Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay

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Page 14
________________ निरतिवाद १०] १ - अगर इस आशय से सम्पत्ति का सग्रह करता है कि भविष्यमे अपना जीवन - - निर्वाह करते हुए बिना किसी बदले के समाज-सेवा करूँगा । समाज पर अपने जीवन-निर्वाह का वोझ कम से कम डालूगा या न डालूगा । सग्रह की हुई सम्पत्ति समाजके काम मे लगा दूंगा और मरने के बाद समाज को दे जाऊँगा । २ - सन्तान के शिक्षण और नाबालिग अवस्था मे उसके पोपण के लिये जितनी सम्पत्ति आत्रश्यक है उतनी सम्पत्ति उत्तराधिकारियो को छोड कर बाकी सम्पत्ति दान कर जाऊगा और जीवन मे भी समय समय पर दान करता रहूगा । ३ - पूर्वजो से उत्तराधिकारित्व मे पर्याप्त धन मिला है इसलिये धन रखता है। धन बढाता नही है । जितना धन बढाता है उतना दान I मे और उचित भोग मे खर्च कर देता है । और मूल धन भी दान मे लगाता रहता है । ४ - मूलवन खर्च नही करता किन्तु आमदनी सब खर्च डालता है । इन चारो श्रेणियो के पूँजीपतियो के लिये यह आवश्यक है कि उनका पैसा कमाने का ढंग गैर कानूनी न हो। न कानून का दुरुपयोग किया गया हो । जूआ सट्टा आदि का भी सबध न हो । इस प्रकार के पूँजीपति या धनवान पूँजी - वादी नहीं कहे जायँगे । निरतिवाद ऐसे पूँजी - पतियों का विरोध नहीं करता। खासकर पहिली और दूसरी श्रेणी का । तीसरी और चौथी श्रेणी को भी वह सह सकता है । जिस प्रकार पूजीपति होकर भी पूँजीवादी होना आवश्यक नही है उसी प्रकार पूजीवादी होकर भी पूजीपति होना आवश्यक नहीं है । गरीब होकर के भी मनुष्य पूँजीवादी हो सकता है । पूजीपति सौ मे दो चार ही हो पर पूँजीवादी सौ मे निन्यानवे होते है या हो सकते है । एक मजूर चार छ. आने रोज कमाता है इससे उसकी अच्छी तरह गुजर नही होती पर चार पैसे सट्टेके दाव पर लगाता है तो वह पूँजीपति न होकर के भी पूँजीवादी है । एक मजूर अपने पडौमी को एक रुपया देता है और महीने के अत मे एक रुपये का व्याज भी लेता है तो वह पूँजीवादी है । गरीब होने से हमे यह न समझना चाहिये कि यह पूँजीवादी नही है या असयमी नही है । गरीब हो या अमीर सभी किमी न किसी मार्ग से धन पैदा करना चाहते है, न्याय और अन्याय की किसी को पर्वाह नही है ( इनेगिने महात्माओ को छोडकर ) अगर पर्वाह हैं तो सिर्फ इतनी कि कानून के पंजे मे न फॅस जॉयँ । भिखमगा भी चाहता है और करोड पति भी चाहता है कि सारी सम्पत्ति मेरे घर मे आजाय और वह किसी भी तरह आ जाय । ऐसी हालत मे सभी पूँजीवादी है । और पूँजीवाद जब पाप है तब वे पापी भी है । जिनके पास पूँजी है वे पापी है और जिनके पास पूँजी नही है वे धर्मा है ऐसा समझने की भूल कदापि नही करना चाहिये । यह तो भाग्य की -- अकस्मात् की बात समझना चाहिये कि किसी के पास धन है और किसी के पास नही है । जिनके पास धन है न तो वे सयमी है। जिनके पास वन नही है न वे सयमी है । इसलिये धनवान और गरीब सब पर एकसी दृष्टि रखना चाहिये | धनवानो को विशेप पापी समझने का कोई कारण नही है । विशेप पापी धनवानो मे भी है और गरीबो मे भी है और अनुपात भी उसका वरावर है । निरतिवाद दोनो की परिस्थिति

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