Book Title: Navsuttani
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1215
________________ भत्त-भव २२१ भत्तु (भर्त) दसा० ६।२।१८; १०।२५,२६ भदंत (भदन्त) नि० १०१ से ४ ।। भद्द (भद्र) उ० १।३७; ६।१६; २२।१७,३७, __नं० गा० ३,४,६,८,१०,११. दसा० १०।१०. प० ७३ ७४,११२,१२६,१६५ भद्दग (भद्रक) द० ५।१३३, ८।२२ भद्दगुत्त (भद्रगुप्त) प० १९६ भद्दजस (भद्रयशस्) प० १६६,१६६ भद्दत्ता (भद्रता) उ० २६।२४ भद्दबाहु (भद्रबाहु) नं० गा० २४ भद्दबाहुगंडिया (भद्रबाहुकण्डिका) नं० १२१ भद्दय (भद्रक) प०७३,२२२१४ भद्दवय (भाद्रपद) उ० २६।१५ भद्दवया (भाद्रपदा) अ० ३४१।३ भद्दा (भद्रा) उ०१२।२०,२४,२५. दसा० १०॥१८. प०७३,७४,११२ भद्दासण (भद्रासन) दसा० १०।१४. ५० ५, __ ३७,३६,४२,४५,५० भद्दिज्जिया (भद्रीया, मद्रीयिका) प० १६६ भद्दिया (भद्रीया) प० ८३ भम (भ्रम) प० ३१ भिम (धम्)-भमइ उ० २५४३९. --भमिहिसि उ० २५३६ भममाण (भ्रमत्) प० ३१ भमर (भ्रमर) द० ११२,४. उ० २२।३०; ३६।१४६. अ० ७०८१५. प० २४,२५,३० भमली (भ्रमरी) आ० ५।३ भमुगरोम (ध्र रोमन्) नि० ३।६५; ४११०३; ६।७४, ७।६३, १११६०; १५।६२,१४८; १७।६४,११८ भमुह (5) प० २६१ भमुहक्खेव (भ्र क्षेप) अ० २६६ भय (मय) आ० ६।११. ८० ४ सू० १२, ६।११; ७१५४; ८।२७,५३; १०।११,१२. उ०१।२६; ५।१६, ६।६।६।५४; १४।२,४,५१, १५।१४; १८६; १६।४५,४६,६१,२१।१६; २२।१४; २४१६; २५।२१,२३,३८, ३२।१०२. नं० गा० ३९. अ. ३१३. दसा० ५७।५. प० ५८,६७,७४,७६ अभय (भज)–भएज्ज द० ८.५१. उ०२१२२२. -भयइ उ० १११११.-भयाहि उ० २२।३७ भयंकर (भयङ्कर) उ० २३६४३ भयंत (भदन्त) उ० २०११ भयगभत्त (भृतकमक्त) नि० ६६ भयट्ठाण (भयस्थान) आ० ४१८. उ० ३११९ भयणा (भजना) नं० ६६ भयमाण (मज्यमान) दसा० ५।७।४. ५० ५८ भयय (भृतक) व०६५ से ८ भयव (भगवत्) उ० ६।२,४,१२, २३।८६. नं० गा• १. दसा० ८।१. ५०१ भयसण्णा (भयसंज्ञा) मा० ४८ भयावह (भयावह) उ० १९९८; २११११ भर (भर) नं० गा० १६; सू० ३८।५. अ० ३१६. प०२२ भिर ()-भरिज्जसु नं० १८.- भरिज्जिहिइ अ० ५८६.-भरिहि नं० ५३ भरणी (मरणी) अ० ३४१३३ भरह (भरत) उ०१८।३४,४०. नं० १८.५,६६. अ० ३६६,५५६,६१५. दसा० १०११८ भरहवास (भरतवर्ष) उ० १८१३५ भरहसिल (भरतशिल) नं० ३८।३ भरिय (भरित) नं० गा० ४. अ० ३१५,४२२, ४२४,४२६,४३१,४३६,४३८,४३६,५८६. दसा०१०।१४. प० २२२१८ भरेउं (मर्तुम् ) उ० १९४० भल्लायय (भल्लातक) नि० ६।१४ से १८ भल्ली (भल्ली) उ० १९५५ भव (भू)-भवइ उ० २०।१५. नं० १२६. अ० १४. दसा० १२३. प० २३३. व०६।३५. -भवउ प०७४.-भवंति द. १३५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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