलना, मर्दुमशुमारी करना आदि अकुश नही किन्तु सेवाएँ है । रजिष्ट्री का काम इसी श्रेणी का है । रजिष्ट्री करने का सिर्फ यही मत लब है कि समाज को याद रहे कि इन दो व्यक्तियो का विवाह हुआ हैं ।' समाज के हाथ मे यह काम Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश नववॉ दोनो का हुआ और हैं । रजिष्ट्री सौप देने से भी एक तरह से काम तो जाता है परन्तु कभी कभी बड़े झगडे जाते है । एक दल कहता है कि इन विवाह हो गया, एक कहता है नहीं दोनों अपने अपने गवाह पेश करते मे ये झगडे न रहेंगे । कभी कभी जबर्दस्ती भी विवाह विधि कर दी जाती है । वर वधू दिखाये कोई जाते है और शादी किसी के साथ कर दी जाती है । बालविवाह प्रतिबंधक कानून तथा और भी ऐसे कानूनो को भग करके शादियों हो जाती है । रजिष्ट्री के रिवाज से ये झगडे कम हो जायगे । चल ही पैदा हो रजिष्ट्री का यह मतलब नही है कि सरकार के हाथ मे विवाह का सूत्र दे दिया जाय । रजिष्ट्री का मतलब सरकार को विवाह का गवाह बना लेना है । जैसे बालक के पैदा होने और मरने की सूचना सरकार मे कर दी जाती है और सरकार उसे रजिप्टर मे लिख लेती है उसी प्रकार विवाह की सूचना भी लिख ली जायगी । हा, जन्म मरण की सूचना की अपेक्षा इस मे कुछ अधिक सतर्कता की आवश्यकता है। कोई स्वार्थवश झूठी रिपोर्ट भी कर सकता है इसलिये वर वधू को रजिष्ट्रार के सामने उपस्थित होने या रजिष्ट्रार को घर बुलाने की आवश्यता रहेगी । काजी या पुरोहित से रजिष्ट्री कराने की कोई जरूरत नहीं । समाज मे इन की आवश्यकता ही नही है । उन लोगो को आजीविका के लिये धधा मिल जायगा यह ठीक हैं पर रजिष्ट्री का उद्देश मारा जायगा । नाजायज विवाहो का समर्थन कर देना इनके लिये वडा सरल है । फिर भी अगर किसी सघ को अपना रजिष्ट्रेशन आफिस रखना है तो भले ही रक्खे पर 1 सरकारी रजिष्ट्री गवाही की दृष्टि से अनिवा वर्तमान मे रजिस्ट्री कराने में एक है । वह यह कि जिस विवाह की रजि जाती है उसके लिये एक जुदा ही 1 [ सिविल ला ] लागू होता है | हिन्दू ला लिम ला आदि की अपेक्षा उसका REC कुछ जुदा है । पर रजिष्ट्रेशन की यह तभी तक है जबतक कि दायभाग आदि कानून जुढे जुदे है बाद मे यह आपत्ति जायगी । M सकती है । विधि या उत्सव हैं पर इस मे पर यदि अभी हिन्दू ला आदि अलगकानून उठाये न जा सकते हो तो भी उ पहिले रजिष्ट्री की सुविधा की जा सकती सिविल ला के अनुसार होने वाले विवाहो ही रजिष्ट्री न की जाय किन्तु किसी भी तर के विवाह की रजिष्ट्री की जाय और उस यह बात लिख दी जाय कि यह विवाह ज कानून के अनुसार हुआ है । इस प्रकार वैवा हिक कानून की अडचन दूर हो रजिट्रेशन के आगे पीछे करना विडम्बना कही जा सकती कोई विडम्बना की बात मालूम नहीं हमारे यहा वच्चा पैदा होता है तब उसकी खबर सरकार मे कर दी जाती है पर इसी से हमार कार्योकी इतिश्री नहीं हो जाती । हम उत्सव भी मनाते है और भी आवश्यक क्रियायें करते है इसी प्रकार विवाह की बात है । विवाह के कानूनी रूप के लिये रजिष्ट्रेशन है और वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारियों का अनुभव करने और समाज की भी गवाही देने के लिये विवाहोत्सव मनाना चाहिये । जब कभी राज्यक्रान्ति आदि होने से सरकारी रजिष्टर न मिले तो समाज होती । जब ए Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४] निरतिवाद की गवाही काम आयगी । इस प्रकार विवाह का सन्देश दसवॉ रजिष्ट्रेशन जरूर हो, विशेष विधि या उत्सव व्यभिचार घृणित समझा जाय परन्तु व्यभिस्वेच्छा पर निर्भर रहे। . चारजात सन्तान घृणित न समझी जाय । समाज ___गोद का. रिवाज कोई हानिकारक नहीं मे इसके अधिकार पूरे रहे । मालूम होता । अपना बच्चा तभी गोद दिया जाता । भाष्य-बहुत से लोगो का ऐसा भ्रम है कि है जब वह किसी श्रीमान् के घरमे जाता है। गोद व्यभिचार पाप होकर के भी क्षग्य है जब कि मे जाने से बच्चे के हित की कोई हानि होने की व्यभिचारजातता क्षम्य नहीं है। इसलिये व्यभिसंभावना नहीं है । नुकसान तो बच्चे के माता चारियो को तो शुद्ध करके सामाजिक अधिकार पिता का हो सकता है सो वह तो अपना नफा दे दिये जाते हैं पर व्यभिचारजातो को सदा के नुकसान विचार कर दे ही रहा है। इस प्रकार लिये अलग कर दिया जाता है । यह पूरा अधेर न तो बच्चे की हानि है न गोद देने वाले और है । जिन स्त्री पुरुषो ने व्यभिचार किया वे ही लेनेवाले पर कोई जबर्दस्ती है ऐसी हालत मे दोषी है उनको ही दड देना चाहिये । व्यभिचार गोद के रिवाज से अगर किसी की पत्रैपणा शात से पैदा होनेवाले बच्चे का क्या दोप है । इसलिये होती है तो क्या हानि है ? वह सतान पैदा करने उसे तो धर्म, समाज, राष्ट्र के जितने अधिकार के लिये दूसरी शादी करना चाहे पत्नी पर अप्र- है सब मिलना चाहिये । एक निरपराधी को सन्न रहे या उत्तराधिकारी के अभाव मे दुखी रहे ही दड देना अन्याय है । हा, व्यभिचारजातता से दड दना इससे तो यही अच्छा है कि वह किसी बालक उसमे बल बुद्धि सौन्दर्य सदाचार आदि मे कोई या युवकको गोद लेले । इस कार्य मे किसी के त्रुटि होती हो तो उसका फल उसे साथ कोई जबर्दस्ती तो होती ही नहीं कि अन्याय आपसे ही मिल जायगा उसके लिये दड देने की आपस हो जाय । इस प्रकार गोद लेने की प्रथामे कोई जरूरत नहीं है । पर यह भूलना न चाहिये कि व्यभिचारजातता . से बल बुद्धि आदि मे कोई त्रुटि बुराई नहीं मालूम होती। नहीं होती। ___हा, कही कहीं पर पुरुष को गोद लेने का कोई यह समझते है कि इससे व्यभिचार अधिकार है और स्त्री को नहीं है यह बात पर रोकथाम लगती है पर बात यह नहीं है । अवश्य ही अनुचित है । यह पक्षपात जाना चाहिये। व्यभिचार से सन्तान पैदा होगी और उसे सामाविवाह सस्था मे जो जाति या ,सम्प्रदाय जिक अधिकार न मिलेगे । वल्कि इसलिये डरता आदि के नाम पर वधन है वह एक तरफ का है कि सन्तान होने से व्यभिचार का प्रबल प्रमाण अतिवाद है और अनमेल विवाहादि की जो छूट समाज के हाथ मे आजायगा इसलिये मैं सजा है वह दूसरी तरफ का अतिवाद है। निरतिवाद पाऊगा और बदनाम हो जाऊगा । इसी डर से अनमेल विवाहो' का - और अनुचित बधनो का वह भ्रूण हत्या करता है। जब हत्या करने का विरोधी है। , . ।। - डर नहीं है तब सन्तान के अनधिकारी होने का Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश ग्यारहवा [४५ उसे क्या डर होगा । बल्कि व्यभिचारजात र्दस्ती विवाह के लिये तैयार करना एक असफल सन्तान अधिकारी न होने से उसका डर कम दाम्पत्य का निर्माण करना है । इसलिये अगर हो जाता है । जब व्यभिचारजात सन्तान सम्पत्ति टेक्स लगाना हो तो कुछ आमदनी का नियम की उत्तराधिकारी होने लगेगी तब व्यभिचार करना रखना होगा कि अविवाहित कर चालीस या पचास कुछ कठिन ही हो जायगा । रुपया से अधिक मासिक आमदनी वाले को लगाया ___परन्तु इससे कुटुम्ब कलह बढजॉयगे । जाय । फिर भी जो व्यभिचार हो उस पर यथापुरुप के अपराध के कारण उसकी पत्नी सन्तान चित दडादि व्यवस्था की जाय । यहा एक बात आदि के साथ अन्याय होगा इसलिये साम्पत्तिक