Book Title: Navsuttani
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1300
________________ ६,३२,३६,४६, ३६।२५८ सुक्किल (शुक्ल) उ० ३६।१६,२६,७२. अ० २५८, २६३,५०६. प० २८,२६३ से २६७ सुक्कीय (सुक्रोत) द० ७.४५ सुग (शुक) प० २७ सुगंध (सुगन्ध) द० ५।१०१. उ० २२।२४. दसा० १०॥११.५० २०,२१,४०,४२,६२ सुगति (सुगति) दसा० ४।२।२८ सुगिम्हपाडिवय (सुग्रीष्मप्रतिपत) नि० १९२२ सुग्गइ (सुगति) द० ४।२६,२७. उ० ३४।५७ सुग्गीव (सुग्रीव) उ० १६१ सुरिय (सुचरित) दसा० १०।२२ से २७,३३. प०५१ सुचिण्ण (सुचीर्ण) उ० १३।१०; १४१५. दसा०६।३,७ सुचिण्णफल (सुचीर्णफल) दसा० ६।३,७ सुचिर (सुचिर) उ० २७६ सुचोइय (सुचोदित) उ० ११४४ सुच्चा (श्रुत्वा) उ० २१।१४ सुच्छिन्न (सुछिन्न) द० ७१४१. उ० ११३६ सुज? (स्विष्ट) उ० १२।४० सुजह (सुहान) उ० ८।६ सुजाय (सुजात) प० ६,२३,३८,४७ सुट्टिअप्प (सुस्थितास्मन) द. ३११।३ सुट्ठिय (सुस्थित) उ० २२॥४०.५० १८७,१९६, २०२,२०३ सुठ्ठ (सुष्ठ) उ० २०१५४. नं० ७१ सुठुतरमायामा (सुष्ठुतरायामा) अ० ३०६।२ सुटठदिण्ण (सुष्ठवत्त) आ० ४१८ सुण (श्रु)-सुण उ० २४१६.--सुणइ नं० ५४१४.-सुणह अ० ७१५. - सुणाहि उ० १३।२६. -सुणिज्जा नं० ५३.-सुणेइ द० ८।२०. नं० ३५.-सुणेज्जा द० ५१४७. -सुणेमि उ० २०।८.-सुणेह द० ५।१३७. उ० १६१. -सुणेहि उ० २०।३८. सुक्किल-सुत्तफासियनिज्जुत्ति -सुव्वंति उ० ६७ सुणग (शुनक) उ० ३४।१६. दसा० ७.२४ सुणय (शुनक) उ० १९५४ सुणहपोसय (शुनकपोषक) नि०६।२३ सुणिट्ठिय (सुनिष्ठित) उ० १।३६ सुणित्ता (श्रुत्वा) उ० १७१ सुणित्तु (श्रुत्वा) दचू० २।१ सुणिया (श्रुत्वा) उ० १०६ सुणी (शुनी) उ० १४. दसा० १०॥३२ सुणेत्ता (श्रुत्वा) उ० १२११६ सुणेत्तु (श्रोतृ) उ० १६ सू०७ सुणेमाण (शृण्वत्) उ० १६ सू० ७ सुण्णगिह (शून्यगृह) नि० ८।५; १५७१ सुण्णसाला (शून्यशाला) नि० ८।५; १५७१ सुण्हा (स्नुषा) दसा० ६।३।। सुतिक्ख (सुतीक्ष्ण) अ० ३९८ सुत (श्रुत) दसा० ४।१६; ७।१; ९।२।१६ सुतवस्सिय (सुतपस्विक,सुतपस्थित) दसा० ।।२१ सुतविणय (श्रुतविनय) दसा० ४११६ सुतित्थ (सुतीर्थ) द० ७।३६ सुतसंपदा (श्रुतसंपदा) दसा० ४१३,५ सुति (श्रुति) दसा० ६५ सुतिक्ख (सुतीषण) अ० ३९८ सुतोसय (सुतोषक) द० ५।१३४ सुत्त (सुप्त) द० ४ सू० १८ से २३; 81. उ० ४।६. नं० ५२. दसा० ३३ सुत्त (सूत्र) द० १०।१५, चू० २०११. उ० १।२३ २३१८५; २६।२१,६०. नं० ६२, १०२,१०३. जोनं० १०. अ० ५१,५५१, ७१४. दसा० १०॥३५,४२. ५०, २२२,२२८. नि० ५२१३,२४ सुत्त (रुइ) (सूत्ररुचि) उ० २८।१६ सुत्तग (सूत्रक) उ० २२।२० सुत्तजागरा (सुप्तजागरा) प० ४,५,१६,२०,४६ सुत्तपासय (सूत्रपाशक) नि० १२३१,२; १७:१,२ सुत्तफासियनिज्जुत्ति (सूत्रस्पशिकनियुक्ति) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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