Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 180
________________ दृष्टांतोपसंहारोपदेशः : : 173 गुमावनारा मनुष्यो आलोकमां प्रमादथी मनुष्यपणं गुमावनारा छे / / 14 / / अहवा विविहायंक-गत्था दुत्था नरा पमायपरा / लहिऊण सुहाकुंड मुहाकयं तेहिं धम्मविणं / / 15 / / ___ भावार्थ:-अथवा जे माणसो अनेक व्याधिओथी ग्रस्त (घेरायेल), विह्वल अने प्रमादने विषे तत्पर छ तेओए धर्म विना अमृतकुंड प्राप्त करी व्यर्थ गुमाव्या जेवू कयुं छे // 15 // जिणपवयणवरणंदण-वणाओ सरसाणि वयणकुसुमाणि / चिणिऊण कुसुममाला वण्णड्ढा गुंफिया एसा // 16 // भावार्थ:-जिनवरना प्रवचनरूप श्रेष्ठ नंदनवनमांथी सरसवचनरूप . पुष्पो चुंटो काढी वर्णसंपन्न आ पुष्पमाला गुंथेल * छे / / 16 / / जे सुद्धमग्गकहगा पसण्णचित्ता बहुस्सुया संता / गीयत्था गुणजुत्ता दायव्वा मालिया तेसि / / 17 / / भावार्थ:-जेओ शुद्धमार्गना उपदेशक (बतावनारा) प्रसन्नचित्तवाला, बहुश्रुत, गीतार्थ अने गुणी संतो छे तेओने आ माला आपवी // 17 // उवएसपऊवमिइ-भवप्पवंचाइपयरणसुखेत्ताओ। उच्छुव्व मए लिहिया गाहाहिमुवणया सव्वे // 18 // . भावार्थ:-उपदेशपद, उपमितिभवप्रपंचादि'

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