Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 161
________________ 154 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला जम्मजरामरणाइदुहजलकल्लोलक्खुभियसव्वजणो / चत्तारि धरणीकलसा कसायकुंभा तहा जाण / / 18 / / भावार्थ:-तेमज जलचरजीवोनी माफक समस्तजीवो जन्मजरामरणादिना दुःखरूप जलतरंगोथी क्षोभ पामेला जाणवा अने चार पाताल कलशा जेवा क्रोधादि चार कषायरूप कलशो जाणवा / / 18 // सुहकम्मविवरपरिणाम-देवो दंसेइ उज्जुमइजुत्तो। जह समिला तह सद्धा जुगमिव सुद्धप्पवीरिययं / / 19 / / भावार्थ:-ऋजुमतिथी युक्त शुभकर्मविवर (काj) परिणामरूप देव जुए छ, समिला जेवी श्रद्धा अने झोंसरा जेवं प्रकृष्ट आत्मवीर्य (आत्मबल) जाणवू // 19 // जहमंदरगिरिचूला तह नियई पुवकम्ममम्मजुआ। कालाइकारणेहि पवाहिआ भवसमुइंमि // 20 // भावार्थ:-सुमेरुनी चूलिका ( शिखा ) जेवी पूर्वकर्ममर्मयुक्त नियति जाणवी अने संसारसमुद्रमां कालादि एटले काल 1 स्वभाव 2 नियति 3 कर्म 4 ने उद्यम 5 ए पांच कारणोवडे प्रवाहित करेल छ / // 20 // जह समिला जुगजोगो लवणसमुदंमि दुक्करो भणिओ / तह सद्धासमिलाए संजोगो वीरियजुगस्स // 21 //

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