Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay

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Page 27
________________ [ २३ अब और यहां वनने की अपेक्षा दानशील बने इसके लिये दानियो (२) धनसंग्रह पर रोक को विशेष उपाधियो का देना आदि बहुत सी छोटी इस विषय की भी सभी बाते आज व्यवहार वडी बाते है जो देशकाल देखकर प्रचलित की में आने योग्य है। जॉयेंगी । यहा तो निरतिवाद को समझने के लिये (३) व्याज हराम सक्षिप्त रूप-रेखा रखदी है । परिस्थिति के अनुसार क-मूल योजना तक पहुँचने के लिये इसमे परिवर्तन भी हो सकता है। पंद्रह वर्ष का समय निश्चित किया जाय । पहिले - अब और यहां पाच वर्ष तक बेकोसे प्रति वर्ष २) सैकडा । इस के आगे पाच वर्ष तक १॥) सैकडा । इसके निरतिवाद का जो रूप यहा बताया गया । का आगे पाच वर्ष 1) सैकड़ा ब्याज मिले बादमे है वह कोरा आदर्श नहीं है वह एक व्यावहारिक ___ व्याज देना बिलकुल बद हो जाय । योजना है । पर उस व्यावहारिक योजना को भी अमल में लाने के लिये समय चाहिये । प्रत्येक ख, ग,-मूल योजना की तरह अब और देश की परिस्थिति ऐसी नही होती कि जो एक यहा भी व्यवहार मे लाये जा सकते है । दम निरतिवाद के रूप में बदल जाय । यद्यपि घ-इसमे ब्याज की दर मे परिवर्तन करना निरतिवाद के प्रचार के लिये पूरी नही तो आशिक होगा । जब बेक पन्द्रह वर्ष के तीन भागो मे २) १) ॥) व्याज ढेगे तब उन्हे लोगो से कुछ क्रान्ति की आवश्यकता है फिर भी निरतिवाद इस अधिक लेना होगा। इसलिये पहले पाच वर्ष मे ३) ढग से काम करना चाहता है कि लोगो को कम से कम झटका लंगे। सैकडा प्रतिवर्प, दूसरे पाच वर्ष मे २१) सैकडा तीसरे पाच वर्ष मे २) सैकडा । । ___मै भारत की वर्तमान परिस्थिति को देखते खानगी बेको को भी ब्याज की इसी दर हुए कुछ ऐसा कार्य निश्चित करना चाहता हू जो . का पालन करना चाहिये । और पाच वर्ष मे बेक कुछ शीघ्र व्यवहार मे लाया जा सके । दूर तोड देना चाहिये । बेक की पूँजी शेयर-होल्डगे भविष्य में पूरा निरतिवाद प्रयोग मे आ ही जायगा मे बॉट देना चाहिये । किन्तु उसके बीच का विश्राम--स्थान कैसा हो ऊ-मूल योजना की तरह । इसी का यहा वर्णन करना है। (४) ऋण चुकाना अनिवार्य निरतिवाद की योजना में बहुत सी बाते तो इसके क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, ऐसी है जिन पर आज भी पूरा अमल करना है। झ. विषय तो मूल योजना की तरह अब और यहा परन्तु कुछ वात ऐसी है जिन पर समझौते की भी रहेगे । छ के विषय मे कुछ स्पष्टीकरण दृष्टि से कुछ परिवर्तन करना है । यह है--- (१) बेकार-शाला पुराना जो ऋण है उस पर तब से अबतक . इस विषय की सभी बाते आज भी व्यवहार मासिक चार आना सैकडा व्याज लगाया जाय मे आने लायक है। और बीचमे अवधि समाप्त होन के डरसे नालिश

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