Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ : नरभवट्टितोवनयमाला कोइ वखते म्हारे माथे ज्यारे संकट आवे त्यारे तु सहायता करजे एम कहो अने सत्कार करी तेने (मूलदेवने) छोडी मूक्यो / / 41 / / अप्पत्तपुवनिग्गह-कलंकलज्जो विलक्खभावेण / विण्णयडपुरसम्मुह-मारद्धो एस अह गंतुं // 42 // भावार्थ:-परंतु पहेलवहेलांज आवं बीजाथी निग्रहरूप कलंक लागवाथी शरमाइ ते मूलदेवे बेनातटनगर तरफ जवानी शरुआत करी / / 2 / / पतो महाडवीए संबलरहिओवि कायबलजुत्तो। . किचिवि वयणसहायं पहियमवलोयए जाव // 43 / / भावार्थ:-भाता विना पण शरीरबलने लीधे चालता चालता मोटा जंगलमां आवी पहोंच्यो अने रस्तामां वचननी एटले वार्तालाप करवानी सहायभूत एक मुसाफरने निहालवा [जोवा] लाग्यो // 43 / / एगो भट्टो मग्गे ससंबलो जाइसद्धडो नाम / उयरंभरि महकिविणो तावया तेण सो दिट्ठो // 44 / / ___ भावार्थ:-तेटलामां एक उदरंभरी महाकृपण भातावालो सद्धड नामनो भट्ट जतो मूलदेवनी दृष्टिए पडयो // 44 // एयस्स संबलवलेण जामि इण्हि न वंचणं काही / मज्झमिमो ते चलिया परोप्परं विहियसंभासा // 45 //
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