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________________ संदेश उन्नीसवाँ [57 की शक्ति लग जाती है वह रुपयो की थैली के है इस विषय मे नाबालिग है। जो थोडे बहुत बिना परिव्राजक जीवन नहीं बिता सकता इस आदमी प्रयत्न करते है उनके हाथ मे सत्ता न लिये अगर कुछ विशेप योग्यता वाले प्रचारक या होने से कुछ नहीं कर पाते / कभी कभी तो सरजनसेवक भिभा से गुजर कर लेते है तो इस कार उनके मार्ग मे आडे आ जाती है। मानलो मे समाज की कोई हानि नही है। इसलिये एक आदमी बिलकुल निष्परिग्रह साधु बना / पर साधुओ को भिक्षा की सर्वथा मनाई तो नहीं लोगो को धोखा दे कर उनके भोलेपन का उपकरना चाहिये। योग करके उसने रुपये इकठे कर लिये / समाज के परन्त साधवेप की ओट मे जो आलस्य कुछ लोगो ने उसका भडाफोड कर दिया और दुराचार आदि का ताडव होता है उसे बढ करने रुपये छीन लिये, पर सरकार उसके रुपये इस के लिये साधुओ की रजिष्ट्री होना जरूरी है। लिये वापिस दिला देती है कि सरकार की दृष्टि रजिष्ट्री का मतलब उन्हे सरकार का गुलाम बना मे उसे रुपये रखने का अधिकार है / इस प्रकार देना नहीं है पर उनको व्यवस्थित बना देना है सरकार को कानून की गुलामी के कारण न्याय और उनकी उच्छखलता को रोकना है। और जनहित की अवहेलना करना पडती है / . हा, उसकी रजिष्ट्री सीधी नहीं किन्तु कुछ ' कोई साधुवेपी पैसा न रक्खे यह बात नहीं परोक्ष ढग से की जायगी / अर्थात् सामाजिक है पर एक आदमी यह घोपित करके कि मै एक सस्थाओं के हाथ मे उनका रजिष्ट्रेशन रहेगा कौडी भी नहीं रखता---भिक्षा मांगने का अविऔर उन समाजो ने जिस शर्त पर किसी को कार प्राप्त करता है और बदमाशी करके लोगो सावु बनने की अनुमति दी होगी उन गती को ठगता हे पैसे के बलपर वह स्वार्थी लोगो का का भग करने पर अगर कोई उसी समाज का गुट बना लेता है, तो इस ठडी डकैती पर अकुश आदमी सरकार मे अर्जी करे तो साकार उस लगाने में सहायता करना सरकार का कर्तव्य साधु के भिक्षा मागने के हकपर हस्तक्षेप कर होना चाहिये / सकेगी। अगर काई व्यक्ति स्त्री न होकर भी स्त्रीवप आज तो एक आदमी इस प्रतिज्ञा पर साबु धारण करके जन समाज को ठगले जाय स्त्रियोचित बनता है कि मै एक फूटी कौडी भी अपने पास सुविधाएँ प्राप्त करले तो सरकार उसे दड देगी, न रक्खूगा, फिर भी लोगो से ठगकर हजारो रुपये इसी प्रकार कोई पुलिस का वेप बना कर अगर जोडता है और धनवान बनजाता है वह अप- लोगो को ठगले तो दड पायगा नव साधुवेप राध डकेती से कुछ कम नही है। धारण करके अगर कोई जनता को ठगता है तो __ कहा जा सकता है कि उस समाज या वह भी दड क्यो न पावे ? - सस्था को ही उन साधुवेपियो को ठिकाने लाना निरतिवाद साधुसस्थाओ को नष्ट नही चाहिये सरकार हस्तक्षेप क्या करे ? करना चाहता है पर उनको भीख मागने का पर बात यह है कि सारा समाज इन लोगो बवा करनेवाली एक जाति के रूपमे नही देखना की डकेती को नहीं समझ सकता वह तो भोला चाहता। उन्हे समाजके नियन्त्रण मे रखना
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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