Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ 10 परमाणुदृष्टांतः : : 161 जोयणसहस्सदसयं नवनउइजोयणाहियं मूले / दसभागेक्कारसभइया तह भासिओ परिही // 15 / / भावार्थ:-अने ते मेरुपर्वतना मूलनो परिधि दशहजार अने नवाणु (10099) योजन अने एक योजनना अग्यार भाम करीये तेमानां दशभाग जेटला प्रमाणवालो छे // 15 // एगतोससहस्सनवसयदसजोयणाइपरिमाणो। तिन्निक्कारसभागा उवरिमभागे परिही एसो / / 16 / भावार्थः-अने एकत्रीसहजार नवसो दश (31910) योजन तेमज एक योजनना अगीयार भागमा रहेला त्रण भाग जेटला प्रमाणनो ते मेरुपर्वतना उपरना भागमां परिधि छे / / 16 / / तस्सात्थि पढमकडं सहस्राजोअणमट्टिसक्करारूवं / अंक फालियकंचण-रययमयं कंडयं बीयं / / 17 // भावार्थ:-तेनुं एकहजार [ 1000 ] योजन प्रमाण- अने माटी शर्करारूप प्रथम कंडक छे अने अंक रत्न, स्फटिकरत्न अने कांचन [सुवर्ण] रजत [रूपा] मय मध्यमां रहेल बीजं कंडक छे / / 17 / / तेवद्विसहस्सजोयण-परिमाणं होइ बीयकंडस्स / तइयं छत्तीससहस्स-जोयणमाणं सुवण्णमयं / / 18 / /
Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184