Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay

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Page 37
________________ संदेश दूसरा [ ३३ करना चाहिये न कि जाति का, छूताछूत के सकते । प्रतीक बदल सकता है । मूर्ति न होगी विचार मे सक्रामक रोगो या गदकी से बचने नेता की कब होगी राष्ट्रीय झडा होगा । सच्चे का ही विचार करना चाहिये न कि जाति का, समाज सेवको का आदर जनता के दिल से कैसे यह त्रिसत्री सर्व-जाति-समभाव की सूचक है। निकल जायगा ! अगर निकल जाय तो इससे लाभ इस मे निरतिवाद की भी रक्षा हुई है । जाति के क्या ? समाज सेवको को जीवन भर और कुछ नाम पर जो कल्पनाएँ है वे एक अति है और आराम तो मिलता नहीं है मरने के बाद-और थोडा जाति तोडने के नाम पर शुद्धि, स्वच्छता अनुकू- बहुत जीवन मे भी-लोग उन्हे याद करेगे यही एक लता आदि का विचार न करना दूसरी अति आगा का तन्तु उनको कठिनाइयो मे टिकाये है । निरति मध्य मे है । रहता है । यह नष्ट हो जाय तो उनको सहारा सन्देश दूसरा क्या रहे और जनता मे भी कर्तव्य की प्रेरणा कैसे सभी मनुष्य सर्व धर्म समभावी हो किसी हो । सो धर्म के जो आदर भाक्त आदि अग है धर्म सस्था मे विशेप रुचि रखना व्यक्ति की इच्छा वे नष्ट नही हो सकते न होना चाहिये । धर्मों पर निर्भर रहे पर उस सम्प्रदाय मे किसी का के नेता या सस्थापक अपने समय के सामाजिक ऐसा अन्धानुराग न रहे कि दूसरे सम्प्रदाय का क्रान्तिकारी है । धर्म भी एक सामाजिक वस्तु है। आढर नष्ट करदे । उन समाज-सेवको का हमे आदर करना चाहिये। __ भाष्य--इस विषय मे भी अतिवाद फैला और जब साधारण जनता आदर रखती है तब हुआ है । एक दल वर्मोकी अन्धनिन्दा करता ऐसे शुभ कार्य मे उसके साथ सहयोग करके हम है और सब अनों की जड इन्हे ही समझता जनता के निकट मे क्यो न पहुँचे ? हा, उन है । दूसरा दल अपने किसी वम से इस प्रकार धर्म-प्रवर्तको को आप अलौकिक व्यक्ति या ईश्वर चिपटा हुआ है कि अपने धर्म मे आय हुए न मानिये । लोक सेवक महात्माओ के रूपमे ही विकार भी वह नहीं देखना चाहता और उन उनका आदर कीजिये । उनके विषय मे विकारो को भी धर्म समझता है और अन्य वर्मो जो अन्वश्रद्धा-पूर्ण कथार और अतिशयोक्तियाँ को दभ, नरक का रास्ता मानता है। दूसरो को प्रचलित है उनको न मानिये बल्कि उनका विरोध नास्तिक काफिर मिथ्यात्वी आदि कहकर तिर- कीजिये । ईश्वर की सत्ता भी आप मानना चाहे स्कार करता है । निरतिवाद इन दोनो अतिवादो माने न मानना चाहे न माने, पर यह अवश्य को पसद नहीं करता। . मानिये कि मानव जीवन के लिये नीति-सदाचार धर्म-विरोधियो से वह कहना चाहता है कि की आवश्यकता है और इसका प्रचार करनेवाले धर्म का नाश नही हो सकता वह किसी न किसी जन सेवक आदरणीय है। बस, धर्म का मानना रूप मे जीवित रहेगा उसका नाम भले ही बदल हो गया। धर्म के नाम पर चलनेवाले ढकोसलो जाय । उसका प्राण नैतिकता और सदाचार है का आप खूब विरोध कीजिये। वह नष्ट नहीं हो सकता न होना चाहिये । भक्ति अन्ध-श्रद्धा और धर्ममद को लेकर जो अतिआदि जो उसके बाह्य अग है वे भी नष्ट नहीं हो वादी बने हुए है उनसे कहना है कि जैसे आपका

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