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अत्या
[ ख ] सामूहिक झगडो को रोकना चार पीडितो को सहायता पहुचाना । [ग] भले आदमियो को सतानेवाले गुडो
का दमन करना ।
निरतिवाद
[घ] आग लगने जल--प्रलय होने या और किसी तरह की आपत्ति आने पर सहायता
करना ।
[ ङ ] नगर को साफ स्वच्छ रखने मे
सहायता करना ।
भाष्य- यहा कुछ सशोधन खडे हुए है१ - क्या गुडो का गुडापन हटाने के लिये उद्योग न करना चाहिये ?
२ - गुडो के पीछे रह कर गुडो को पोसने और उनकी योजना करनेवालो के खिलाफ क्या कुछ न करना चाहिये ।
३ - क्या नारी को अपने शील की रक्षा के लिये ऐसे रक्षक दल पर ही अवलम्बित रहना होगा ?
४- भले आदमी अर्थात् पूँजीपति, गुडा अर्थात् गरीब, उसका दमन ठीक नही ।
५--क्या रक्षक दल को सगस्त्र तालीम न दी
जायगी
६ - दल को अहिंसक ही रहना चाहिये । ७ - जबतक यह साबित न हो कि एक स्त्री अपनी इच्छा से व्यभिचारिणी है उसे वह अत्याचारित ही समझेगातो स्त्री की आत्मरक्षा करने की शक्ति बढ़ सकती है ।
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सूचनाएँ सुन्दर है । यहा मूल सन्देश मे मैने इन बातो पर प्रकाश नही डाला इसका कारण सिर्फ यही था कि मुझे नगर रक्षक दल के सिर्फ कार्य बताने थे । उन कार्यो को करने की परिस्थिति पैदा न हो या क्यों पैदा होती है
आदि बातो पर विचार तो अन्यत्र विस्तार से किया गया है कई बातो पर स्वतन्त्र लेख तक लिख है । फिर भी इन सब बातो का यहा कुछ स्पष्टीकरण करना उचित है ।
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१ - गुडापन हटाने के लिये अधिक से अधिक कोशिश करना चाहिये । उन्हे दु. सगति से बचाना चाहिये सदाचार की शिक्षा देनी चाहिये । उनकी सामाजिक कठिनाइयो को दूर करने का उपाय खोजना चाहिये । पर जबतक ये उपाय नही हुए तबतक रक्षकदल की आवश्यकता है । और परिस्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि बहुत समय तक यह आवश्यकता रहेगी । जब सारा ग्राम ही रक्षकदल बन जायगा तब रक्षक दल की अलग जरूरत न पडेगी ।
(२) गुडो के पीछे रहनेवाले सभ्य गुडो को भी गुडा समझना चाहिये और उनको ठिकाने लाने के लिये भी कोशिश होना चाहिये ।
३ - रक्षक दल होने का यह मतलब नहीं है कि नारी उसी पर अवलम्बित रहे । नारी मे वीरता शक्ति और निर्भयता आना चाहिये उसके लिये भी कोशिश करना चाहिये । वह आततायी के प्राण ले सके और न ले सके तो अपने प्राण दे सके पर अत्याचार को सफल न होने दे, इतनी दृढता प्रत्येक नारी मे होना चाहिये । पर नारी को प्राण देने का अवसर न आवे इसके लिये रक्षक दल का उपयोग है ।
निसन्देह पर - रक्षितत्व से परतन्त्रता आती हैं पर इस प्राणि जगत् मे थोडी न थोडी पररक्षितता और परतन्त्रता अनिवार्य बन गई है । हर आदमी को अपनी रक्षा करने में समर्थ होना