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संदेश पाँचवाँ मे कोई भावना व्यक्त होती है तो वह मूर्ति ही है। स्मारक ही रखना है तब उनमे मूर्तियॉ सर्वोत्तम है | उसकी पूजा किसी जड पिंड की पूजा नही है २-एक धर्म पूजने मे भी कोई विशेष बुराई न उसमे जड पिंड का गुणानुवाद किया जाता नही है अगर कदाचित मानली जाय तो भी सव है वह तो किसी आदर्श की पूजा है । हो सकता धर्म पूजने मे बुराई नही हो सकती । एक धर्म है कि किसी महात्मा को उस सहारे की आवश्य- पूजने मे मनुष्य का हृदय सकुचित अन्धश्रद्धालु कता न हो तो वह उसपर उपेक्षा करेगा परन्तु जन- अहकारी हो सकता है जब कि सब धर्म पूजने मे साधारणके लिये तो अवश्य चाहिये । मूर्ति न रखने ये दोप निकल जाते है । विविधता मे जब समता से एक तरह की मूर्ति विरोधी कट्टरता पैदा होती देखने की उदारता आजाती है तव विवेक आही है । मूर्ति-पूजक तो मूर्तिशून्य स्थान मे भी जा जाता है । हा, सब धर्म की सभी बाते मानने सकता है मूर्ति का विरोधी मूर्ति के सामने जाने की जरूरत नहीं है, विवेकपूर्वक सभी मे से मे भी अपमान समझता है । समभाव के लिये अच्छी अच्छी बातो का चुनाव करलेना जरूरी है। यह कट्टरता घातक है।
३--धर्मालय मे सुबह शाम प्रार्थनाएँ होगी । ___ अगर हम धर्मालय मे सभी धर्मों का कोई समय समय पर समभावी व्याख्यान होगे । पुस्तन कोई स्मारक न रक्खेगे तो सर्व-धर्म-समभाव कालय वगैरह की योजना भी की जा सकती है। पटाने के लिये और सभी धर्मो के वर्मस्थान के और भी सामूहिक कल्याण के कामो मे धर्मालय विषय मे आदर पैदा करने के लिये हमारे पास का उपयोग किया जा सकता है। कोई अवलम्बन न रह जायगा । हमारे मनमे
___अभी योजना कठिन मालूम होती है पर मन्दिर आदि स्थानो से घृणा ही रहेगी । यह दो चार जगह प्रारम्भ हुआ कि यह बात सावारण घृणा जाना चाहिय । अगर मृत्ति का हम अक्सास हो जायगी । सत्यसमाज ऐने वालयो के नमूने न होगा तो हम हिन्दू मन्दिर, जैन मदिर, बोद्ध ,
होगा तो हम हिन्दू मान्द, जन मादर, वाई बनाना हो चाहता है। मन्दिर, गिरजाघर (रोमन के यालिक) मे आदर के साथ कैसे जॉयगे । हमारे हृदय मे इनके लिये
संदेश पाँचवॉ जगह न रहेगी यह वासना द्रुप और घृणा के प्रत्येक नगर और गाव में एक रक्षक दल वीज का काम करेगी।
हो जिसमे सभी सम्प्रदाय और जाति के लोग एक बात और है। अगर वर्मालय मे किसी शामिल हो । जातीय और साप्रदायिक प्रतिनिधित्व धर्म का कोई स्मारक न हो तो वह योडे रखने वाले लोग उसमे शामिल न हो। इस दल से सुधारको की चीज रह जायगी । न तो उस के काम निम्नलिखित हो । स्थान के विषय मे साधारण जनता के दिल मे [क] कोई पुरुष किसी नारी को न छेड पवित्रता का भाव होगा न किसी को उसमे सके । नारी कहीं गय तो वह अनुभव कर सके आत्मीयता पैदा होगी । वह एक साधारण टाउन- कि वहा मेरे शील और इज्जत की रक्षा होगी। हॉल बनकर रह जायगा । सर्व-धर्म-समभाव के हरएक वर्म और हरएक जाति का मनुष्य उसका लिये उसमे स्मारक रग्वना आवश्यक है और जब रक्षक है ।