और ध्यान मे रखना चाहिये कि जब तक देशमे अधिकार के विषय मे कुछ नियम बनाना होगे। जन सख्या बटाने की जरूरत नहीं है तब तक १-व्यभिचार करनेवाले अगर दोनो ही विवाह के लिये विवश करना ठीक नहीं मालूम अकले हो (पतिहीन और पत्नीहीन) तो साम्पत्तिक होता । खर, उत्तराधिकारित्व का नियम लागू हो। और दोनो व्यभिचार की छुट्टी दे देना और मनुष्य को पतिपत्नी माने जाँय । अगर सधवा और सपत्नीक पशु कोटि मे जाने देना एक प्रकार की अति है, व्यभिचार करे तो वे अपराधी समझे जॉय और और व्यभिचार रोकने के लिये व्यभिचारजात उनका सम्बन्ध तुडा दिया जाय । सन्तान का गला घोटना दूसरे प्रकार की अति है। २-वेश्याओ के विषय मे दाम्पत्य बनाने का निरतिवाद व्यभिचार रोकना चाहता है पर व्यभिनियम लागू न हो। चारजात की रक्षा करना चाहता है । किसी का उचित अविकार मारा न जाय संदेश ग्यारहवा इसके लिये आवश्यक उपनियम और भी बन एक देश इसर देश पर एक जाति दूसरी जॉयगे। पर साधारण बात यह है कि व्यभिचार जाति पर एक प्रान्त दूसरे प्रान्त पर शासन न बुरा होने पर भी बेचारी व्यभिचारजात सन्तान को । भौगोलिक सीमाओ के आधार पर राष्ट्रो वरी न समझी जाय । व्यभिचार को रोकने के का निर्माण हो और शासन की स्वतन्त्रता उस लिये जो टड और शिक्षण की आवश्यकता हो देश की जनता को रहे । वह अवश्य दिया जाय । भाष्य-पहिले सन्देश की अगर पृत्ति होजाय कहा जा सकता है कि हरएक युवक और तो इसकी आवश्यक्ता बहुत कम रह जाती है । युवती को विवाहित होना अनिवार्य कर दिया पर जब तक पहिले सन्देश की पूर्ति न हो तब जाय और जो विवाह न करे वह टेक्स दे । ऐसा तक इसकी आवश्यकता तो है ही साथ ही प्रथम होने पर व्यभिचार रुक जायगा । सन्देश की पूर्ति के बाद भी है । प्रथम सन्देश परन्तु व्यभिचार तो इस अवस्था मे भी नही से इन सीमाओ के अन्दर रोटी बेटी व्यवहार की रुक सकता, हा, कम अवश्य हो सकता है । पर खुलासी मिलती है परन्तु ऐसी भी परिस्थितियाँ जो मनुष्य इतना पैदा न कर सकता हो कि वह है जब रोटी बेटी व्यवहार की खुलासी होजाने पर पत्नी और सन्तति का पालन कर सके उसे जव- भी शास्य शासक का भेद बना रहता है । पहिला Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरतिवाद सन्देश सामाजिक एकता के लिये है और यह भिमान न करे । अपना स्वार्थ देखता हो तो देखे राजनैतिक एकता तथा वराबरी के लिये है । एक परन्तु एक कल्पित समानता के नामपर एक गिरोह दूसरे के पूरक तो है ही। के स्वार्थ को अपना स्वार्थ समझकर मनुष्यता का व्यक्ति व्यक्ति पर आक्रमण करता है उससे खून क्यो करे ? कुटुम्व और मनुष्य के बीचके समाज मे अशान्ति पैदा होती है और नम्बर वार जितने भेद है उन्हे सघर्ष का कारण क्यो वनाये ? दोनो सताये जाते है यही बात राष्ट्रो और प्रान्त इतनी सावारण समझदारी यदि आजावे तो आदि के विषय मे भी है। जगत के राजनैतिक झगडे निर्मूल हो जावे । राष्ट्र __ भारत मे जब जब किसी एक प्रान्त का आदि प्रबन्ध के सुभीते के लिये रह जॉय । जैसे उत्थान हुआ तभी उनने दूसरो को गिराने की एक ही शासन के नीचे ग्राम तहसील और जिल चेष्टा की या उनपर अविकार जमाया इससे निर्विरोध रहते है उसी प्रकार प्रान्त और राष्ट्र उनका पतन हुआ और दूसरों का भी हुआ । भी हो जावे । इसमे सभी का कल्याण है। मराठो का, राजपूतो का सब का ऐसा ही इतिहास है। अपने देश को पराधीन रखना या दूसरे आज बगाली, महाराष्ट्री, गुजराती आदि देश को पराधीन करना दोनो ही अनुचित है । भेदो को मुख्य बनाकर एक प्रान्त दूसर पर वर्चस्व स्वतत्र रहो और दुनिया को स्वतत्र रक्खो यह स्थापित करना चाहे राष्ट्रीय हित को गौण करके निरतिवाद है। प्रान्तीयहितो को मुख्यता दे तो भारत का सर्व ___सन्देश बारहवाँ नाश हो जाये । इनमे जो भापा और रहन सहन । के भेद है वे ऐसे नहीं है जो आमिट हो । वृथा किसी व्यक्तिको अगर दूसरे देशमे जाकर बसना हो तो उसे वहा बसने का पूरा अविकार भिमान की पुष्टि के लिये राष्ट्रीयता और मनुष्यता निम्न शती पर रहना चाहिये। की हत्या न करना चाहिये । [क] वहा की भाषा को अपनाना होगा । जो वात प्रान्तो के लिये है वही बात राष्ट्रो [ख] उस देश के निवासियो के साथ रोटी के लिये भी है । एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रपर आक्रमण । करना चाहता है इसके लिये दोनो ही अपनी बेटी व्यवहार को अपनाकर सामाजिक एकता सारी ताकत शस्त्रास्त्रो के बढाने मे लगा देते है। स्थापित करलेना होगी । राष्ट्र मे जनकल्याण के कार्य किनारे रह जाते [ग] अपनी जुदी सस्कृतिका दावा न करना है और नरसहार की तैयारी होने लगती है और होगा और न कोई विशेपाधिकार की मॉग उपकभी कभी लाखो का सहार हो जाता है । जब तक स्थित करना होगी। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को दबाये रखना चाहेगा [घ] बाहर से आकर बसे हुए अन्य लोगो या दबायेगा तब तक आदमी चैन से न रह पायगा। के साथ मिलकर ऐसा कोई गुट्ट न बनाना होगा आदमी मे अगर थोडी भी आदमियत हो जो उस देश के निवासियो पर आक्रमणात्मक तो वह राष्ट्र प्रान्त जाति आदि के नामपर वृथा- सिद्ध हो सके । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश वारहवा [४७ भाष्य-जिस समय वह सुवर्ण युग आ भी बन गया है । इन सब बातो को हम तीन जायगा जब राष्ट्रीयता की भी सीमाएँ नष्ट हो श्रेणियो मे बाट सकते है। १ नैतिक २ अनैजॉयगी तब की बात दूसरी है परन्तु जब तक ये तिफ ३ तटस्थ । तटस्थ की भी दो श्रेणिया होगीहै तक तक यह सन्देश उपयोगी है । क-जिन का दूसरा से कोई सर्प नहीं है। ___ यहा यह बात ध्यान मे रखने की है ख---जो सघर्ष पैदा करनेवाली है। कि जो लोग सैकडो वर्षों से जहा बसे हुए है १-स्त्रियो का सन्मान करना माता पिता उनको अपने घर लौटाना नही है | उनका घर का आदर करना शाकाहारी होना आदि नैतिक तो अब वही है जहा व सकडो वर्षों से बसे हुए है। सस्कृतियों है । इनके दावा करने का कोई विरोध पर हा, अगर उनमे से कोई यह मानता हो कि नहीं किया जा सकता । और न किसी देश मे जहा हम बसे हुए है वह हमारा देश नही है, जाने पर इनका निपेध ही किया जा सकता है। हमारा देश तो वही है जहा से हमारे पूर्वज आये अगर किसी जगली देश मे हम पहुँच जॉय जहा थे तो ऐसे आदमी को बसे हुए देश मे नागरिक लोग माँ बाप को मार डालते हो या वेच देते हो अविकार नहीं दिये जा सकेगे । जो आदमी जिस तो हमारा कर्तव्य इस अनेतिक सस्कृति को अपदेश का नागरिक बनना चाहता है उसका फर्ज नाना न होगा। है कि वह उस देश को सब से अधिक प्यार करे अथवा विश्वबन्धुत्व की भावना तीव्र हो गई हो २-इसी प्रकार अगर हमारे मे कोई उपर्युक्त तो ससार के समस्त देशो को बराबरी की नजर अनैतिक सस्कृति हो और हम ऐसे देश मे जॉय से देखे । मुख्य बात यह कि जो जहा का नाग जहा ऐसी अनैतिक सस्कृति न हो तो उस देश रिक हो वह वहासे अधिक किसी दूसरे देश को के नागरिक बनने के लिये हमे उस अनैतिक प्यार न करे । अगर वह व्यवहार मे इस भावना सस्कृति का त्याग कर देना चाहिये ।। को नहीं बताता है तो