Book Title: Navsuttani
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1261
________________ विपुलमति-विभूसावत्तिय २६७ दसा० १०१७. प० २१,४७,४८,५२,६२,७४। विप्परियासिआ (विपर्यासिका वैपर्यासिका) विपुलमति (विपुलमति) प० १७६ आ० ४।४ विप्प (विप्र) उ० १४१६; २५१,७ विप्परियासेत (विपर्यासयत्) नि० ११॥६६,७० विपइण्ण (विप्रकीर्ण) द० श२१. क. ६ विप्पलाव (विप्रलाप) उ० १३१३३ विपकिण्ण (विप्रकीर्ण) क० २।१,२,८ विष्पवसमाण (विप्रवशत) दसा०६३ विप्पओग (विप्रयोग)उ० १३१८. अ० ३१७ विप्पसण्ण (विप्रसन्न) उ० ५।१८ विपच्चअ (विप्रत्यय) उ० २३॥२४,३० विप्पसीअ (वि+प्र+षद)-विप्पसीएज्ज विप्पजद (विप्रत्यक्त) अनं० ८. अ०१६,३७,६०, उ०५।३० ८४,०६,५६६,६२६,६३८,६५०,६७६,७०३ ।। विप्फालिय (विपाट्य) नि०१०।१४ विप्पजहणसेणिया-परिकम्म (विप्रहाणश्रेणिका विष्फालिय (विस्फारित) नि० ४।२६ परिकर्मन्) नं ६३,६६ विप्फुरंत (विस्फुरत्) उ० १९५४ विबाहण (विबोधन) अ० ५६६।४ विप्पजहणा (विप्रहाण) उ० २६१७४ विप्पजहणावत्त (विप्रहाणावर्त) नं०६६ विबोहय (विबोधक) प० २६ विप्पजहणिज्ज (विप्रहाणीय) दसा० १०२८ से विब्बोय (दे०) अ० ३११ विभंगनाणलद्धि (विभङ्गज्ञानलब्धि) अ० २८५ ‘विप्पजहा (वि+प्रहा )-विप्प हे उ० ८।४. विभज्ज (विभज्य) दसा० ६।२।४ –विप्प जहंति क० ३।२८ विभत (विभक्त) क० २१२३ विभत्ति (विभक्ति) अ० ३०८।३ विप्प जहित्ता (विप्रहाय) उ० २६१७४ विप्पण? (विप्रणष्ट) नि० २०५५ विभय (वि+भज)-विभयंति उ०१३।२३ विभाग (विभाग) उ० २८।१३,३६।११,७८,१११ विप्पणस (वि--प्र-नश)-विप्पणसेज्जा १२०,१५८,१७३,१५२,१८६,२१७ क० ३।२७ विभागनिफण्ण (विभागनिष्पन्न) अ० ३७०,३७२, विप्पमुच (वि+प्र-+-मुच्)-विप्पमुच्चइ उ० ३८५,३८६,३८८,४१२,४१३,४१५,५०५ २४।२७ विभावण (विभावन) उ० २६।३६ विप्पमुक्क (विप्रमुक्त) उ० १११; ६।१६; ११।१; १५।१६; २०१६०; २१२२४; ३२।११०. नं. विभावित्तए (विमावयितुम् ) क० ३।२३ १२०. अ० २८२. दसा० ५७७. प० ७८, विभावेमाण (विभावयत्) ५० १०६ व० २।६ से १७ विभिन्न (विभिन्न) उ० १६४५५; ३२।६३ विप्पमुच्चमाण (विप्रमुच्यमान) दसा० १०।२६ विभूइ (विभूति) दसा० १०॥१७ विप्परिणाम (वि+परि+णमय)-विपरि- विभूति (विभूति) प० ७५ णामेति नि० १०१० विभूसण (विभूषण) द. ३।६ विप्परिणामेंत (विपरिणमयत्) नि० १०११०,१२ विभूसा (विभूषा) द० ६।६४; ८।५६. उ० विप्परियास (विपर्यास) उ० २०४६ १६६. प० ६४,७५. नि० १५१६६ से १५४ विप्परियास (वि+परि+अस्) विभूसाणुवाइ (विभूषानुपातिन्) उ०१६ सू० ११ -विपरियासे ति नि० १११६६ विभूसावत्तिय (विभूषावृत्तिक) उ० १६ सू० ११ विपरियासिय (विपर्यस्त) नि० १३।२८ विभूसावत्तिय (विमुषाप्रत्यय) द०६।६५,६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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