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________________ [ ११ निरतिवाद का रूप पर तटस्थता से विचार करता है, वह न तो पूँजी- अन्तर्राष्ट्रीय जटिलताएँ पूंजीवाद का ही फल है । पतियो को शत्रु समझता है न गरीबो को । हा, ६-पूजी लगाकर नफा के नाम पर लूट पूंजीवाद को वह शत्रु समझता है जो कि अमीर मचाने के लिये अनेक अनावश्यक चीजे तैयार की और गरीब सब मे समाया हुआ है इमको नष्ट जाती हैं और उन चीजो को खपाने के लिये जनकरने का वह सन्देश देता है। समाज का अनेक तरह से पतन किया जाता है पूँजीवाद से जो हानियाँ है उसका दिशा- अर्थात् उसे मार्ग भ्रष्ट किया जाता है । जैसे पंजी मूचन करने के लिये कुछ हानियो की तरफ लगाकर युद्ध की सामग्री तैयार करना और उसे सकत किया जाता है। __ खपाने के लिये दो देशो को या दो जातियो को १-एक तरफ धन इतना इकट्ठा हो जाता लडा देना । इसके लिये लोगो मे राष्ट्रीयता या है कि लाखो आदमियो को उसके बिना भखो जातीयता का ऐसा उन्माद भरना जिससे वे दूसरे मरना पडता है। देश को शत्रु समझने लगे और लड पडे, राष्ट्र के २-सम्पत्ति के बदले में जन समाज को सेवा सूत्रवारो को लॉच रिश्वत देकर युद्ध के लिये तैयार नही मिलती । समाज की सम्पत्ति मुफ्त मे ही करना, अज्ञात रूपमे ऐस आक्रमण करा देना बहुत से लोग मार ले जाते है । जिमसे ढो देश आपस मे लड पडे इस प्रकार युद्ध ३-जहा धन इकट्ठा हो जाता है वहा अनु सामग्री खप जाय । और भी इसके अनेक प्रकार त्तरदायित्व, ऐयाशी (वेश्या--सेवन मद्यपानादि) है । मनुष्य को व्यसनी बनाने वाली चीजे तैयार आलस्य, निर्बलता, घमड आदि दुर्गुण पैदा हो __करके मनुप्य का पतन किया जाता है । मानवजाते है और उसके प्रभाव से और भी बहुत जाति की या दूसरे की कुछ भी दशा हो पर पूँजीसे मनुप्यो का पतन होता है बहुत से मनुष्य __ वादी अपनी पूंजी फॅमाकर उससे आमदनी उनके दुर्गुणी कार्यों के भी शिकार बन जाते है । निकालने की कोशिश करेगा। ४-पूजी से धन पैदा करने के लिये बहुत निरतिवाद का रूप से साहूकार लोग भोले प्राणियो को ऋण देकर ऊपर बताये हुए साम्यवाद और पूजीवाद फंसाते है और इस प्रणाली से सैकडो घर तबाह दोनो दो दिशाओ की सीमाएं है। एक आसहो जाते है। मान की इतनी ऊँची चीज है कि जिसे हम पा ५-दूसरे राण्ट पर आक्रमण भी पंजीवाद का नही सकते । अगर किसी तरह उछलकर उसे फल है । जब लोगो को अपने देश मे पॅजी फंसाने छू भी ले तो वहा रह नहीं सकते। हमे गिरना के लिये जगह नहीं रहती या उससे सन्तोपप्रद पडेगा । पूँजीवाद इतना नीचा है कि वहा के लट नहीं हो पाती तब दूसरे देशो पर जाल अन्धकार गर्मी और गदगी से दम घुटता है । फैलाया जाता है । उन पर आक्रमण किया जाता मार्ग बीचमे है । हमे जमीन पर रहना है । न है उनकी स्वतन्त्रता छीनी जाती है लाखो आद- आसमान मे न पाताल मे । निरतिवाद, पूंजीवाद मियो का कत्ल कर दिया जाता है । अधिकाश और साम्यवाद के बीच का स्थान है ।
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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