Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 172
________________ 10 परमाणुदृष्टांतः : : 165 फरी मली स्तंभरूपे थाय ते घणुं अशक्य छे / 28 / एवं मणुअभबंमि सम्मत्तं पाविऊण निग्गमियं / खंभस्साणुयपीसण-ट्टितेणेव तं दुलहं / / 29 / / भावार्थ:-आ प्रमाणे मनुष्यभवमां प्राप्त थयेल सम्यक्त्व चाल्युं गयँ तो उपर कहेल थांभलाना जुदा पडेल परमाणुओ फरी पाछा मली थांभलारूप थवाना दृष्टांतथी फरी मलq अति अशक्य छ / 29 / इय दसमो दिदुतो परमाणुअणामओ मए विणिद्दिद्यो / नरभवलद्धट्टाए लिहिओ पवयणसमुद्दाओ / / 30 // भावार्थ:-आ परमाणु नामनो दशमो दृष्टांत मनुष्यजन्मनी दुर्लभता उपर शास्त्रसमुद्रमांथी लइ में (नयविमले) अहिं निर्देशेल (देखाडेल) छे // 30 // सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। सिरिधीरविमलमंडिय-सीसेण गयाइविमलेण // 31 // भावार्थ:-श्रीविजयप्रभसूरीना राज्यमां श्रीविनयविमलगणि कविराज थया ने तेओना शिष्य श्री धीरविमलगणि पंडित थया, तेओना शिष्य में (नयविमले) आ (दशमा दृष्टांतनी) योजना करेल छे // 31 //

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