वह सिर्फ यात्री की तरह ३ क-इस श्रेणी मे वेप भूफा खानपान रह सकेगा नागरिक की तरह नहीं। आदि का समावेश होता है। खानपान पहिरने , हा, इसमे सन्देह नही की बाहर के नये ओढने की मनुष्य को स्वतन्त्रता होना ही चाहिये नये प्रभावो से सस्कृतियो की सुन्दरता और उप- परन्तु इस मे दो बातो का खयाल अवश्य रखना योगिता बढ़ती है इसलिये सस्कृतियो का बहि- होगा कि हमारी यह स्वतन्त्रता सामूहिक हित मे प्कार नही किया जा सकता पर सस्कृति के दावा आडे न आवे । मानलो किसी आदगी को शराब की मनाई अवश्य की जा सकती है। अच्छी बात पीना है और उस देश के लोग शराब को स्वास्थ्यका प्रचार अच्छेपन के कारण होना चाहिये नाशक धननाशक आदि होने से बढ कर देना सस्कृति के नाम पर नहीं। चाहते है ऐसे समय मे सस्कृति की दुहाई देकर सस्कृति शब्द का जो मूल अर्थ है उसका उस देश की प्रगति मे बाधक नहीं होना चाहिये। तो किसी से विरोध नही है । परन्तु सस्कृति का अगर आपको उस मे अच्छाई मालूम होती है तो अर्थ रहनसहन तथा और बहुत से रीतिरिवाज आप युक्ति और अनुभव के आधार पर उसकी Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरतिवाद ४८ ] अच्छाई सिद्ध करे परन्तु सस्कृति की दुहाई देकर ऐसा न करे भूषा के विषय मे भी यही बात है । आप जैसा चाहे वेप रक्खे पर रक्खे सुविधा आराम या आदत के नाम पर । अपनी सस्कृति के जुदेपन के नाम पर नही । ३ ख - बहुत सी बाते सर्प पैदा करनेवाली है । मानलो एक देश मे आदमी खुले आम नगे नहाते है । वहा के आदमी यहा के निवासी वन गये । यहा की परिस्थिति के कारण उनको नगे नहाने से कानूनन मना किया गया और उनने अपनी सस्कृति की दुहाई देकर चिल्लाना शुरू किया तो यह ठीक नहीं है । इसी प्रकार नरवलि खुले आम पशुवध या और भी ऐसी बाते जो घृणित या पर- पीडक है उन्हे संस्कृति के नाम पर मढना ठीक नही । - भाषा लिपि आदि के विषय मे उस देश की भाषा और लिपि को अपनाना चाहिये । हा, यह बात अवश्य है कि भाषा दो चार दिन मे नहीं आती । उमर अधिक होने पर उसका सीखना -- अच्छी तरह सीखना - कठिन हो जाता है इस प्रकार असमर्थता के नाम पर कोई देश की भाषा का उपयोग न कर सके तो बात दूसरी है परन्तु अगर नागरिक वनना हो तो अवश्य उसी देश की भाषा सीखना चाहिये । अपनी सस्कृति की दुहाई देकर वहा की भाषा से घृणा या असहयोग न करना चाहिये । हा, उस देश की भाषा या लिपि मे अगर त्रुटि हो तो उसे सुधारने का प्रयत्न किया जा सकता है | अगर ढो मे से किसी एक का चुनाव करना हो तो मै और तू के आधार पर चुनाव न करना चाहिये किन्तु अच्छेपन के आधार पर चुनाव करना चाहिये । भाषा या लिपि के नाम पर अहकार की पूजा करने मे कुछ लाभ नही है अगर हमारी भाषा या लिपि मे कुछ खरबी है तो वह हमे भी तो अडचन उपस्थित करेगी। झूठे अहकार के कारण सैकडो वर्षो के लिये वह अडचन वनाये रखने मे कौनसी बुद्धिमानी है । जो वयस्क है उनकी बात जाने दे शायद वे नई भाषा या लिपि ग्रहण न कर सके पर जो बच्चा पैदा होता है वह तो कोरे कागज के समान है उस पर जो पहिले लिख दोगे वही लिख जायगा । उसे क्यो अहकार का शिकार बनाया जाय। जो अच्छी लिपि या भापा देश के लिये उपयोगी और काम चलानेवाली हो वही सिखाई जाय । एक पीढी वाद सारा सघर्ष दूर हो जायगा और कोई अडचन न रहेगी । I यहा राष्ट्रभाषा और राष्ट्रलिपि का प्रश्न भी जटिल बना हुआ है । जिस में भाषा का प्रश्न तो व्यर्थ सा है । जिसे हम हिन्दी कहते है जिस का दूसरा नाम खडी बोली है उसमे हिन्दुओ की अपेक्षा मुसलमानो का हाथ वहुत है । वल्कि गावो मे तो उसे अभी भी मुसलमानी भाषा कहते हैं । बुंदेलखंड के गावो मे जब कोई शुद्ध हिन्दी या खडी बोली बोलता है तब लोग यह कह कर निंदा करते है कि अब तू तुडकी-तुर्कीमुसलमानी सीख गया । पर वही तुडकी आमतौर पर लिखी जाती है । उस तुडकी-शुद्ध हिंदीखडीवोली मे भारत के बाहर के बहुत से शब्द मिलकर आम लोगो के पास पहुँच गये हैं । उनको निकालने की जरूरत नहीं है बल्कि और भी जो नये शब्द जरूरी हो उनको अपना लेने की जरूरत है । परन्तु जान बूझकर सस्कृत या अरबी फारसी के कटिन शब्द ठूसना Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश बारहवॉ 1 अनुचित है । खैर, हिन्दी, उर्दू का व्याकरण एक होने से भाषा की चिन्ता नहीं है साधारण जनता उसे आप ही ठीक कर लेगी। रहा लिपि का प्रश्न । सो भारत के बाहर की लिपि को भारत मे प्रचलित होने का नैतिक हक्क नहीं है । फिरभी अच्छाई की दृष्टि से विचार किया जा सकता है । सो लिखना पढना और प्रेस तीनो दृष्टियो से उर्दू लिपि ठीक नही है | रोमन लिपि प्रेस की दृष्टि से ठीक है पर पढने की दृष्टिसे उस मे भी काफी खराबी है । और लिपि मे शुद्ध पढना ही सब स महत्त्व की बात है । नागरी आदि लिपियो मे शुद्ध पढ़े जाने का गुण असाधारण है । थोडी सी त्रुटि है जो सरलता से दूर की जा सकती है पर प्रेस की दृष्टि से रोमन की अपेक्षा खराब है । इसलिये इस दृष्टि से इसमे काफी सुधार की जरूरत है । अथवा कोई ऐसी लिपि बनाना चाहिये जो सर्वगुणसम्पन्न हो । इस यि मे सस्कृति का प्रश्न 'व्यर्थ है । यह तो कुरूढि - पूजा है । हमे नये पुराने या अपने पराये का नहीं किन्तु अच्छाई का पुजारी बनना चाहिये । खैर, नागरिकता का मतलब हैं कि उस देश मे अपने को मिला ढेना । अहंकार आदि को राष्ट्र की वेदी पर चढा देना । बाहर का आया हुआ आदमी अगर नागरिक तो बनना चाहता है पर उस देश को अपनाना नही चाहता तो उस देश में बसने का उसे नैतिक हक्क नही है । जैसे वर्तमान मे अग्रेज लोग यहा बसे हुए है और नागरिक अधिकार भी उन्हे मिले है कुछ कुछ विशेषाधिकार भी पाये हुए है और कुछ कानूनी सुविधाएँ भी है परन्तु यह सब अन्याय है । यद्यपि एक देश का दूसरे देश पर शाराक होना ही अन्याय है परन्तु यह एक दूसरे तरह 1 [ ४९ का अन्याय है । कोई अग्रेज सरकारी नौकर बन कर यहा आता है तो आये, नौकरी करके चला जावे परन्तु यहा बसने पर उसे या व्यापारी अग्रेजों को नागरिकता के अधिकार तबतक नहीं मिलना चाहिये जबतक वे इस देश को मातृभूमि समझकर प्यार न करने लगे और इस देश को उन्नत स्वाधीन और सुग्बी बनाने का प्रयत्न न करे । मुसलमानो के विषय मे यह प्रश्न खडा ही नहीं होता । पहली बात तो यह है कि ये मुसलमान बाहर से आये हुए नहीं हैं । यही के निवासी है । धर्म-परिवर्तन कर लेने से नागरिकता के अधिकार नही मारे जा सकते । थोडे 1 बहुत जो मुसलमान बाहर से आये थे उनके वगजो मे गायद ही ऐसा कोई हो जिस मे मातृपक्ष द्वारा हिन्दू रक्त न बहता हो । इस प्रकार सैकडो वर्षो के निवास से चैवाहिक सम्बन्ध या रक्त-मिश्रण से मुसलमान लोग हिन्दुस्थानी ही है । हा, अगर कोई मुसलमान अपने को हिन्दुस्थानी नही कहना चाहता भारतमाता या माढरे हिन्द कहने से उसे चिड है वह अपने को अभी भी अरव तुर्कस्थान आदि का नागरिक मानता है तो यह उसकी मर्जी है । माने, पर ऐसी अवस्थामे नागरिकता के अधिकार नहीं दिये जा सकते । एक देशके आदमी दूसरे देश मे बस ही नसके, यह एक अतिवाद है, और दूसरे देश मे वसकर वहा अपनी राष्ट्रीयता को समर्पण न करना बहा के निवासियो मे फूट का कारण बनना दूसरा अतिवाद है । निरतिवाद दोनो का निपेध करके उचित रूप मे वसने का मार्ग ताता है । Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० ] निरतिवाद सन्देश तेरहवा न्यायालय से न्याय करावे । अगर बाहर का कोई राष्टीयता का समर्थन वही तक होना चाहिये राष्ट्र राष्ट्रसघ के किसी राष्ट्रपर आक्रमण करे जहा तक वह दूसरे राष्ट्रो पर आक्रमणात्मक न हो। तो सब मिलकर उसका बचाव करे । इस प्रकार भाष्य-जो देश राष्ट्रीयता की मंजिल तक धीरे धीरे दुनिया के समस्त राष्ट्रो मे सुलह शान्ति ही अभी पूरी तरह नहीं पहुंचे है उन्हे तो राष्टी- कायम को जाय । यता अपना ध्येय बनाना चाहिये । जैसे भारत, भाष्य-वर्तमान मे जो यूरप मे राष्ट्रसघ है चीन आदि देश है। परन्तु इटली, जापान, इग्लेण्ड वह तोड देना चाहिये । उसने कमजोर राष्ट्रो को आदि राष्ट्रो की राष्ट्रीयता आक्रमणात्मक हो गई है। वोखा देकर गुलाम बनाने मे मदद ही पहुंचाई है। वह मनुष्य जाति के लिये अभिशाप है । इस शाप जैसा कि एबीसीनिया के मामले मे हुआ और और पाप के कारण मनुष्य जाति को सैकडो वो चीन के विपय मे भी हुआ । जब तक राष्ट्रतक चैन न मिलेगी । आज एक राष्ट्र सताया सघ का कोई एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रपर सवार होगा जाता है कल वही बदला लेकर सतानेवाले को तब तक राष्ट्रसघ एक नपुसक सस्था ही रहेगा । सताता है इस प्रकार अविश्वास और अशान्ति उसके न होने से एक लाभ यह होगा कि निर्वल का राज्य छाया हुआ है । जनशक्ति और धन- राष्ट्र उमके भरोसे ठगे न जायगे । भारत सरीखे शक्ति मनुष्य के सहार मे लग रही है। गरीब देशका अपनी तिजोरी मे से रुपया देकर अगर किसी देश की जनसख्या बढ़ रही इस राष्ट्रसघ सरीखी विश्वासघाती सस्थाको पोषण है तो किसी उपाय से सतति-नियमन करना देना ठीक नही । इसलिये भारत को उससे अलग चाहिये अगर वह न हो सकता हो तो बारहवे हो जाना चाहिये। भले ही साम्राज्यवादी देश' सन्देश के नियमानुसार दूसरे देशो मे-जहा बसने उसको बनाये रक्खे । यदि भारत सरकार राष्ट्रकी गुजायश हो-बस जाना चाहिये । पर वहा सघ से सम्बन्ध-विच्छेद न करे तो काग्रेस सरीखी वसने के लिये उन देशो पर आक्रमण कर बैठना, सस्थाको सम्बन्ध-विच्छेद घापित कर देना चाहिये । उन देशो को गुलाम बनाना, वहा के नागरिको राष्ट्रसघ मे जनसख्या के अनुसार प्रतिकी सम्पत्ति छीन कर अपने देशवालो को दे देना निवि इस तरह हो । अत्याचार और बर्वरता है । यह इस बात का ५ करोड तक १ प्रतिनिवि दुखद प्रमाण है कि सामूहिक रूप मे भी मनुष्य १५ करोड तक अभी जानवर है । यह जानवरपन जाना चाहिये। ३० करोड तक ३ , सन्दश चौदहवा ५० करोड तक ४ , ऐसे राष्टो का जो किसी दूसरे राष्ट्रो को ५० करोड के उपर ५ , पराधीन नही बनाना चाहते न वनाये हुए हैं- पाच से अविक प्रतिनिवि किसी राष्ट्र के न एक राष्ट्रसघ हो । जिसमे जन-सख्या के अनुसार हो । जिन देशो मे प्रजातत्र सरकारे है उन देशो प्रतिनिधि लिये जावे । ये राष्ट्र आपस मे सरकार ही प्रतिनिवि भेने । जहा सरकार मे आक्रमण न करे । झगडा होनेपर राष्ट्रसघ के प्रजानुमोदित नहीं है वहा की सर्वश्रेष्ठ राणीय २ " ow Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश चौदहवाँ [ ५१ सस्था प्रतिनिधि भेजे । जो राष्ट्र साम्राज्यवाद की पक्षपात न करूगा और न ऐसे कार्यो मे भाग नीति के विरुद्ध है उन सबको यह राष्ट्रसघ कायम लूंगा जो साम्प्रदायिक या जातीय भाव को बढाने करना चाहिये । रूस, चीन, भारत, मिश्र, आयर- वाले हो न ऐसे विचार किसी तरह प्रगट करूगा। लेड, अफगानिस्तान, स्विड्जरलेड, फारस आदि सभी धर्मों का आदर करूगा और सदा न्याय देश मिलकर इस राष्ट्रसघ की नीव डाले । ये और सत्य का पक्ष लूगा । राष्ट्र आपस मे स्थायी सन्धि करले । एक दूसरे भाष्य--शासन या न्याय के कार्य मे जो को पूरी मदद करे । राष्ट्रसंघ के सदस्य मानो मनुष्य अपने जातीय या साम्प्रदायिक स्वार्थ भाई भाई है इस तरह व्यवहार करे । इस राष्ट्र- को नहीं भूलता वह शुद्ध न्याय और निर्दोप सघ की नीतिको जो अपनाते जॉय उन्हे राष्ट्र- शासन नही कर सकता खास अवसर पर वह सघ मे मिलाते जाना चाहिये । इस प्रकार यह अवश्य धोखा दे जायगा । एक महान शक्ति हो जायगी । और धीरे धीरे दूसरी बात यह है राष्ट्र का यह ध्येय होना साम्राज्यवाद का नाम सिर्फ इतिहास के पन्नो मे चाहिये कि उसके भीतर के जातीयता प्रान्तीयता और लिखा रह जायगा । साम्प्रदायिकता के भेद नष्ट हो। विचार आचार राष्ट्रसघ के न्यायालय के न्यायाधीश वे लोग की स्वतन्त्रता रहे परन्तु उनके नामपर दलबन्दी ही बनाये जॉय जो राष्ट्रीयता के पक्षपात से परे न हो । सर्व साधारण प्रजा को अगर इसके लिये हो गये हो । जो न्याय और सत्य के पुजारी हो। वाध्य न किया जा सके तो कम से कम उन लोगो विश्वशान्ति जिनके जीवन का ध्येय हो। को तो बाध्य होना ही चाहिये जो शासक बनते राष्ट्रसघ की जब यह योजना सफल हो है और जो राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति से निपक्ष जाय तब राष्ट्रसघ द्वारा एक ऐसी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार करने के लिये बाध्य है। भाषा बनाई जाय जो सरल से सरल हो और इन शासको के भीतर हिन्दू मुसलमान, अधिक से अधिक निर्दोप हो इसी भाषा मे राष्ट्र- ब्राह्मण शूद्र, बगाली गुजराती आदि का कोई सघ का काम चले । इसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय भेद न होना चाहिये । वे धर्म के विषय मे स्वतत्र लिपि की समस्या भी हल करलीजाय । विचारक और समभावी, जातिके विषय मे पूरे निरतिवाद प्रबन्ध की सविधा के लिये राष्टो राष्ट्रीय होना चाहिये । जो लोग इतना पक्षपात के अस्तित्व को स्वीकार करता है । वह उन्हे नष्ट नहीं छोड सकते उन्हे किसी भी सरकारी नौकरी नहीं करना चाहता न उनमे सघर्ष चाहता है। मे न लिया जाय। आज कई लाग्व आदमी सरकारी नौकरी मे मन्देश पन्द्रहवाँ है । वे सब जातिपॉति के वधन से रहित पूर्ण शासन कार्य के प्रत्येक कर्मचारी को नि.