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निरतिवाद अनिरिक्त ) आदि तो सम्पत्ति है ही।
सकता । विक्रय करने के आगय से बहुत अधिक उपर्युक्त दस तरह की चीजो के सिवाय लाख रक्खेगा तो वह सम्पत्ति मे गिन लिया जायगा। रुपये तक की सम्पत्ति एक कुटम्ब को रखने सजावट की चीजे या और भी ऐसी वस्तुओं का का अविकार रहे । बाकी सम्पत्ति का आवा या अधिक सग्रह करे तो इससे शिल्पकार आदि को दो तृतीयाश सरकार ले ले।
काम मिलेगा । बेकारी यो ही दूर हो जायगी। शका (१)-एक लाख रुपये की सीमा बहुत कुटुम्बियो मे वन का विभाग कर भी लिया अविक है । इसके अतिरिक्त दस तरह की चीजो जाय तो भी अच्छा है । कम से कम इससे बहुत की जो छट दी गई है उसके बहाने तो और भी . व्यक्तियो के पास तो सम्पत्ति पहुंचेगी। इस दृष्टि कई लाख रुपये की सम्पत्ति हजम की जा सकेगी से सम्पत्ति का जितना विभाजन हो उतना ही इसके अतिरिक्त कुटम्बियो मे धन का विभाग करके अच्छा है। भी कई लाख की सम्पत्ति लाख के भीतर शंका-[२] सरकार को देने के लिये अधिक बताई जा सकेगी।
सम्पत्ति कोई अपने पास रक्खेगा क्यो ? वह दान समाधान-दुरुपयोग होने पर भी आखिर कर देगा रिश्तेदारो और मित्रो मे वितरण कर देगा। सीमा रहेगी । और इतना नियत्रण काफी है। समाधान-दान कर दे तो अच्छा है ही। वर्तमान के श्रीमानो का नियत्रण भी हो जायगा इससे वह वन समाज में फैलेगा ही। अगर रिश्तेऔर कुछ बेकार-शालाओ के सचालन के लिये दारो मे वितरण कर देगा तो भी सम्पत्ति का भी सरकार के हाथ मे जायगा । आज के बडे २ विभाजन होगा । और धीरे धीरे वह सम्पत्ति समाज श्रीमानो को एकदम लूट लेना एक तरह का मे फैल जायगी। अन्याय है। उत्तराविकारित्व के समय उनकी शंका [३]-जो चीजे भोगोपभोग की सामग्री सम्पत्ति को इस तरह धारे वारे कम करने से समझ कर सम्पत्ति नहीं ठहराई गई है अगर कहाउन्हे भी न खटकेगा और बेकारी हटाने के लिये चित् उन्हे बेचना पडे-जीवन निर्वाह भी धन मिल जायगा।
के लिये ही उनका बेचना आवश्यक हो जाय तो भोगोपभोग के साधनो के रूप में अगर कोई वह क्या करे ? ___ लाखो की सम्पत्ति रख भी ले तो भी जनता की समाधान-ऐसी परिस्थिति मे वह सरकार
विशेप हानि नही है । बल्कि वह सम्पत्ति भोगो- की अनुमति लेकर बेच सकेगा । पर इस हालत पभोग के सावनो को खरीदने मे लगायगा इसलिये मे उसकी सम्पत्ति एक लाख रुपये से अधिक न उन सावनो को तैयार करने वाले लोगो को काम होना चाहिये । मिलेगा इस प्रकार बेकारी दूर करने में सहायता शंका [४]-रुपया तो भारत का सिक्का है । मिलेगी । भोगोपभोग के सावनो मे जीवन की भारत की आर्थिक दशा के अनुरूप यह मर्यादा आवश्यक सामग्री कोई अधिक नही रख सकता । उचित कही जा सकती है पर दूसरे देशो के लिये अन्नका सग्रह तो अधिक करके कोई क्या करेगा न तो यह मर्यादा ठीक हो सकती है और न क्योकि अन्न बहुत अधिक तो खाया नहीं जा वहा रुपये का चलन ही है ।