________________ 56 ] निरतिवाद सन्देश अठारहवाँ साधु-सस्थाका का सदस्य सारा ससार नही ___ अर्थोपार्जन की यथाशक्य स्वतन्त्रता हरएक बन सकता और न सावु-सस्था का सदस्य हो मनुष्य को रहे / पर इस क्षेत्रमे जो आदमी किसी जाने से साधुताका निश्चय किया जा सकता है / तरह पिछड जाय उसे भरपेट रोटी देने के लिये / - रोटी देने के लिये क्योकि सस्थाओ मे असावु भी घुस जाते है / साधु काम देना सरकार का काम है। सस्था के अमुक नियमो मे बँधा रहता है / संस्था भाष्य-निरतिवाद की आर्थिक रूप रेखा चाहे तो अमुक वेपको रक्खेगी नहीं तो नहीं भी रखेगी / विस्तार से दीगई है इसलिये अब विशेप भाप्य लिखने की जरूरत नहीं है / साधु-वेप और भी बाहर की चीज है / वहुत सी जगह तो यह भिक्षा मांगने का साधन बना संदेश उन्नीसवॉ हुआ है / साबुवेप की उच्छृखलता के कारण सिर्फ भिक्षा मांगने के लिये कोई साधुका साधु सस्थाकी और साधुता की दुर्गति हो रही है। वेष न लेपावे / रजिष्टर्ड साधुओ के सिवाय कोई / देश मे भिग्वारियो का होना कलक की बात है भिक्षा मागे तो वह दडित हो तथा बेकारशाला मे और इसके लिये साव वेप की दर्गति होना शर्म भेज दिया जाय / जो माधु बनकर भिक्षा माँगना की भी बात है / भीख मांगना बिलकुल बन्द चाहे वह अपना नाम रजिष्टर्ड करावे जिस होना चाहिये और कदाचित वन्द न हो सके तो मे निम्नलिखित बातो का खुलासा हो / उसके लिये साधु वेप का उपयोग कदापि न [1] नाम तथा वशादि परिचय / होना चाहिये / . [2] बौद्धिक तथा अन्य योग्यता / परन्तु इसकी पूर्ति मे अतिवाद आडे आता [3] समाज की और अपनी किस सेवा है। अगर भिक्षा बिलकुल वन्द कर दी जाती है के लिये साधुपद स्वीकार किया / तो सच्चे साधुओ के मार्ग मे वाधा आती है [4] आचार के नियम / अगर बिलकुल छूट रहती है तो सावु वेपवारी [5] वेप की साधारण रूप रेखा / लाखो भिखारियो के बोझ से देश दबा जा रहा है भाष्य-साधु, सावु सस्थाकी सदस्यता, और इस प्रकार दोनो तरफ अतिवाद है / साधुवेप इनतीनो मे अन्तर है / साधु तो वह है यद्यपि ऐसी भी साधु सस्था हो सकती है जो सदाचारी और निस्वार्थ समाजसेवक है | जो जिस क सदस्य भिक्षा न मागे परन्तु भिक्षुक समाज को अधिक से अधिक देकर कम से कम साधुओ की भी जरूरत है भोजन के लिये कुछ लेने की चेष्टा करता है / ऐसा साधु किसी सस्था अर्थोपार्जन सम्बन्धी काम करना और उसके का सदस्य हो भी सकता है नहीं भी हो सकता, निर्माण के लिये भी काम करना, इन दोनो से वह सावु वेप मे या किसी दूसरे वेष मे भी रह सकता साधु को ऐसे लोगो के अकुशमे आ जाना पडता है, वह गृहस्थ भी हो सकता है और सन्यासी भी है जिन को सुधारने के लिये साधु को डटना हो सकता है / सारा संसार अगर ऐसा साधु ही है / परन्तु इससे सावु मे बहुत कुछ दब्बूपन या जाय तो स्वर्ग की नाना कल्पनाएँ भी फीकी पड़ जॉय। दीनता आ जाती है / फिर घरू कामो मे उस