Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 169
________________ 162 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला __ भावार्थ:-जेनुं परिमाण तेसठ्ठहजार (63000.) योजननुं छे ते बीजुं कंडक अने त्रीजु कंडक सोनानुं छ तेनुं मान छत्रीसहजार (36000) योजन- छे / / 18 // तत्थ केण वि तियसेण एगो खंभो अणेगखंडाइं / काऊण चुण्णिओ ताव जाव अविभागिमो जाओ / / 19 / / / भावार्थ:-हवे ते मेरुपर्वतना क्रीजा कंडक उपर कोइ देवताए एक थांभलाना अनेकखण्डो करी एवं बारीक चूर्ण कयुं के जेना रजकणना बीजो भाग थइ शके तेवू रह्य नहि // 19 // , भरिमा 'महप्पमाणा निलया कलिया करेण सा तेण / पत्तो सुमेरुचूला-सिहरे सा फुसिआ तत्तो // 20 // भावार्थ:-त्यारबाद पृथ्वी जेवडी महाप्रमाणवाली नालिका (नली) मां ते चूर्ण भरी हाथमां लइ सुमेरुनी चूलिका उपर जइ त्यांथी ते देवे तेने फुकवडे करीने फुकी मूकयुं // 20 // उदंडपवणवसओ महापयासत्तओ य तिअस्स / अविभागमेत्तणेण य दिसोदिसं ते गया अणुया // 21 // भावार्थ:-उदंड (प्रचंड) पवनना झपाटाथी अने 1 महीप्पमाणा इत्यपि

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