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________________ कारखाने आदि [ १९ है । इसलिये दिवालिया किसीको न बनाया जाय। सहूलियत दी जायगी । उसमे आगे के लिये व्याज ग-जो आदमी अपने को ऋण चुकाने मे तो माफ कर ही दिया जायगा साथ ही कुछ समअसमर्थ घोपित करे उसके कुटुम्ब की सब संपत्ति झौते के ढग से काम लिया जायगा । सरकार जप्त करले । फिर वह स्त्री के नाम हो ज-समय की अविकता से ऋण नाजायज या पुत्र के नाम हो। न हो सकेगा । समय कितना भी चला जाय ऋण घ-'अगर यह मालूम हो कि ऋणी ने कुछ बना ही रहेगा। सम्पत्ति इसलिये सम्बन्धी या मित्रो के नाम कर झ-जो आदमी ऋणी की सम्पत्ति का दी है कि जिससे वेक या साहुकार उसे ऋण मे उत्तराधिकारी होगा उसे वह ऋण भी लेना पटेगा। ले न सके तो वह सम्पत्ति सरकार जप्त तो नही तो वह सम्पत्ति उसे न मिलेगी। कर ही लेगी। साथ ही दोनो के लिये यह दड ५ कारखाने आदि नीय अपराध समझा जायगा । क-कपडे की मिले, कोयले की खदाने, --ऐसे व्यक्ति को अपना मकान जमीन रेलवे, घासलेट, पेट्रोल आदि, मोटर, साइकिल आभूपण आदि ऋण चुकाने में लगा देना होगा। इत्यादि के कारखाने सरकारी हो और सरकारी और तबतक उसे ऋणशाला मे रहना होगा। प्रबन्ध मे काम करते हो। जबतक वह ऋण न चुक जाये । हा, पत्नी पुत्र आदि के लिये ऋणशाला में जाना अनिवार्य न ख-छोटे छोटे खानगी कारखाने रहे पर होगा । अगर ऋण न चुक पाये तो उसे जीवन उन मे कोई शेयर न ले सके । शेयर की प्रथा भर ऋणशाला मे रहना होगा। ही बन्द रहे। च-ऋणगाला बेकार शाला की तरह एक ग-बीमा कम्पनियाँ और बेक राष्ट्रीय सरऐसी शाला होगी जहा ऋण चुकाने में असमर्थ कार या प्रान्तीय सरकार के हो। व्यक्ति के या लोगो को आकर रहना पडेगा । वेकारशाला की हिस्सेदारी [शेयर-होल्डरो] के बेक ओर तरह उन्हे साधारण खाना मिलेगा और साधारण वीमा कम्पनियों न हो | क्योकि पूजी वढाने की मजदूरी करना पडेगी । अगर उनकी योग्यता मनाई है अगर बीमा का रुपया व्यापार मे लगाया अधिक कमाने की होगी तो इस प्रकार की नौकरी जायगा तो व्यापार मे घाटा आने पर बीमावालो करनेकी सरकार इजाजत दे देगी । अथवा का रुपया मारा जायगा।। जमानत मिलने पर उन्हे व्यापार की सुविधा भी घ-अनेक व्यक्ति मिलकर एक दूकान खोल दी जा सकेगी। उनकी आमदनी मे से उनके सकते है-अयत्रा हलका पतला कारखाना भी भरण पोपण का खर्च निकाल कर बाकी ऋग निकाल सकते है | पर प्रत्येक हिस्सेदार को वहा चुकाने मे लगाया जायगा । ऋण मुक्त होने पर काम करना होगा । सिर्फ पूजी लगाकर कोई उन्हे ऋणशाला से मुक्त कर दिया जायगा। हिस्सेदार न बन सकेगा न व्याज के नाम पर छ-निरतिवादके प्रचारके पहिलेका कुछ ले सकेगा | जो आदमी उसमे काम न अगर ऋण होगा तो उसके चुकाने के लिये कुछ करना होगा और व्याज के लिये पूजी लगायगा
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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