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________________ संदेश पाँचवॉ चाहिये पर उसकी इस समर्थता की सीमा बहुत शस्त्रोके उपयोग से समस्या और दूर नहीं है । उसे पुलिस की आवश्यकता पडती जटिल हो जायगी । पशु वल या शस्त्रो का उपहै और सरकार सरीखी सस्था का बोझ भी उसने योग नारी रक्षण आदि नैतिक कार्यों में ही उठाया है । व्यक्ति को जितनी सम्भव है उतनी करना चाहिये ।। शक्ति आत्मरक्षण के लिये पैदा कर लेना चाहिये ६-साधारणतः दल को अहिंसक रहना चाहिये। पर बाद मे पररक्षितत्व आ ही जाता है । खास कर घर के जातीय झगडो मे । पर गुडापन नारी के विषय मे यह बात कुछ अधिक मात्रा मे रोकने के लिये हिंसा का भी उपयोग किया जा है। उसकी अग रचना ऐसी है कि उस पर नर सकता है । का आक्रमण हो सकता है । पशुओ मे भी जहा ७-नारी के विषय मे जो पक्षपात-पूर्ण नर और मादा किसी भी मनुष्य समाज की मनोवत्ति समाज मे घुस गई है वह अवश्य जाना अपेक्षा अधिक स्वतत्र है, नर आक्रमणकारी देखा चाहिये । इसके विपय मे मै विस्तार से अनेक जाता है, फिर मानव समाज मे तो यह बात कुछ वार लिख चुका है। अविक ही होगी । मानव समाज मे नर नारी नारी को सताया जाय और वही भ्रष्ट का कार्यक्षेत्र कुछ ऐसा विभक्त है-और शान्ति समझी जाय इससे बढकर अधेर और क्या होगा। और सुव्यवस्था की दृष्टि से वह बुरा नही है- उसके विषय में हमारी सहानुभति बढना चाहिये कि नारी को कुछ और कमजोर हो जाना पड़ा और साथ ही अपनी असावधानता पर हमे लजित है । किन्तु नारी को अधिक से अधिक बल- होना चाहिये और आक्रमणकारी को दड देना शालिनी तो होना ही चाहिये, जराजरासी बात मे चाहिये । पर होता है इससे उल्टा यह अन्धेर वह पुरुप का सहारा चाहे यह कमजोरी भी जाना चाहिये। जाना चाहिये । फिर भी कुछ न कुछ सरक्षण की रक्षक दल की रूप रेखा और कार्य-क्षेत्र के आवश्यकता तो है ही उसके लिये यह दल विषय मे थोडा बहुत परिवर्तन हो सकता है पर आवश्यक है। हर जगह ऐसे रक्षक दल की आवश्यकता है । ४-दुर्भाग्य से मेले आढमी का रूढ अर्थ स्त्री को न तो पगु बनाना चाहिये न बिलकुल पूंजीपति भी प्रचलित है पर यहा इस अर्थ मे अरक्षित छोडना चाहिये। यह निरतिवाद है। यह शब्द नही है। भले आदमी का अर्थ है सन्देश छट्ठा सज्जन पुरुप, चाहे वह गरीब हो या अमीर । वेढ कुरान पुरान मूत्र पिटक बाइबिल आवस्ता श्रीमान् भी सज्जन होते है और गरीब भी। । अथ साहब आदि किसी भी शास्त्र की दुहाई दूसरों , श्रीमान् भी गुडे होते है और गरीब भी। के अधिकार या सविधाओ मे बाधा डालनेवाली ५-रक्षक दलको सशस्त्र तालीम अवश्य या किमी नो विशेषाधिकार दिलानेवाली न समझा देना चाहिये। यह राष्ट्ररक्षा की दृष्टि से भी उप- जाय । कर्तव्य-अकर्तव्य का निर्णय युक्ति और योगी है । पर शसो का उपयोग सम्हल कर ही अनुभव के आधार पर लोकहित की कसौटी पर करना चाहिये । जहा जातीय दंगे हो वहा कसकर किया जाय।
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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