Book Title: Navsuttani
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1288
________________ सम्मत्तपरक्कम-सयणिज्ज नं० गा० ५,८,सू०६७. अ० २६१,२६३, २६५,२६७ सम्मत्तपरक्कम (सम्यक्त्वपराक्रम) उ० २६; २६१,७४ सम्मत्तलद्धि (सम्यक्त्वलब्धि) अ० २७६ सम्मदिट्ठि (सम्यकदृष्टि) नं० २३,३६,६७ सम्मइंसण (सम्यग्दर्शन) उ० ३६।२५८ नं० गा० १२ सम्ममणलद्धि (सम्यगदर्शनलब्धि) अ० २८५ सम्ममाण (संमर्दयत्) द० ५।२६. उ० १७६ सम्मदा (समर्वा) उ० २६।२६ सम्मद्दिट्ठि (सम्यकदाष्टि) द० ४।२८; १०१७. नं० ३६ सम्मद्दिया (संमद्य) द० ५।११६ सम्ममिच्छादसणलद्धि (सम्यगमिथ्यादर्शनलब्धि) अ०२८५ सम्मय (सम्मत) द० ८।६०. प० २३८ सम्मवादि (सम्यग्वादिन्) दसा०६।३ सम्माण (सम्मान) द० ५।१३५. उ० ३५११८. सम्माण (सं-1-मानय)-सम्माणेइ प० ४८ -सम्माणेति प० ६६ -सम्माणेज्जा व० १०१२ –सम्माणेति दसा० १०७ -सम्माणेमो दसा० १०।११ सम्माणिय (सम्मानित) ५० ४५,५८ सम्माणेत्ता (सम्मान्य) दसा० १०१७. प० ४८ सम्मामिच्छत्त (सम्यमिथ्यात्व) उ० ३३९ सम्मसुय (सम्यक्श्रुत) नं० ५५,६५ से ६७,६६ सम्मामिच्छदिट्टि (सम्यमिथ्यावृष्टि) नं० २३ सम्मावादि (सम्यक्वादिन) दसा० ६७ सम्मइ (सन्मति) ५० २८३ सम्मुइकर (सम्मुदिकर) व० ३१६ सम्मच्छिम (सम्मूर्छिम,सम्मूर्च्छनज) द० ४ ०८,६ अ० २५४ सम्मूढ (सम्मूढ) उ० ३।६ सम्मेय (सम्मेव) प० १२४ सय (सत्) द० ५।६,१०६, ७।५५ सय (शत) उ० ३।६,१५;७।१३;१८।२८; २६४१; ३४।२०; ३६।५१,५३,५४,५८. नं० गा० १४. अ० २१९,२३१,३८२,३६०, ४१७,४६५,४६६,६४३. दसा० १०१११, १४,१८,२१. प० ४२,६७ से १०४,१०७, १२१,१२२,१२४,१२५,१२६,१३४,१३६, १३८ से १४४,१५१,१५८,१६५ १७२,१७६ से १७८,१८०,१८१,१८३. व०६।३५ से ३६ मय (स्वक) उ०७।१; १७११८, २६।३४; ३२२५, ३८,५१,६४,७७,६०; ३६०८२,६०.१०४,११५, १२४,१५३,१६८,१७७,२४६. दसा० ६।३; ६।२।३७; १०।२४,२७ से ३२. प० ३६,४४, ५०,७५,११३,१२६,१६२,१६५. व० २।२६,३०६।४२,४३. नि० १०३२ सिय (शी)-सय द० ७।४७. -सयइ प० ५८, -सये द० ४७ सयं (स्वयं) द० ४।सू० १० से १६; ११३३. उ० १२।२२; १३।२३; २२।२४,३०; २६॥५,२६; २८।१८, ३५१८. नि० २।१ से १७,२४,२५, ६।११ सयंबुद्धसिद्ध (स्वयंबुद्धसिद्ध) नं० ३१ सयंभूरमण (स्वयंभूरमण) उ० ११३० अ० १८५१४,१८६,५५६ । सयंसंबुद्ध (स्वयंसंबुद्ध) प०१० सयग (शतक) प० ६५ सयग्घी (शतघ्नी) उ० ६।१८ सयण (शयन) द० २।२; ५।१२८;७।२६८।५१. दचू० २१८. उ० १।१८;७८; १५४,११; १६ सू० ३; २६।१,३२; ३०१२८,३६. अनं० १३,१७. अ० ३०२,३६२. दसा० ५।७।४; ६।३. प० २० सयण (स्वजन) २०१४।१६,१७, २२॥३२. अ० ७०८।६. प० ३५,६६ सयणिज्ज (शयनीय) दसा० १०॥२४. प०४,५,१६, २०,२१,३६,३७,३६,४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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