पक्ष नि पक्ष और समभावी हो तो इन लाग्वा आठ होना चाहिये । नौकरी पर नियुक्त होने के पहिले मियो का एक राष्ट्रीय समाज ऐसा बन जावे जो उसे इस बात की शपथ लेनी होगी कि मै शासन राष्ट्र में फैली हुई सकुचितताओं को नष्ट करने कार्य मे किसी भी जाति सम्प्रदाय या व्यक्ति का मे पथ-प्रदर्शक हो । इनके सम्पर्क से और भी Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ] निरतिवाद इनके लाखो कुटुबी इसी तरह के उदार वन विक है या केवल नौकरी के लिये है । इसके जॉयगे। लिये उम्मेदवार के पहिले चरित्र का विचार ___हमारी जाति मे से इतने अनुपात मे नौक- किया जाय । रियाँ मिलना चाहिये' आदि मागे और झगडे इस यह कहा जा सकता है कि इस तरह से शान्त हो जॉयगे । क्योकि जो आदमी सर- नौकरी के लिये किसी के धर्म पर या विचारो कारी नौकरी मे जायगा वह तो राष्ट्रीय जाति के पर हस्तक्षेप करना तो मनुष्यको गुलाम बनाना है । सिवाय और किसी जाति का न रह जायगा । सो नौकरी में आशिक गलामी तो है ही। तब जातिवाले अपना आदमी गुमाने को यह आज भी अमुक तरह के विचारो का बधन है माग ही पेश न करेगे । और करे भी तो इसमे तब उदारता का बधन क्या बुरा है ? दूसरी बात दूसरो का इतराज कम हो जायगा । यह है कि जो वस्तु कल्याणकारी है उसे बधन भारतवर्ष मे नौकरी पर रखते समय प्रत्येक नहीं कह सकते । प्रेम का बन्धन, कर्तव्य का नौकर से यह प्रतिज्ञाएँ ले लेना चाहिये। बधन, ईमान का वधन आदि बधन या गुलामी १-मै आज से अपने को हिन्दू मुसलमान नहीं है । मनुष्य को सकुचित वातावरण मे लाआदि न मानूगा न ऐसी सस्थाओ का सदस्य देना बवन नहीं है बल्कि बधन का नाश है । रहूगा जो साम्प्रदायिक या जातीय हो । __ तीसरी बात यह है कि साम्प्रदायिक और जातीय २-मै खानपान मे तथा विवाह मे जाति- कट्टरता छीनने से धार्मिक भावनाएँ नहीं छिनती । भेद का विचार न करूगा अपनी अनुकूलता का अपनी रुचि के अनुसार पुस्तक पढने, पूजा ही विचार करूगा । आदि करने की मनाई नही है। स्वतन्त्र विचा३-नौकरी के प्रत्यक कार्य में निपक्षता रक बनने की मनाई नही है । ‘मनाई सिर्फ इस से व्यवहार करूगा । किसीसे लॉच रिश्वत आदि बात की है कि धर्म और जाति की दुहाई देकर न लूगा । राष्ट्र मे सघर्ष पैदा न किया जाय । ४-साम्प्रदायिक या जातीय मामलो मे विल आजकल अधिकाश सरकारी नौकरो की कुल नि:पक्ष रहगा और साम्प्रदायिक काई जाति या धर्म नहीं होता । भरपूर पैसा या जातीय कटुता बढाने का कोई कार्य न करूगा । मिलता है चैन से गुजरती है न खुदा याद आता है न ईश्वर, न कुरान न पुरान, गरीब दुनिया की ५-सम्प्रदाय और जाति के नामपर मै तो याद ही क्या आयगी । पर ये लोग अपनी कोई माग पेश न करूगा। महत्त्वाकांक्षाओं के कारण अपने स्वार्थ का समर्थन ६-मैं जनहित और न्याय को ही सब से कराने के लिये जाति और मजहब का सहारा वटा शास्त्र मानूगा। इनके विरोध मे किसी लेकर भोले लोगो मे विप फैलाते है । अपना उल्लू शास्त्र को न रक्खगा। सीवा करते है और जनता मे जगलीपन' भरते है नौकरी पर रखते समय इस बात की जॉच इसलिये इस बात की जरूरत है कि सरकार। ग्वाम तौर पर करली जाय कि ये प्रतिज्ञाएँ वास्त- आदमी जाति और सम्प्रदाय से परे हा और सदा Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश सोलहवा [ ५३ के लिये परे हो जिससे राष्ट्र मे राष्ट्रीयता स्थायी चुनाव का जो ढग है वह भी ऐसा है कि हो जाय । केवल सेवाभाव से प्रेरित होकर कोई वहा न सन्देश सोलहवाँ जाय । कोई आदमी अपने समय शक्ति विद्वत्ता धारासभा जिला बोर्ड तहसील बोर्ड म्युन्यु आदि का लाभ जनता को मुफ्त देना चाहता है सपलिटी आदि सस्थाओ मे ऐसे ही सदस्य जा और उससे कहा जाता है कि सेवा करने की सके जो अपने को किसी जाति या सम्प्रदाय का उम्मेदवारी के लिये पचास या पॉचसौ रुपये डिपाप्रतिनिधि न मामते हो । जो सर्व-धर्म-समभावी जिट रक्खो । अच्छी से अच्छी अफसरी की और सर्वजातिसमभावी हो। सेवा करने के लिये नौकरी पाने के लिये इस प्रकार डिपाजिट कोई जिनके पास काफी समय हो और जो उन सस्थाओ नहीं रखता फिर निस्वार्थ सेवा के लिये इस प्रकार के कामो मे कुछ समझदारी रखते हो । अपमान कौन सहन करेगा ? जो लोग निस्वार्थ तथा निस्वार्थ वृत्ति से काम करने को तैयार हो । सेवा के कार्य मे दस बीस रुपया देते भी हिच किचाते है वे हजारो रुपये चुनाव की लडाई भाष्य-ये सस्थाऍ किसी एक जाति के लिये नहीं मे फूंक देते है पचास पॉचसो डिपाजिट रखते है हैं इसलिये इनमे साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व-या साम्प्र घर घर जाकर वोटरो के हाथ जोडते है उन्हे दायिक निर्वाचन न होना चाहिये साथ ही प्रत्येक मोटरमे बिठाकर लेजाते है इतनी दीनता और अपसदस्य समभावी ईमानदार और जिम्मेदार होना मान कोई निस्वार्थ सेवा के लिये कैसे सहन कर चाहिये । धारासभाओ के लिये तो पहिले लिख सकता है ? और फिर वे लोग जो दूसरी जगह दो आया हू यहा म्युन्युसपलिटी और डिस्टिक्ट बोर्ड चार रुपयो के लिये भी मुँह ताकते है । आदि के विषय में विचार करना है। वास्तव मे इसलिये सच्चे सेवको को खोजने के लिये इनकी बडी दुर्दशा है । इनमे फीसदी पचहत्तर के करीब स्वार्थी लोग भर जाते है और चुनाव मे निम्नलिखित सूचनाएँ उपयोगी होगी। तो कहीं कही गुडाशाही तक मच जाती है । इन १ प्रान्तीय वारासभा, बडी धारासभा, चुनावो ने हर एक शहर और गावो मे दलबन्दी डिस्क्टि बाडे म्मुन्युसपालिटी आदि की सघटनाओ कर दी है । कहा तो यह जाता है कि हम सेवा और उनके कार्य का परिचय देनेवाला एक पाठ्यके लिये जाते है, पर सेवा के लिये इतनी वेचनी क्रम तैयार किया जाय उसकी परीक्षा हरएक क्यो ? किसी बीमार की सेवा करने के लिये तो नागरिक दे सके । इन परीक्षापास नागरिको मे इतनी बेचनी नहीं होती किसी भले आदमी को से ही कोई चुनाव के लिये खडा किया जाय । भूखा देख कर इतनी बेचनी नही होती फिर वहा बडे बडे नेताओ और विद्वानो को बिना इतनी वेचैनी क्यो ? तुममे योग्यता है भावना है परीक्षा दिये हुए ही सरकार प्रमाण पत्र दे दे । लोग चाहते है तो बुलाने पर अवश्य जाओ । पर २-चुनाव के लिये कोई आदमी स्वय खडा सेवा करने के लिये 'सौ सौ धक्के खाय तमाशा न हो किन्तु वोटरो की संख्या का करीव दमत्रा घुसके देखेगे' वाली कहावत क्यो चरितार्थ भाग जिसको चुनने के लिये अर्जी दे वहीं करते हो? आदमी चुनाव के लिय खडा समझा जाय । जहा Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] वोटरो की सख्या बहुत अधिक हो वहा दसवे भाग के बदले पचास या सौ आदमियो के हस्ताक्षर पर कोई आदमी - चुनाव के लिये खडा किया जाय । ३ - पोलिंग स्टेशन का' सारा' प्रबंध' सरकार करे । वोटरो को मिठाई खिलाना ' शरबत पिलाना निरतिवाद आदि लॉच के काम बन्द रहे । ४- जो आदमी चुनाव के लिये खडा किया जाय वह आदमी पहिले घोषित कर दे कि मै अमुक सेवा कार्य के लिये इतना समय दूगा । तीन चतुर्थाश बैठकों मे उसे उपस्थित रहना अनिवार्य समझा जाय । ५ - डिपाझिट लेना बंद रहे । हरएक आदमी खडा न हो जाय इसके लिये नवर ढो की सूचना काफी है । ६ - वोटरो को ले जाने के लिये सवारी आदि का प्रबन्ध करना घृणित समझा जाय । जनता को समझ लेना चाहिये कि जो आदमी सवारी आदि का प्रबन्ध जितना अधिक करे वह उतना ही अयोग्य और स्वार्थी है । चुनाव के समय की चापलूसी मे आकर किसी को वोट न देना चाहिये । ७--वोट मॉगने के लिये अगर कोई उम्मेदवार वोटर के घर जाता है या अपना दूत भेजता है तो यह उसकी तुच्छता अयोग्यता और स्वार्थीसमझा जाय । अधिक से अधिक इतना ही होना चाहिये कि वोटर के पास अपना लिखित या छपा हुआ सन्देश भेजदे । पन ८ - उम्मेदवार का सन्देश सुनाने के लिये सभाऍ हो सकती है और उम्मेदवार से क्रम से शान्तिपूर्वक प्रश्न पूछे जा सकते है । पर गाली गलौज या मारपीट कदापि न होना चाहिये । अगर उम्मेदवार प्रश्नो का उत्तर न देना चाहे तो प्रश्न पूछना बंद कर देना चाहिये । इसीसे उम्मेदवार की कमजोरी मालूम हो जायगी । होहल्ला 1 मचाने की कोई आवश्यकता नहीं है । 