Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 165
________________ 158 : : नरभवलुितोवनयमाला भावार्थ:-ए प्रमाणे दक्षिणभागमा. . तेत्रीसहजार एकसो ने छप्पन (33156) योजनप्रमाण- अने उत्तरभागमां पण तेटलाज प्रमाण, क्षेत्रमान जाणवू // 4 // एरवयखेत्तसिहरी एरण्णयवासरुप्पिवासहरो। . . रम्मगखेत्तं नीली-वासहरो दुगुणदुगुण कमा // 5 / / भावार्थ:-ऐरवत क्षेत्र, शिखरीपर्वत, ऐरण्यवंतक्षेत्र, रूपीपर्वत, रम्यकक्षेत्र अने नीलपर्वत ते तमाम अनुक्रमे उत्तरोत्तर बमणा बमणा प्रमाणवाला जाणवा / / 5 // मज्झे विदेहखेत्तं तेत्त ससहस्सछसयचलसीयं / जोयणपमाणमेयं कलाचउक्कं च तस्सुवरि // 6 // भावार्थ:-तेत्रीसहजार छसो चोरासी (33684) योजन अने चार (4) कला प्रमाण- मध्यमां विदेहक्षेत्र छे // 6 // सोलससहस्सअडसय-जोयणवायालदुगकलामाणं / पत्तेयं पत्तेयं आयामो सव्वविजयांणं // 7 // भावार्थ:-दरेक विजयनी लंबाइनुं मान सोल हजार आठसो बैंतालीस (16842) योजन अने वे कलानुं छे / / 7 //

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