Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay

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Page 51
________________ संदेश वारहवा [४७ भाष्य-जिस समय वह सुवर्ण युग आ भी बन गया है । इन सब बातो को हम तीन जायगा जब राष्ट्रीयता की भी सीमाएँ नष्ट हो श्रेणियो मे बाट सकते है। १ नैतिक २ अनैजॉयगी तब की बात दूसरी है परन्तु जब तक ये तिफ ३ तटस्थ । तटस्थ की भी दो श्रेणिया होगीहै तक तक यह सन्देश उपयोगी है । क-जिन का दूसरा से कोई सर्प नहीं है। ___ यहा यह बात ध्यान मे रखने की है ख---जो सघर्ष पैदा करनेवाली है। कि जो लोग सैकडो वर्षों से जहा बसे हुए है १-स्त्रियो का सन्मान करना माता पिता उनको अपने घर लौटाना नही है | उनका घर का आदर करना शाकाहारी होना आदि नैतिक तो अब वही है जहा व सकडो वर्षों से बसे हुए है। सस्कृतियों है । इनके दावा करने का कोई विरोध पर हा, अगर उनमे से कोई यह मानता हो कि नहीं किया जा सकता । और न किसी देश मे जहा हम बसे हुए है वह हमारा देश नही है, जाने पर इनका निपेध ही किया जा सकता है। हमारा देश तो वही है जहा से हमारे पूर्वज आये अगर किसी जगली देश मे हम पहुँच जॉय जहा थे तो ऐसे आदमी को बसे हुए देश मे नागरिक लोग माँ बाप को मार डालते हो या वेच देते हो अविकार नहीं दिये जा सकेगे । जो आदमी जिस तो हमारा कर्तव्य इस अनेतिक सस्कृति को अपदेश का नागरिक बनना चाहता है उसका फर्ज नाना न होगा। है कि वह उस देश को सब से अधिक प्यार करे अथवा विश्वबन्धुत्व की भावना तीव्र हो गई हो २-इसी प्रकार अगर हमारे मे कोई उपर्युक्त तो ससार के समस्त देशो को बराबरी की नजर अनैतिक सस्कृति हो और हम ऐसे देश मे जॉय से देखे । मुख्य बात यह कि जो जहा का नाग जहा ऐसी अनैतिक सस्कृति न हो तो उस देश रिक हो वह वहासे अधिक किसी दूसरे देश को के नागरिक बनने के लिये हमे उस अनैतिक प्यार न करे । अगर वह व्यवहार मे इस भावना सस्कृति का त्याग कर देना चाहिये ।। को नहीं बताता है तो वह सिर्फ यात्री की तरह ३ क-इस श्रेणी मे वेप भूफा खानपान रह सकेगा नागरिक की तरह नहीं। आदि का समावेश होता है। खानपान पहिरने , हा, इसमे सन्देह नही की बाहर के नये ओढने की मनुष्य को स्वतन्त्रता होना ही चाहिये नये प्रभावो से सस्कृतियो की सुन्दरता और उप- परन्तु इस मे दो बातो का खयाल अवश्य रखना योगिता बढ़ती है इसलिये सस्कृतियो का बहि- होगा कि हमारी यह स्वतन्त्रता सामूहिक हित मे प्कार नही किया जा सकता पर सस्कृति के दावा आडे न आवे । मानलो किसी आदगी को शराब की मनाई अवश्य की जा सकती है। अच्छी बात पीना है और उस देश के लोग शराब को स्वास्थ्यका प्रचार अच्छेपन के कारण होना चाहिये नाशक धननाशक आदि होने से बढ कर देना सस्कृति के नाम पर नहीं। चाहते है ऐसे समय मे सस्कृति की दुहाई देकर सस्कृति शब्द का जो मूल अर्थ है उसका उस देश की प्रगति मे बाधक नहीं होना चाहिये। तो किसी से विरोध नही है । परन्तु सस्कृति का अगर आपको उस मे अच्छाई मालूम होती है तो अर्थ रहनसहन तथा और बहुत से रीतिरिवाज आप युक्ति और अनुभव के आधार पर उसकी

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