Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ दृष्टांतोपसंहारोपदेशः : // दृष्टान्तोपसंहारोपदेशः / / दिट्ठतभावपत्ता दसावि दिढ़तया अवितहत्था / उवयणगुणसंजुत्ता एए वुत्ता नरभवंमि // 1 // भावार्थ:-मनुष्यजन्मनी दुर्लभता उपर उपनयसहित खरा अर्थवाला उपरना दश दृष्टांतो कह्या, जेओ बराबर दृष्टान्तपणाने धारण करनारा छे / / इय दुल्लहलभं माणुसत्तण पाविऊण जो जीवो / न कुणइ पारत्तहियं सेा सायइ संकमणकाले // 2 // भावार्थ:-आ जगतमां जे मनुष्य महामहेनते पामी शकाय तेवा मनुष्यपणाने प्राप्त करो पारलौकिक हित एटले परलोकमां हितकारी धर्म नथी करतो ते छेवटने वखते पश्चात्तापने करनार थाय छे // 2 // जह वारिमज्जबूडोव्व गयवरो मच्छउव्व गलगहिओ / वग्गुरपडिउव्व मओ वाइग्गहिओ जहा मणुओ // 3 // सो सायइ 'मच्चुजरा समच्छओ तुरियनिद्दए खित्तो / नायारविदंतो कम्मभरपर्णोल्लिओ जीवो // 4 // ____भावार्थ:-कादवमां खुंची गयेल हाथी अने जालमां सपडायेल माछलं तेम जालमा फसायेल हरिणीयानी पेठे व्याधिथी ग्रस्त [घेरायेल] थयेल तेमज घडपण, मृत्यु अने छेवटनी निद्राथी दबायेलो, . 1 मच्छु इत्यपि /
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