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निरतिवाद
अर्थात्
समाजवाद की आत्मा का भारतीय अवतार
'अति' इधर कही अति उधर कही, 'अति' ने अन्धेर मचाया है । कोई कण कण को तरस रहा, अति- उदर किसी ने खाया है ।
या तो नचती उच्छृंखलता, अथवा मुर्दापन छाया है । 'अति' का यह अति अन्धेर देख, प्रभु निरतिवाद बन आया है ||
प्रणता
श्री दरबारीलाल सत्यभक्त
सस्थापक - सत्यसमाज
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1
कुलपति-सत्याश्रम वर्धा [ सी पी ]
अगस्त १९३८ ई.
मूल्य छह आ
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