Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 9 युगशमिला दृष्टांतः : : 153 थवानी वातज शी? // 14 // जह तोए समिलाए छिद्दप्पवेसो अईवदुल्लभो / तह मोहमूढचित्ताणं माणुसत्तंमि मणुआणं // 15 // भावार्थ:-जेम ते समिला (खीली)नो झोंसराना छिद्रमा प्रवेश थवो घणोज अशक्य छे तेवी रीते मोहथी विह्वल थयेल मनुष्योने फरी मनुष्यजन्मनी प्राप्ति थवी पण अतिदुर्लभ छे / / 15 // कहमवि देवबलेण य छिद्दप्पवेसो हविज्ज समिलाए / लहइ नरत्तं न पुणो दंसणभट्ठो तहा मच्चो / / 16 / / ___ भावार्थ:-कदाचित् दैविक प्रेरणाथी समिल (खीली)नो झोंसराना छिद्रमा प्रवेश थवो शक्य छ, परंतु सम्यग्दर्शनथी भ्रष्ट थयेला जोवोने फरी मनुष्यपणानी प्राप्तितो विशेषज अशक्य छ // 16 // अत्रोपनययोजना यथा हवे द्रष्टांत घटावे छे, जेमजह सो लवणसमुद्दो तह संसारोयही मुणेयव्यो / तह जलयरसारिच्छा अणेगसंसारिजीवा य // 17 // भावार्थ:-लवणसमुद्र जेवो अहीं अपारसंसारसमुद्र जाणवो अने तेमां अनेक जलचरो जेवा संसारी . जाणवा // 17 //
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