Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 9 युगशमिला दृष्टांत : : 155 ___ भावार्थ:-जेम समिला (खीली) ने युग [झोंसरा] नो संयोग लवणसमुद्रमां दुष्कर कहेल छ तेवी रीते श्रद्धारूप समिला अने वीर्य ( आत्मबल ) रूप झोंसरानो संयोग थवो पण अतिदुष्कर छे // 21 / / निद्दापमायचंडा-निलप्प'हावओ धम्मसंजोगो / भवसायरंमि तहा दुक्करभावेण तज्जोगो // 22 // ____ भावार्थ:-निद्रा अने प्रमादरूप प्रचंडपवनना प्रभावथी संसारसमुद्रमा धर्मनी साथे योग थवो अतिदुष्कर छे // 22 // इय णवमो दिढतो जुगसमिलाए मए विणिहिट्ठो / नरभवलट्ठाए लिहिओ पवंयणसमुद्दाओ // 23 // _ भावार्थ:-आ प्रमाणे मनुष्यभवनी दुर्लभता उपर जुगशमिला नामनो नवमो दृष्टांत शास्त्रसमुद्रमांथी उद्धरी अहिं में (नयविमले) लखीने योजेल (रचेल) छे / / 23 // 2 // सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया। . सिरिधीरविमलपंडिय-सीसेण णयाइविमलेण // 24 / / भावार्थ:- श्रीविजयप्रभसूरीश्वरना राज्यमां श्री विनयविमलगणि कविराज थया, तेमना शिष्य पंडित . 1 पहाव ओ इत्यपि
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