Book Title: Navsuttani
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1292
________________ २६८ सहस्सार-सागवच्च ११६,१२५,१३५,१४४,१५४,१६६,१७८, से २६; १०१२५ से २८; ११७५ से ८०; १८७,१६४,२०३,२४७ १२।१५,१६,२६,३१,३२,४२; १५७६,७८, सहस्सार (सहस्रार) उ० ३६।२११,२२६. ७६,८२,८३,८६,८७,६०,६१,६४,६५; अ० १८६,२८७ १६।१२,१७,१८,२८,३४,३५,३६; १७।१२५ सहस्सारय (सहस्रारज) अ० २५४ से १३२,१५१; १८।१७ से ३२ सहस्सिया (सहस्रिका) उ० ३६।१६०,२१६,२२० साइय (सादिक) नं० ५५,६८,६६,७१,१२७ सहा (श्लाघा) दसा० ६।२।३१ साइयार (सातिचार) अ० ५५३ सहाय (सहाय) दचू० २०१०. उ० २६।१,४०; साइरेग (सातिरेक) नं० ८५. प० ७७,१०६. ___३२।४,५,१०४ व० १११३ से १८, १०२२. नि० २०।१३ से सहाव (स्वभाव) उ० ३६।६०,२६३ सहिण (श्लक्ष्ण) नि० ७।१० से १२; १७।१२ से साईय (सादिक) उ० ३६१६,१२,६५,७६,८७, सहिणकल्लाण (श्लक्ष्णकल्याण) नि० ७१० से १०१,११२,१२१,१३१,१४०,१५०,१५६, १२; १७:१२ से १४ १७४, १८३,१६०,१६६,२१८ सहिय (सहित) उ० १५५१,५,१५ साउ (स्वादु) उ० ३२।१० सही (सखी) दसा० ४।२।३१ साउणिय (शाकुनिक) अ० ३०२।६ सहेउं (सोढम्) द० ६।४६ साउय (स्वादुक) अ० ३२३ सहेत्तु (सहित्वा) द० ३३१४ । साएय (साकेत) नि० ६।२० साइ (साचि) दचू० १ सू० १ सागडिय (शाकटिक) उ० ५।१४. अ० ३३२ साइ (स्वाति) नं० गा० २६. प० १,८४,१०६ सागणिय (साग्निक) नि०१६।३ साइ (सादि) अ० २३५ सागता ( ) म० २६६ साइज्ज (स्वाद)---साइज्जइ क० ११३७. सागपत्त (शाकपत्र) उ० ३४६१८ -~-साइज्जेज्जा क० ४।१०. व. २१५ सागर (सागर) आ० २१७; ५।४१७. द० ६।५४. साइज्जिय (स्वादित) प० २८४ उ० १६।३६,४२; २२।३१२५३८% २६।१, साइपारिणामिय (सादिपारिणामिक) अ० १२६, ५२; ३१११, ३४।३४,३८,३६,४३,५२; १४६,१७३,२८६,२८७ ३६।१६१,१६२,१६४ से १६६,२१६,२२२ से साइबहुल (सातिबहुल) दसा० ६।४ २४३. नं० गा० २८. अ० ४१५,७०८।५. साइम (स्वाद्य) आ० ६।१ से १०. द० ४ सू० प० ४,२०,५४,७८ नि० ८।११ १६; ५।४७,४६,५१,५३,५७,५६,६१,१२७; १०८,६. उ०१५।११,१२. दसा० २।३; सागरंगम (सागरङ्गम) उ० ११।२८ ३।३; १०।३१. प० ४८,६६,२६०,२६१,२७६, सागरंत (सागरान्त) उ० १८१३५,४० २७७. क० १११६, ४२, ३।१,२१, ४११२,१३, सागरपण्णत्ति (सागरप्रज्ञप्ति) जोनं०६ २७,२८,५२६ से १.व. २०२८ से ३०. नि० सागरमह (सागरमह) नि० ८।१४ २०४८; ३।१ से १२,१४,१५, ४१३७,११८; सागवच्च (शाकवर्चस्) नि० ३।७७ ५।३,३४,३५; ७१७७,७६,८६,८७, ८।१ से ६, सागारकड (सागारकृत) क० ११३८ से ४१. ११, १४ से १६; ६।४,५,१०,१२ से १८,२१ व० ७२२,८।१३ से १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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