1 है तब परीक्षा ९--प्रभात फेरी आदि ऐसे कार्य बद रखना चाहिये जो चुनाव के क्षेत्र मे युद्ध का वातावरण पैदा करते है और कहीं कहीं फौजदारियाँ भी हो जाती है । इसी प्रकार चुनाव के बाद विजयोत्सव के समान प्रदर्शन भी न करना चाहिये । जो आदमी चुनाव मे आ जांत हैं उनके सन्मान पार्टियाँ देना उन्हे मानपत्र देना आदि भी अनुचित हैं । अभी तो वह सेवा के लिये चुना गया है । सेवा कैसी करता है यह देखकर उसे पीछे बधाई देना चाहिये जब उसका सेवाकाल पूरा हो जाय । सेवा करने मे अगर वह तीन वर्ष या पॉच वर्ष उत्तीर्ण हो तो उसे बधाई देना चाहिये नही तो नहीं । विद्यार्थी जब परीक्षा बैठता का उत्सव नहीं मनाया जाता है पास होने का मनाया 'जाता है | सेवाके लिये चुना जाना तो परीक्षा मे बैठना है । पास फेल तो तब मालूम होगा जब वह कुछ कर दिखायगा । तभी बचाई देने न देने का विचार करना चाहिये। अभी जो बधाई दी जाती है उसका अर्थ यह होता है कि दो उम्मेदवारो का युद्ध ही कर्तव्य है और इसी जीत मे कर्त्तव्य की इतिश्री है । यह तुच्छता तो है ही, साथ ही स्थायी वैर को निमत्रण देना है । यह तुच्छता मन मे आ सकती है पर वह मन मे ही रहे । यदि उसका प्रदर्शन किया जाय और उसमे किसी तरह की शर्म न मानी जाय तो तुच्छता और स्वार्थ पर नैतिकता की छाप लगाना है | S ★ मे बैठने Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश सत्रहवाँ [ ५५ चुनाव के वर्तमान रूप, ने धन को ही भाष्य-अमुक धर्म या अमुक दर्शन को योग्यता का मापदड बना दिया है। जो कुछ पढने पढाने की. मनाई नही है । नि.पक्ष रीतिसे सेवा कर सकते है जिन के त्यागमय जीवन का उनका पठन पाठन चलना चाहिये । परन्तु ऐसी जनता लाभ उठा सकती है उनकी सेवा से साम्प्रदायिक सस्थाएँ भी है जहा अपने धर्म और जनता वचित रहती है और जिनने सेवा की अपने समाज की सर्वोत्तमता का और दूसरे वर्णमाला भी नहीं पढ़ी है वे धन के बल पर सेवा धर्मो और समाजो की निंदा का विष दिनरात के लिये सवार हो जाते है । यद्यपि सर्वथा यह भरा जाता है । इनसे राष्ट्र की और मनुष्यता की बात नहीं है कि धनवान ही सेवा के लिये चुने बडी हानि होती है | में स्वय ऐसी शालाओ का जाते हो और गरीब एक भी न आता हो पर शिकार हू । बीस वर्ष पहिले जैसी मेरी मनोये दोनो बाते अपवाद रूप में होती है अधिकाश वृत्ति थी वैसी मनोवृत्ति को रखकर मनुष्य सत्य मे धन बाजी मार ले जाता है। इस अन्धेर को और प्रेम से कोसो दूर रहेगा । न जाने मुझ मे जितना रोका जा सकता हो रोकना चाहिये। स्वतन्त्र विचारणा का बीज कहा से घुसा पडा था संच सेवक ही आना चाहिये चाहे वे गरीब कि उनने इस पापको दूर कर दिया परन्तु मेरे हो चाहे अमीर । ढेरो साथी उसके शिकार अभी तक बने हुए है । खैर, अल्पसख्यक समाजे. ऐसा विष फैलाकर भी निरतिवाढ म्युनिसपल आदि मे लोकतन्त्र __ अपनी अशक्ति के कारण राष्ट्रव्यापी क्षोभ पैदा चाहता है पर अयोग्य और स्वार्थ-साधुओ से इन नहीं कर पाती परन्तु जरा बडी सख्यावाली समाजे सस्थाओ को बचाये रखना चाहता है। इस प्रकार की कट्टरता के शिक्षण से राष्ट्रमे ऐसा ___पन्द्रहवे और सोलहवे सन्देश के मान्य होने विप घोलती है कि जिन शिक्षितो से शान्ति पर साम्प्रदायिक और जातीय छुट्टियो का झगड़ा प्रेम और सभ्यता की आशा करना चाहिये वे भी तय हो जायगा । सप्ताह मे एक रविवार की अशान्ति द्रुप और असभ्यता की मूर्ति बनजाते हैं। छुट्टी रहे । गर्मी की छुट्टियों रहे । और भी कुछ ऋतु- साधारण लोग जिस समस्या को सरलता से सुलझा सम्बन्धी छुट्टियाँ रहे । स्वतन्त्रता दिवस आदि सकत है उसे वे पढे लिख लोग चिरकाल के लिये की भी छुट्टी रहे । धार्मिक और सामाजिक त्योहारो उलझा देते है । इसलिये ऐसी सस्थाएँ न हो यह की आम छुट्टियाँ बढ रहे । जिसमे किसी को सब से अच्छा । परन्तु अगर हो ही तो वे सरकारयह कहने की गुजायश न रहे कि हमारे सम्प्र- मान्य न समझी जॉय एक सस्थाको जो सुविधाएँ दाय की छुट्टियों नहीं है या कम है तुम्हारे की मिलती है वे इन्हे न मिले । जैसे अधिक हैं । हा, इच्छानुसार उत्सव मनाने के उनकी जमीन मकान आदिपर टेक्स न लिये हरएक नौकर को दस दिन की छुट्टी मिले । लगना, कभी कोशन टिकिट मिलजाना, वहाकी आजकल यहा इस विषय मे काफी अन्याय हो रहा है। परीक्षाको प्रमाण मानलेना, आर्थिक सहायता सन्देश सत्रहवा आदि सुविधाये न मिले । ऐसी सस्थाएँ अमान्य करदी जॉय जो साम्प्र- धर्म और दर्शन के शिक्षण को बन्द करने दायिक या जातीय कट्टरता का पाठ पढ़ाता है। की जरूरत नहीं है। Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 ] निरतिवाद सन्देश अठारहवाँ साधु-सस्थाका का सदस्य सारा ससार नही ___ अर्थोपार्जन की यथाशक्य स्वतन्त्रता हरएक बन सकता और न सावु-सस्था का सदस्य हो मनुष्य को रहे / पर इस क्षेत्रमे जो आदमी किसी जाने से साधुताका निश्चय किया जा सकता है / तरह पिछड जाय उसे भरपेट रोटी देने के लिये / - रोटी देने के लिये क्योकि सस्थाओ मे असावु भी घुस जाते है / साधु काम देना सरकार का काम है। सस्था के अमुक नियमो मे बँधा रहता है / संस्था भाष्य-निरतिवाद की आर्थिक रूप रेखा चाहे तो अमुक वेपको रक्खेगी नहीं तो नहीं भी रखेगी / विस्तार से दीगई है इसलिये अब विशेप भाप्य लिखने की जरूरत नहीं है / साधु-वेप और भी बाहर की चीज है / वहुत सी जगह तो यह भिक्षा मांगने का साधन बना संदेश उन्नीसवॉ हुआ है / साबुवेप की उच्छृखलता के कारण सिर्फ भिक्षा मांगने के लिये कोई साधुका साधु सस्थाकी और साधुता की दुर्गति हो रही है। वेष न लेपावे / रजिष्टर्ड साधुओ के सिवाय कोई / देश मे भिग्वारियो का होना कलक की बात है भिक्षा मागे तो वह दडित हो तथा बेकारशाला मे और इसके लिये साव वेप की दर्गति होना शर्म भेज दिया जाय / जो माधु बनकर भिक्षा माँगना की भी बात है / भीख मांगना बिलकुल बन्द चाहे वह अपना नाम रजिष्टर्ड करावे जिस होना चाहिये और कदाचित वन्द न हो सके तो मे निम्नलिखित बातो का खुलासा हो / उसके लिये साधु वेप का उपयोग कदापि न [1] नाम तथा वशादि परिचय / होना चाहिये / . [2] बौद्धिक तथा अन्य योग्यता / परन्तु इसकी पूर्ति मे अतिवाद आडे आता [3] समाज की और अपनी किस सेवा है। अगर भिक्षा बिलकुल वन्द कर दी जाती है के लिये साधुपद स्वीकार किया / तो सच्चे साधुओ के मार्ग मे वाधा आती है [4] आचार के नियम / अगर बिलकुल छूट रहती है तो सावु वेपवारी [5] वेप की साधारण रूप रेखा / लाखो भिखारियो के बोझ से देश दबा जा रहा है भाष्य-साधु, सावु सस्थाकी सदस्यता, और इस प्रकार दोनो तरफ अतिवाद है / साधुवेप इनतीनो मे अन्तर है / साधु तो वह है यद्यपि ऐसी भी साधु सस्था हो सकती है जो सदाचारी और निस्वार्थ समाजसेवक है | जो जिस क सदस्य भिक्षा न मागे परन्तु भिक्षुक समाज को अधिक से अधिक देकर कम से कम साधुओ की भी जरूरत है भोजन के लिये कुछ लेने की चेष्टा करता है / ऐसा साधु किसी सस्था अर्थोपार्जन सम्बन्धी