Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 170
________________ 10 परमाणुदृष्टांतः : देवना असाधारण पराक्रमीथी फेंकायेल ते अणुका (चूर्णना परमाणुओ) रूग कणियाओ जुदीजुदी दिशाओमां प्रसरी (फेलाइ) गया // 21 // पट्ठामि कयावि पुणो मिलिज्ज तेणू हविज्ज सो थंभो / इय पेच्छंतस्सवि से वाससहस्साइ गाई // 22 // भावार्थ:-ते अणुओ (परमाणुओ) पाछा माहोमाहे मलीने क्यारे स्तंभरूप थइ जशे एम जोतां देवने अनेक हजार वर्षो चाल्यां गयां // 22 // वोलोणाणं तेसि अणूण जोगो णयावि से थंभो / संजाओ तह एसा मणुआण चुओ मणुयभावो // 23 / / . भावार्थ:-आडाअवला चाल्या गयेला ते परमाणु ओनो परस्पर संयोग थइ फरीथी कोइपण रीते स्तंभ थवा न पाम्यो, तेवीज रीते गयेल मनुष्यभव फरी मनुष्योने प्राप्त थतो नंथी // 23 // परमाणुखंभपीसण-सुरनलियामेरुखेवदिता / तग्घडणा वाऽणुचया मणुअत्तं भवसमुहंमी // 24 // ___भावार्थ:-परमाणुरूपे स्तंभने पीशी नांखी नलि. कामां भरी मेरुपर्वत उपरथी कोइ देवे फेंक्यो, परंतु . फरी तेवी थांभलानी घटना थइ न शकी, आवा भाववालो' उपरनो दशमो दृष्टांत संसारसमुद्रमां .

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