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________________ माम्यवाद अव्यवहार्य [५ बन्धन दासता ही है । इससे देशभर मे दासता अतृप्त रहेगी । अतृप्त रहेगी सो रहेगी पर तृप्त के समान मनोवृत्ति और वैसे' ही कष्ट बढ़ जायेगे। होने की आशा भी इतनी क्षीण हो जायगी कि (ग) इस प्रकार की दासता के साथ थोडा उसे निराशा कहना होगा । यह और कप्ट है। भी काम करना पडे तो वह असह्य होता है और एक आदमी खाने पीने की इतनी पर्वाह नहीं स्वाधीनता के साथ इससे कई गुणा कष्ट भी करता पर यह चाहता है कि मै सारे देश मे सहन हो जाता है। एक दुकान का मालिक या विदेशो मे कुछ समय भ्रमण करू अथवा और सुबह से रातकी दस ग्यारह बजे तक दुकान पर किसी कार्य मे उसकी रुचि है जीविका के लिये आनन्द से बैठ सकता है जितने अधिक ग्राहक भी वह ऐसा ही कार्य चाहता है अथवा अर्थआवे उतना ही अधिक खुश होता है क्योकि सचय द्वारा वह अपनी इच्छा की तृप्ति करना वह अपने को स्वतन्त्र अनुभव करता है । चाहता है पर सरकार के हाथ मे पूर्ण आर्थिक पर नौकर की मनोवृत्ति ऐसी नही होती । वह सूत्र होने से यह बहुत कठिन है। यद्यपि इस थक जाता है घबरा जाता है उसे विवशता का अनु- प्रकार की अतृप्त आकाक्षाये आज भी रहती है भव होता है । जहा स्वेच्छा से नही किन्तु विवशता पर उस समय उनकी मात्रा बढ जायगी तया से दूसरो की आज्ञा मे रहकर काम करना पडता है निराशा तो और भी अधिक । वहा थोडा भी कार्य बोझ मालूम होता है । यद्यपि [च ] यदि प्रत्येक मनुष्य को समान यह परिस्थिति आज भी है और चिरकाल तक साधन मिले वह समान परिस्थिति मे रक्खा जाय उस रहेगी परन्तु आज सौ मे दस आदमियो के लिये के हृदय पर समानरूप मे सस्कार डाले जॉय ता है पर कल सौ मे निन्यानवे के लिये हो जायगी। प्रायः सभी या अधिकाश मनुष्य समान योग्यता यह समाज की अवनति है। के होगे । ऐसी हालत मे निम्न श्रेणी के काम (घ) जब हमारा पेट भी सरकार की करनेवाले अविकाश लोग कहॉ से आयेगे? कोयले मुट्ठी मे पूरी तरह आ जायगा तब सरकार के की खानो मे कौन काम करेगा सडक पर गिट्टी कौन आसन पर बैठे हुए व्यक्ति काफी निरकुश हो कूटेगा खेती आदि कामो के लिये कितने आदमी जायेंगे। अज्ञानवश या स्वार्थवश की गई उन तैयार होगे ? अगर सव को समान साधन न की भूलों का सुधार असाध्यसा, हो जायगा। दिये जाये जिससे निम्न श्रेणी के व्यक्ति भी गिल आज हम कही से भी पेट भर रोटी खाकर उन सके तो यह अन्याय होगा। से लड सकते है पर तब तो पेट उनकी मुट्ठीमे कहा जा सकता है कि ऐसा आज भी तो रहेगा तब उनसे लडना कैसे होगा ? न तो हमे होता है । होता है, पर इससे मनुष्य इतना दग्नी कही से दान मिल सकेगा न हम सचय ही कर नही होता । आज का समाज व्यक्ति से कहता सकेगे तब किस भरोसे जीवित रहकर सरकार है कि तुम अपनी सारी शक्ति लगाकर स्वतन्त्रता का सामना कर सकेगे। से अपना स्थान बनाओ और भाग्य से जो तुम्हे (ड) सारे कारबार सरकार के हाथ मे पैतृक साधन सम्पत्ति मिले उसका भी उपयोग चले जाने के कारण प्रायः सभी मनुष्यो की रुचि करलो इतने पर भी अगर तुम ऊँचे नहीं पहुंचते
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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