Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay

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Page 52
________________ निरतिवाद ४८ ] अच्छाई सिद्ध करे परन्तु सस्कृति की दुहाई देकर ऐसा न करे भूषा के विषय मे भी यही बात है । आप जैसा चाहे वेप रक्खे पर रक्खे सुविधा आराम या आदत के नाम पर । अपनी सस्कृति के जुदेपन के नाम पर नही । ३ ख - बहुत सी बाते सर्प पैदा करनेवाली है । मानलो एक देश मे आदमी खुले आम नगे नहाते है । वहा के आदमी यहा के निवासी वन गये । यहा की परिस्थिति के कारण उनको नगे नहाने से कानूनन मना किया गया और उनने अपनी सस्कृति की दुहाई देकर चिल्लाना शुरू किया तो यह ठीक नहीं है । इसी प्रकार नरवलि खुले आम पशुवध या और भी ऐसी बाते जो घृणित या पर- पीडक है उन्हे संस्कृति के नाम पर मढना ठीक नही । - भाषा लिपि आदि के विषय मे उस देश की भाषा और लिपि को अपनाना चाहिये । हा, यह बात अवश्य है कि भाषा दो चार दिन मे नहीं आती । उमर अधिक होने पर उसका सीखना -- अच्छी तरह सीखना - कठिन हो जाता है इस प्रकार असमर्थता के नाम पर कोई देश की भाषा का उपयोग न कर सके तो बात दूसरी है परन्तु अगर नागरिक वनना हो तो अवश्य उसी देश की भाषा सीखना चाहिये । अपनी सस्कृति की दुहाई देकर वहा की भाषा से घृणा या असहयोग न करना चाहिये । हा, उस देश की भाषा या लिपि मे अगर त्रुटि हो तो उसे सुधारने का प्रयत्न किया जा सकता है | अगर ढो मे से किसी एक का चुनाव करना हो तो मै और तू के आधार पर चुनाव न करना चाहिये किन्तु अच्छेपन के आधार पर चुनाव करना चाहिये । भाषा या लिपि के नाम पर अहकार की पूजा करने मे कुछ लाभ नही है अगर हमारी भाषा या लिपि मे कुछ खरबी है तो वह हमे भी तो अडचन उपस्थित करेगी। झूठे अहकार के कारण सैकडो वर्षो के लिये वह अडचन वनाये रखने मे कौनसी बुद्धिमानी है । जो वयस्क है उनकी बात जाने दे शायद वे नई भाषा या लिपि ग्रहण न कर सके पर जो बच्चा पैदा होता है वह तो कोरे कागज के समान है उस पर जो पहिले लिख दोगे वही लिख जायगा । उसे क्यो अहकार का शिकार बनाया जाय। जो अच्छी लिपि या भापा देश के लिये उपयोगी और काम चलानेवाली हो वही सिखाई जाय । एक पीढी वाद सारा सघर्ष दूर हो जायगा और कोई अडचन न रहेगी । I यहा राष्ट्रभाषा और राष्ट्रलिपि का प्रश्न भी जटिल बना हुआ है । जिस में भाषा का प्रश्न तो व्यर्थ सा है । जिसे हम हिन्दी कहते है जिस का दूसरा नाम खडी बोली है उसमे हिन्दुओ की अपेक्षा मुसलमानो का हाथ वहुत है । वल्कि गावो मे तो उसे अभी भी मुसलमानी भाषा कहते हैं । बुंदेलखंड के गावो मे जब कोई शुद्ध हिन्दी या खडी बोली बोलता है तब लोग यह कह कर निंदा करते है कि अब तू तुडकी-तुर्कीमुसलमानी सीख गया । पर वही तुडकी आमतौर पर लिखी जाती है । उस तुडकी-शुद्ध हिंदीखडीवोली मे भारत के बाहर के बहुत से शब्द मिलकर आम लोगो के पास पहुँच गये हैं । उनको निकालने की जरूरत नहीं है बल्कि और भी जो नये शब्द जरूरी हो उनको अपना लेने की जरूरत है । परन्तु जान बूझकर सस्कृत या अरबी फारसी के कटिन शब्द ठूसना

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