Book Title: Navsuttani
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1274
________________ २८० संजल-संतरित्तए ३४,४०,४३,७१४६,५६, ८।३,४,६,१३,१४, मंठवेमाण (संस्थापयत) व०५।१७।। १६,१८,२४; १०।१५. उ० १६१६,३४,३५; संठाण (संस्थान) द० ८।५७. उ० १६।४; २।४,२७,३०,३४; ५।१८,२६; ६।१५; १०३६, २८.१३; ३६।२१,४२,४६,८३. नं० ५७. १११६,१२१२,६,२०,२२,४०,४५; १५:५; अ० १०१,२३४,२३७,२५७,२६२,२८२,४०८, १७१६,१८।३०; १६०५२०११,४,५,८,११, ५०८,५१३. दसा०६५ ४३,५६, २०१३,१५,२०,२२३५,४६; संठाणओ (संस्थानतस्) उ० ३६।१५,२२ से ४१, २३।१०; २४१४,१०,३०१६; ३५॥३,७,९. ४३ से ४५,६१,१०५,११६,१२५,१३५,१४४, नं० २३. दसा०६।१८%, 8२।२१. क० ५।११ १५४,१६६,१७८,१८७,१६४,२०३,२४७ संजल (सं-ज्वल)-संजले उ० २।२४ संठिय (संस्थित) उ० ३६।५७,६०. अ० ४०८. संजलण (संज्वलन) उ० २६४५. दसा० ११३ दसा०६।५. प० २४. नि०६।१३ सिंजा (सं+जन्)-संजायई उ० ३२।१०७ संड (षण्ड) ५० ४२ संजाय (संजात) द० ७.२३ संडासतुड (सदंशतुण्ड) उ० १६०५८ संजुत्त (संयुक्त) उ०१८।१७; २६।७, २८।१. संडिब्भ (दे०) ८० ॥१२ नि० १०१५; १२।४ संडिल्ल (शाण्डिल्य) नं० गा० २६ संजुय (संयुत) उ० १२।३४; १४।२६; २२।१,३,५ संत (सत्) द० ५।१११; ६।५३. उ० १।२२; संजूह (संयूथ) नं०१०२. अ० ३५८,३६४ ।। १६७; २०।१२; २२।३२; २३३५३; २५२६; संजोएमाण (संयोजयत्) उ० २६६१ ३२।३४,४७,६०,७३,८६,६६. अनं० १३,१७. अ० ५६६,६५५,६५६,६८१,६८५. संजोग (संयोग) द० ४।१७,१८. उ० १.१; ८।२; नि० २।४४; १७।१२३,१२४ ११।१; २८।१३; २६४. अ० २८६,२६०, २६२,२६४,३११,३१५,३१६,३२८,३२६, संत (श्रान्त) उ० १८।३. दसा० १०.११. ५० ४२ ३३२ से ३३५,३३७,३५८,३६२ संत (शान्त) प० ७८ संजोय (संयोग) अ० २८६,२६६ संतइ (सन्तति) उ० ३६।६,१२,७६,८७,१०१, संज्झा (सन्ध्या) अ० २८७,५३३. नि० १६१८ ११२,१२१,१३१,१४०,१५०,१५६; ३६।१७४, Vसंठव (सं+स्थापय)-संठवेज्ज नि०३।४१. १८३,१६०,१६६,२१८ ---संठवेज्जा व० ५।१५.-संठवेति संतत्त (संतप्त) उ० १४३१० नि० ११३६.-संठवेस्सामि व०५।१५ संतपयपरूवणया (सत्पदप्ररूपण) अ० १२१,१३८, संठवेंत (संस्थापयत्) नि० २।२४,२५; ३।४१ से १६५,२०६ ४६,५६ से ५८,६५,६६,४।७९ से ८४,६४ से संतय (सन्तत) दचू० ११८. उ० २।३ ९६,१०३,१०४,६५० से ५५,६५ से ६७, संतय (सत्क) अ०५६६ ७४,७५; ७१३६ से ४४,५४ से ५६,६३,६४; संतर (सान्तर) अ० ७१३१२. दसा० ७।८. १११३६ से ४१,५१ से ५३,६०,६१,१५॥३८ क० २।४ से ७. व० १११६ से २२,३१२, से ४३,५३ से ५५,६२,६३,१२४ से १२६, ४।११,१२,१५,१६,१६; ५।११,१२,६।१४ १३६ से १४१,१४८,१४६; १७:४० से ४५, संतर (संत)-संतरति नि०१२।४३ ५५ से ५७,६४,६५,६४ से ६६,१०६ से १११; संतरंत (संतरत्) नि० १२।४३ ११८,११६ संतरित्तए (सन्तरीतुम्) क० ४।२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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