Book Title: Navsuttani
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२७२
विसुद्धतर-विहर
विमुद्धतर (विशुद्धतर) नं० २५
विसोहिया (विशोध्य) उ० १०॥३२. क० ५:११ विसुद्धत राग (विशुद्धतरक) नं० २५. ५० ५५५, विसोहीकरण (विशोधिकरण) आ० ५।३ ५५६
विसोहेंत (विशोधयत्) नि० ३१३५,६७,६८, विसुद्धतराय (विशुद्धतरक) अ० ५५५,५५६
४।७३,१०५,१०६,६।४४,७६,८७,७:३३, विसुद्धपण्ण (विशुद्धप्रज्ञ) उ० ८।२०
६५,६६; १११३०,६२,६३, १५२११८,१५०, विस्याव (दे०)-विसुयावेति नि० २०८
१५१ विसुयावेत (दे०) नि० २०८
विसोहेत्तए (विशोधयितुम) दसा०७।१८. विसूइआ (विसूचिका) उ० १०।२७
क० ५।११ विसेस (वि+शेषय)-विसेसेइ अ० ७१५५४ ।।
विसोहेत्ता (विशोध्य) उ० २६.५८. नि० ३१३६ विसेस (विशेष) उ० ५।३०; १२।३७; १८॥५१;
विसोहेमाण (विशोधयत) क० ५.६ से १०,१३, .२३।१३,२४,३०, ३०।२३; ३२।१०३.
१४,६।३ से ६. व० ६२. नि० १०२५ से नं० ८६ से ८६,६१. प० २४०
२८ विसेसओ (विशेषस) अ० ५५७
विस्स (विश्व) अ० ३४२।२ विसेसाहिय (विशेषाधिक) अ० १३०,१७४, ३६४,४०७,४१२,५८६
विस्स भिय (विश्वभृत्) उ० ३।२
विस्सर (विश्वर) अ० ३०७।१२. दसा० ६।२।१३ विसेसिय (विशेषित) नं० ३६. अ० २५४ विसे सियतर (विशेषिततर) अ०७१५।३
विस्सुय (विश्रुत) उ० १६२,६७; २३।५ विसोग (विशोक) उ० ३२।३४,४७,६०,७३,८६, विह (दे०) नि० १२॥१७; १६।२६
विहंगम (विहंगम) द० ११३ विसोत्तिया (विस्रोतसिका) द० ५६
विहग (विहग) उ० २०१६०. ५० ३२,४२,७८ विसोह (वि+शोधय्)---विसोहए
विहत्यि (विहस्ति) नं० २०. अ० ३८८,३६१, उ० २४।११.-विसोहेइ उ० २६।५.
४००,४०६ –विसोहेंति दसा० १०॥३४.–विसोहेज्ज विहन्न (वि+हन्)-विहन्नइ उ० २।२२. उ० २४/१२. नि. ३३३५.-विसोहेज्जा
-विहन्नसि उ०९।५१.-विहन्नेज्जा क०४।२६. व. ११३३.-विसोहावेज्ज
उ०२ सू०१ नि. १५॥३२
विहम्म (वि+हन्)-विहम्मइ दचू० ११७ विसोहण (विशोधन) उ० २६।२५. क० ४।२७ ।
विहम्ममाण (विघ्नत्) उ० २७१३ विसोहावेत (विशोषयत्) नि० १२३२,६४,६५;
विहर (वि+ह)-विहरइ उ०२०१६०. १७:३४.६६,६७,८८,१२०,१२१
दसा० ६।३.१०७.क. ३।१३. व०४१११. विसोहावेत्ता (विशोध्य) नि० १५॥३३
-विहरए उ०२६३५.-विहरंति विसोहि (विशुद्धि, विशोधि) उ० १२१३८
व० ११२०. दसा० ६१५.५० ६६.-विहरति २६।२,१०,१७,१८,५१. अ०२८
दसा० १०॥२.-विहरसि व० ४।१८. विसोहिठाण (विशोधिस्थान) द० ६।१३
-विहरसी उ०२३३४०.-विहरामि द०४ विसोहित्तए (विशोधयितुम्) दसा० ७॥१६
सू० १७. उ०२३॥३८. वसा० १०२५.
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