काम करना और उसके का सदस्य हो भी सकता है नहीं भी हो सकता, निर्माण के लिये भी काम करना, इन दोनो से वह सावु वेप मे या किसी दूसरे वेष मे भी रह सकता साधु को ऐसे लोगो के अकुशमे आ जाना पडता है, वह गृहस्थ भी हो सकता है और सन्यासी भी है जिन को सुधारने के लिये साधु को डटना हो सकता है / सारा संसार अगर ऐसा साधु ही है / परन्तु इससे सावु मे बहुत कुछ दब्बूपन या जाय तो स्वर्ग की नाना कल्पनाएँ भी फीकी पड़ जॉय। दीनता आ जाती है / फिर घरू कामो मे उस Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश उन्नीसवाँ [57 की शक्ति लग जाती है वह रुपयो की थैली के है इस विषय मे नाबालिग है। जो थोडे बहुत बिना परिव्राजक जीवन नहीं बिता सकता इस आदमी प्रयत्न करते है उनके हाथ मे सत्ता न लिये अगर कुछ विशेप योग्यता वाले प्रचारक या होने से कुछ नहीं कर पाते / कभी कभी तो सरजनसेवक भिभा से गुजर कर लेते है तो इस कार उनके मार्ग मे आडे आ जाती है। मानलो मे समाज की कोई हानि नही है। इसलिये एक आदमी बिलकुल निष्परिग्रह साधु बना / पर साधुओ को भिक्षा की सर्वथा मनाई तो नहीं लोगो को धोखा दे कर उनके भोलेपन का उपकरना चाहिये। योग करके उसने रुपये इकठे कर लिये / समाज के परन्त साधवेप की ओट मे जो आलस्य कुछ लोगो ने उसका भडाफोड कर दिया और दुराचार आदि का ताडव होता है उसे बढ करने रुपये छीन लिये, पर सरकार उसके रुपये इस के लिये साधुओ की रजिष्ट्री होना जरूरी है। लिये वापिस दिला देती है कि सरकार की दृष्टि रजिष्ट्री का मतलब उन्हे सरकार का गुलाम बना मे उसे रुपये रखने का अधिकार है / इस प्रकार देना नहीं है पर उनको व्यवस्थित बना देना है सरकार को कानून की गुलामी के कारण न्याय और उनकी उच्छखलता को रोकना है। और जनहित की अवहेलना करना पडती है / . हा, उसकी रजिष्ट्री सीधी नहीं किन्तु कुछ ' कोई साधुवेपी पैसा न रक्खे यह बात नहीं परोक्ष ढग से की जायगी / अर्थात् सामाजिक है पर एक आदमी यह घोपित करके कि मै एक सस्थाओं के हाथ मे उनका रजिष्ट्रेशन रहेगा कौडी भी नहीं रखता---भिक्षा मांगने का अविऔर उन समाजो ने जिस शर्त पर किसी को कार प्राप्त करता है और बदमाशी करके लोगो सावु बनने की अनुमति दी होगी उन गती को ठगता हे पैसे के बलपर वह स्वार्थी लोगो का का भग करने पर अगर कोई उसी समाज का गुट बना लेता है, तो इस ठडी डकैती पर अकुश आदमी सरकार मे अर्जी करे तो साकार उस लगाने में सहायता करना सरकार का कर्तव्य साधु के भिक्षा मागने के हकपर हस्तक्षेप कर होना चाहिये / सकेगी। अगर काई व्यक्ति स्त्री न होकर भी स्त्रीवप आज तो एक आदमी इस प्रतिज्ञा पर साबु धारण करके जन समाज को ठगले जाय स्त्रियोचित बनता है कि मै एक फूटी कौडी भी अपने पास सुविधाएँ प्राप्त करले तो सरकार उसे दड देगी, न रक्खूगा, फिर भी लोगो से ठगकर हजारो रुपये इसी प्रकार कोई पुलिस का वेप बना कर अगर जोडता है और धनवान बनजाता है वह अप- लोगो को ठगले तो दड पायगा नव साधुवेप राध डकेती से कुछ कम नही है। धारण करके अगर कोई जनता को ठगता है तो __ कहा जा सकता है कि उस समाज या वह भी दड क्यो न पावे ? - सस्था को ही उन साधुवेपियो को ठिकाने लाना निरतिवाद साधुसस्थाओ को नष्ट नही चाहिये सरकार हस्तक्षेप क्या करे ? करना चाहता है पर उनको भीख मागने का पर बात यह है कि सारा समाज इन लोगो बवा करनेवाली एक जाति के रूपमे नही देखना की डकेती को नहीं समझ सकता वह तो भोला चाहता। उन्हे समाजके नियन्त्रण मे रखना Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ ] निरतिवाद चाहता है और इस कार्य मे सरकार से भी यथा- पभोग के सुभीते इच्छानुसार मिल ही जाते है योग्य सहयोग चाहता है इसके अतिरिक्त लोगो पैसो के द्वारा नौकर चाकर तथा उनके द्वारा को यह भी सिखाना चाहता है कि किसी को सन्मान मिल ही जाता है अब अगर साथ मे साधु मानने के लिये निम्नलिखित बातो का जनता मे पूजा सत्कार आदर आदि भी मिले विचार करो। सज्जनता की छाप भी मिले, तब लोग धन को ही १-वह पूर्ण सदाचारी है। अपने जीवन का आदर्श क्यो न बनायेगे ? और २-समाज से लेकर अपने लिये धनसग्रह वे धन के आगे ईमानदारी तथा जनहित की नहीं करता। पर्वाह क्यो करेगे ? ३-समाज से जितना लेता है उससे यह निश्चित है कि कोई आदमी ईमानदारी अविक समाज की भलाई करता है। से अधिक धन सग्रह नहीं कर सकता । यह ४-जातिपॉति का पक्षपाती नहीं है और दूसरी बात है कि वह कानूनी अपराध न करे इस न सम्प्रदायो मे द्वेप फैलाता है। प्रकार वाहिरी दृष्टि से वह ईमानदार बना रहे पर ५-लोकसेवा और साध जीवन बिताने की धर्म का जो मर्म है ईमानदारी का जो प्राण है उसको समझदारी रखता है। नष्ट किये बिना अधिक धनसञ्चय नही होसकता। ___ सन्दश बीसवाँ जो लोग बाप दादो के वन से धनवान होते है - धनवान होने से ही कोई भला आदमी या उनमे यह दोप कदाचित न हो पर उनके आदरणीय न समझा जाय । अगर उसने धन बाप दादो मे अवश्य था । तब एक दोपी की ईमानदारी से पाया है और सभ्य है तो भला सन्तान होने से ही किसी का आदर क्यो होना चाहिये? आदमी समझा जाय । अगर उसने वन समाज हित के काम में लगाया है तो आदरणीय समझा अगर हम चाहते है कि लोग वन के लिये जाय । बेईमानी न करे धन को ही अपने जीवन का भाष्य-हरएक धर्म ने धनसग्रह की निन्दा की ध्येय न बनाये तो यह आवश्यक है कि धन का है और जनता भी इस निन्दाका विरोध शब्दो सन्मान करना छोड दिया जाय । अमेरिका की से नही करती। यह निन्दा उचित भी है पर लोगो कुछ प्राचीन जातियो मे अभी भी यह रिवाज है की दृष्टि और लोगो का व्यवहार बिलकुल उल्टा कि कोई आदमी हजार का दान करने से हजारहै । किसी मनुष्य ने किसी तरह धन एकत्रित कर पति की इज्जत पाता है हजार रुपया रखने से लिया तो वह कैसा भी हो और जनसेवा भी न नही । लोकमत जब तक धन के विषय मे विशुद्ध करता हो पर आदर इजत और भलापन उसे मिल न हो जायगा तब तक बढती हुई भौतिकता दूर जाता है । कम से कम वह साधारण गृहस्थसे नही हो सकती । वहुत ऊचा हो जाता है । अगर हम धन के अन्ध- धनवान का अगर आदर करना है तो पहिले प्रशसक या अन्धपूजक बन जॉय तो लोग अन्य से मत करो उसका सदुपयोग देखकर करो । लोकगुणो की अपेक्षा वन पर ही टूटेगे। वन से भोगो- मत अगर इस प्रकार सुधरजायगा तो धनवाला Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदेश इक्कीसवाँ [ ५९ को इस बात मे अपमान का अनुभव न होगा, निरतिवाद न तो धन की अवहेलना करता धन जोडने की लालसा भी कुछ कम हो जायगी है न उसे पुण्य या आदर की चीज समझता है। और धनी होजाने पर जनहित के कार्य मे खर्च धनको समाजहित मे लगाने को ही आदरणीय करने की भी सूझेगी। समझता है। शंका-धनका इतना अपमान क्यो । विद्या सन्देश इक्कीसवाँ कला आदि की तरह यह भी एक शक्ति और सदाचार और विशेप सेवा ही महत्ता और सेवा-साधन है । अगर विद्वान का आदर करते है पूज्यता की निशानी समझी जावे। कलावान का आदर करते है तो धनवान का भाष्य-धार्मिक और सामाजिक दोनो क्षेत्रो क्यो न करे ? मे इस सन्देश को अपनाने की