Book Title: Navsuttani
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
३०८
सुप्पिय-सुयमुह
सुप्पिय (सुप्रिय) उ० १११८ सुबद्ध (सुबद्ध) प० २२ सुब्भि (सु) उ० २६।२७. नि० २।४२ सुब्भिगंध (सुगंध) उ० ३६।१७. अ० २५६,२६३,
सुभ (शुभ) आ० ३३१. अ० २८२. दसा० ७।३५.
प० २१,२६,२९,३५,११६ सुभग (सुभग) प० १५,२४ सुभद्दा (सुभद्रा) प० १७१ सुभनाम (शुभनामन्) अ० २८२ सुभासिय (सुभाषित) द० २।१०।९।१७,५४.
उ० २०१५१; २२।४६ सुभिक्ख (सुभिक्ष) अ० ५३२ सुभेरव (सुभैरव) उ० १६०५३ सुमइ (सुमति) आ० २।२,५।४।२. प० १५६.
नं० गा०८ सुमउय (सुमृदुक) प० ४२ सुमज्जिय (सुमज्जित) उ० १६०३४ सुमण (सुमनस्) अ०७०८।६. दसा० ६।३ ।। सुमति (सुमति) अ० २२७
सुमर (स्मृ)-सुमरसि दसा० ३।३ सुमह (सुमहत्) उ० ११।२६ सुमहग्घ (सुमहाघ) दसा० १०।११. ५० ४२ सुमिण (स्वप्न) द० ।५०. उ० १५१७. नं० ५३.
दसा० ५।७. प० ५ से ७,१०,३५,३८,४७,४८
से ५०,१२७,१६२. नि० १३१२४ सुमिणजागरिया (स्वप्नजागरिका) प०३६ सुमिणदंसण (स्वप्नदर्शन) दसा० ५७ सुमिणलक्खणपाढक (स्वप्नलक्षणपाठक) ५० ४३
से ४८ सुमिणभद्र (स्वप्नभद्र) प० १६१ सुमिणसत्थ (स्वप्नशास्त्र) प० ४७ सुमुणिय (सुज्ञात) नं० गा० ३८,४० सुय (सूत्र) अ० ४० सुय (सुत) उ० १३।२३; १४।११,३७ सुय (श्रुत) आ० ४।३,८; ५२२. द०४ सू०१७
८२०,२१,३०,६३: ।।३,१४,१६,१६: ४ सू० १,५. गा०३।१०।१६; चू० २११. उ० ११४६; २ सू०१; ५।१२; ७।२६; १११७, ११,१५,३१,३२; १४१४८; १६ सू० १,१७१२, ४; १६।१०; २३।३,५३,५६,८८, २८।२१; २६।१,२०,२५; ३३१४. नं० गा० २,४,२८, ३६,४३ सू० ३५,३६,६६,७२,८६ से ८६,६१. जोनं० ७. अ० ७,२६ से ३१,३३ से ३६,४५ से ५१. दसा० १११,२।१३।१४।१५।१; ६।१; ६।२।२४. क० ४।२६. व० १०१६. नि० १२।३०; १७।१५२ सुय (शुक) उ० ३४१७ सुयअण्णाण (श्रुतअज्ञान) नं० ३६ सुयअन्नाणलद्धि (श्रताज्ञानलम्धि) अ० २८५ सुयक्खाय (स्वाख्यात) द०४ सू० १ से ३.
उ० ६।४४ सुयक्खंध (श्रुतस्कन्ध) नं० ८१ से ६१,१२३. ___ अ० ६,५७१ सुय (नाण) (श्रुतज्ञान) उ० २८।४ सुयगडज्झयण (सूत्रकृताध्ययन) आ० ४१८ सुयग्गाहि (श्रुतवाहिन्) द० ६।३३ सुयणु (सुतनु) उ० २२।३७ सुयत्थधम्म (सूत्रार्थधर्म) द०६।४० सुयथेर (श्रुतस्थविर) व० १०।१६ सुयदेवया (श्रुतदेवता) आ० ४।८ सुयधम्म (श्रुतधर्म) उ० २८।२७ सुयनाण (श्रुतज्ञान) उ० २८।२३. नं० २,३४,३५,
३६,५५,१२७. जोनं० १ से ३. अ०१ से ३ सुयनाणलद्धि (श्रृतज्ञानलब्धि) अ० २८५ सुयनाणावरण (श्रुतज्ञानावरण) अ० २८२ सुयनाणि (श्रुतज्ञानिन्) नं० १२०,१२७ सुयनिस्सिय (श्रुतनिश्रित) नं० ३७,३६ सुयपुब्विया (श्रुतपूविका) नं० ३५ सुयप सय (शुकपोसक) नि० ६।२३ सुयमुह (शुकमुख) अ० १६,२०. दसा० ७।२०.
प०४२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 1300 1301 1302 1303 1304 1305 1306 1307 1308 1309 1310 1311 1312 1313 1314 1315 1316