जरूरत है। हमारी समाधान-विद्या कला आदि के आदर उपासना भी इन्ही गुणो के आधार से होना चाहिये । मे भी उसके सदुपयोग का विचार किया जाना राम कृष्ण आदि की पूजा हम इसलिये न करे कि चाहिये । फिर भी धनवान के समान विद्वान आदि वे बलवान थे, सुन्दर थे, श्रीमान् थे, पर इसलिये की उपेक्षा न होना चाहिये । इसका मुख्य कारण करे कि वे सदाचारी थे, त्यागी थे, समाज की यह है कि विद्या कला आदि का सग्रह धन के उनने विशेष सेवा की थी । भयपूजा बिलकुल सग्रह की तरह पापरूप नही है। अधिक धनवान निकल जाना चाहिये । शनैश्चर बडे क्रूर है कहीं बनने के लिये प्राय: दूसरो का हक मारना पड़ता नाराज न हो जाये इसलिये उनकी पूजा करो, इस है पर अधिक विद्वान या कलावान बनने के लिये मान्यता मे अन्धविश्वास तो है ही पर दुर्जनता ऐसा नहीं करना पडता इसमे परिश्रम की ही को उत्तेजन भी है । कोई आदमी शक्तिशाली और मुख्यता है । दूसरी बात यह है कि विद्वान या क्रूर है तो हमे उसकी पूजा न करना चाहिये कलावान अपनी आजीविका के लिये यद्यपि कुछ बल्कि निन्दा और दमन करना चाहिये या उसे लेता अवश्य है पर आजीविका चलने के बाद वह प्रेम आर सवा का पाठ पढाना चाहिये । धार्मिक विद्या कला का उपयोग प्रायः आर्थिक बदले के बिना क्षेत्र मे जो अन्धविश्वास और मूढता प्रविष्ट हो भी करता है । इसलिये धनसग्रह के साथ विद्या आदि गई है वह जाना चाहिये । की तुलना नहीं की जा सकती । हा, धनीका आदर सामाजिक क्षेत्र में भी यही बात होना चाहिये। न करने पर भी दानी का आदर करना चाहिये । हम जिस चीज की पूजा आदर सत्कार करेंगे धन के हाथ मे लोगो के विविध स्वार्थ और जिसको महान समझेगे लोग उसी को अधिक बढाने आशाएँ रहती है इसलिये धनियो को असली नहीं की चेष्टा करेगे। अगर आप सदाचार और जनतो नकली प्रेम आदर तथा चापलूसी मिला ही सेवा की अपेक्षा धन वैभव शक्ति अधिकार के करती है पर लोगो का यह पतन भी यथा- सामने अधिक भुकते है तब यह स्वाभाविक है कि शक्य कम हो ऐसा वातावरण निर्माण होना चाहिये। लोग सदाचारी बनने और जनसेवा की उपेक्षा इस विषय मे यह सन्देश लोगो को नैतिक तथा करके धन वैभव अधिकार आदि के लिये प्रयत्न शास्त्रीय आवार का काम देगा। करे । मनुष्य समाज स्वर्ग और वैकुण्ठ की तरफ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरतिवाद ना बढ़ सकता है जब मनुष्य सदाचारी और जन सेवा के मार्ग मे इनका उपयोग किया जाय । निस्वार्थ-सेवी हो। निरतिवाद न तो इनका विरोधी है न इन्हीं मे आप एक अधिकारी के सामने एक सदाचारी कर्तव्य की इतिश्री समझता है । जनसेवक की उपेक्षा करते हो वैभव और बलके उपसंहार सामने सिर झुकाते हो और प्रेम की पर्वाह नही करत तो इसमे सन्देह नहीं कि आप जगत को निरतिवाद का पहिले विस्तार से आर्थिक रूप बताया गया था पर निरतिवाद के क्षेत्र मे नरक की तरफ लेजा रहे हो। तो धर्म, समाज, राजनीति [राष्ट्रीय और अन्तएक सज्जन ने यह सूचित किया है कि सत्य र्राष्ट्रीय ] सभी शामिल हो सकते है इसलिये इक्कीस और बहादुरी को भी इस श्रेणी में ले लेना चाहिये। परन्तु सदाचार मे सत्य का समावेश होजाता है । सन्देशो का निरतिवादी भाप्य किया गया । इसमे अहिंसा सत्य शील ईमानदारी आदि सदाचार के विश्व की धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि सभी समस्याओ का हल करने का प्रयत्न किया हो नानारूप है इसलिये सत्य को अलग कहने की गया है। आवश्यकता नही है । अथवा अगर कोई सत्य की व्यापक व्याख्या करके सब सदाचार को उसमे यद्यपि इसमे साम्यवाद या समाजवाद का शामिल करना चाहता है तो कोई विरोध नहीं है पर कुछ विरोध किया गया है परन्तु गौर से देखने से साधारण जनता की दृष्टि मे सदाचार शब्द मालूम होगा कि यह समाजवाद की आत्मा का व्यापक है। भारतीय अवतार हैं बल्कि भारत से ही ग्वास बहादुरी को पूज्यता की निशानी मानना सम्बन्ध रखनेवाली एक दो बातो को छोडकर तो ठीक नहीं । बहादुरी का उपयोग जनसेवा के लिये इसका रूप विश्व के लिये उपयोगी है और ऐसा जितने अश मे होगा उतने ही अश मे पूज्यता है जो साम्यवाद की अपेक्षा अधिक समय तक आजायगी सो यह बात धन विद्या कला आदि के स्थिर रह सके। यह पूँजीवादियो को तो असह्य विषय मे भी है । होगा पर पंजीपतियो को असह्य न होगा इसलिये इसका यह मतलब नहीं है कि इन गुणो व्यवहार मे भी जल्दी आसकता है और इसको की अवहेलना होना चाहिये । आवश्यकता सब की व्यवहार मे लाने का क्रम भी बनाया जा सकता है। है पर पूज्यता इनसे तभी मानी जा सकती है जब हा, इसके लिये सगठन करने की आवश्यकता है । Page #65 --------------------------------------------------------------------------  Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AMESEXGV D0GJGNO -2250822520Sa28222825 खत्यभक्त साहित्य - - - सत्यसन्देश [मासिक] सकता है / निरर्थक क्रियाकाडा का वहिप्कार किया गया है / हिन्दी में ही सप्तपदी, प्रदक्षिणा (भावर) हिन्दू, मुसलमान, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी मङ्गलाष्टक, मगलाचरण आदि के सुन्दर पद्य हैं। .. आदि सभी समाजों में धार्मिक और सांस्कृतिक एकता विधि सरल और प्रभावक है। मूल्य एक आना। का सन्देश देनेवाला, शातिप्रद सामाजिक क्रातिका अधिक लेनेवालों को 4 // स सैकडा। विगुल बजानेवाला, मौलिक और गम्भीर लेख, न्यायप्रदीप-हिदी भाषा द्वारा न्यायशास्त्र का रसपूर्ण कविताए, कलापूर्ण कहानिया, सामयिक पूरा ज्ञान करादेनेवाला एकमात्र सरल प्रथ। जो लोग टिप्पणिया और समाचार आदि से भरपूर स्वतन्त्र सस्कृत विलकुल नहीं जानते वे भी इसके मासिक पत्र ।वार्षिक मूल्य 3) नमूना / ) द्वारा न्याय शास्त्र के ज्ञाता हो सकते हैं और सस्रत 1 धर्म-मीमांसा-मल्य चार आना / जाननेवालो को भी इसमे मौलिक और विचारणीय MAD धर्मों की उत्पत्ति, उनका वास्तविक स्वरूप सामग्री है / मूल्य 1) K. और समन्वय कर्तव्याकर्तव्य के निर्णय की कसौटी सर्व-धर्म-समभाव और सर्व-जाति-समभाव को जीवन सत्यसमाज और भावनागीन-भल्य ) // ही मे उतारने की सुन्दर योजना | पृष्ट सख्या 100 / / सत्यसमाज की नियमावलि, सर्व-धर्म-समभावा जैन-धर्म-मीमांसा-(प्रथम भाग) मूल्य एक भावना-गीताका सग्रह / पृष्ठ 32 / रुपया। सत्य संगीत-छप रहा है। धर्म की व्याख्या के साथ जैन-धर्म का सम्बन्ध, म सत्य, भ अहिंसा, म राम, म ऋण, मौलिक ऐतिहासिक विवेचन, महात्मा महावीर के म महावीर, म बुद्ध, म ईसा, म मुहम्मद, भारत जीवन की झाकी, अतिशया की आलोचना, सम्य- माता के विषय में अतिशयोक्ति-रहित सच्ची सर्वक्त्व की असाम्प्रदायिक गभीर और व्यापक व्याख्या, धर्म-समभात्रा प्रभावक कविताओ और दर्जनो भाव'जैन-धर्म-का मर्म' लेखमाला के तीन अध्याय का गीतो तथा भावनाओं का सग्रह / 6 सशोधित रूप | पृष्ठ 340. निरतिवाद- हाथ मे ही है / मुत्य छ आने | विवाह-पद्धति-एक सर्व-धर्म-समभावी विवाह) पद्धति / हरएक धर्मका आदमी इसका उपयोग कर सत्याश्रम वर्धा (सी. पी.) 09028:28:25.2GDRDasgesses KISTAgateageKIReDSearest DASE